नेहरूजी के चंद पत्रों में मिला इंदिरा को अपने हर सवाल का जवाब, धर्म-सभ्यता और समाज से जुड़ी थी सीख
Children's day 2021 नेहरूजी के चंद पत्रों में मिला इंदिरा को अपने हर सवाल का जवाब, धर्म-सभ्यता और समाज से जुड़ी थी सीख
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साहित्य जगत में योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है। उनके द्वारा लिखित ‘पिता के पत्र’ मात्र एक किताब नहीं है वह एक पिता के द्वारा बेटी को लिखा गया पत्र है जिसमें सभ्यता की सबसे अच्छी और सरल व्याख्या की गई है। किताब में एक ओर तो पंडित नेहरू के विचार हैं तो दूसरी ओर प्रेमचंद ने उन्हें इतनी सरल भाषा में प्रस्तुत किया कि वह पत्र पत्र न रहकर पिता और बेटी की भावनात्मक रिश्तों की कहानी बन गई। इन पत्रों का संग्रह ‘लेटर फ्रॉम फादर टू हिज डॉटर’ नाम की पुस्तक में छपा जिसे बाद में प्रेमचंद ने हिन्दी में अनुवाद किया। इस किताब में नेहरू का प्रकृति केे प्रति लगाव और बेटी का देश-दुनिया के सरोकारों के प्रति लगाव एक दृष्टि विकसित कर सकने की चिंता देखी जा सकती है। यह पत्र 1928 में लिखे गए थे उस समय इंदिरा मात्र 10 वर्ष की थीं।
कठिन सवाल, सरल- सहज जवाब
1927 में 2 साल यूरोप में रहने के बाद जब पंडित नेहरू, कमला नेहरू और इंदिरा गांधी भारत आ रहे थे तो जहाज पर खड़ी इंदिरा ने नेहरू से कई सवाल किए थे, इस संसार की रचना कैसे हुई, जीव-जंतुओं की रचना कैसे हुई, सभ्यता क्या है, अलग-अलग राष्ट्र, धर्म और जातियां कैसे बनीं। इसके बाद नेहरू के लिखे पत्र पढ़ने से साफ पता चलता है कि एक पिता कितनी सहजता से अपनी बेटी को लाखों साल का इतिहास कितनी आसानी से समझा देता है। शायद यहीं से इंदिरा जी में राष्ट्र, धर्म की नींव पड़ गई थी। उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा कि किसी भी चीज का इतिहास जानने असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ें बल्कि स्वयं संसार-रूपी किताब को पढ़ें।
नेहरू ने इस दौरान पत्र में सभ्यता, समाज के बारे में भी बताया कि समाज में कौन सभ्य है। उन्होंने बताया कि अच्छा करना, सुधारना, जंगली आदतों की जगह अच्छी आदतें पैदा करना और इसका व्यवहार किसी समाज या जाति के लिए ही किया जाता है। उन्होंने बताया कि आदमी की जंगली दशा को बर्बरता कहा जाता है। उन्होंने बताया कि हम बर्बरता से जितना दूर जाएंगे उतने ही सभ्य होते जाएंगे।
नेहरू ने अपने पत्र में धर्म के बारे में भी बताया है उन्होंने पत्र में लिखा कि पहले लोग भगवान से बहुत डरते थे इसलिए वह उन्हें भेंट विशेषकर खाना देकर एक तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते थे। नेहरू ने पत्र में लिखा है, धर्म पहले डर के रूप में आया और जो बात डर से की जाए बुरी है। उन्होंने इंदिरा से कहा कि जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम्हें दुनिया भर के धर्मों का हाल पढ़ने को मिलेगा। उन्होंने लिखा कि तब तुम्हें पता चलेगा कि धर्म में क्या-क्या अच्छा और कौन सी बुरी बातें हैं।
धर्म, रामायण और महाभारत
पंडित नेहरू ने इंदिरा गांधी को रामायण और महाभारत के बारे में बताया था उन्होंने लिखा कि रामायण पढ़ने से पता चलता है कि दक्खिनी हिंदुस्तान की वानर सेना ने रामचन्द्र की सहायता की थी और हनुमान उनका एक बहादुर यौद्धा था। उन्होंने बताया कि रामायण की कथा आर्यों और दक्खिन के आदमियों की लड़ाई की कथा हो, जिनके राजा का नाम रावण रहा हो। उन्होंने इन कथाओं का ज्यादा वर्णन न करते हुए इंदिरा जी को स्वयं इन कथाओं का पढ़ने के लिए कहा।
नेहरू ने महाभारत के बारे में भी इंदिरा को पत्र में लिखा कि महाभारत रामायण से बहुत बड़ा ग्रंथ है। इसमें आर्यों की आपस की लड़ाई की कथा है। उन्होंने बताया कि इस ग्रंथ से हमें प्रेम है क्योंकि इसमें अमूल्य ग्रन्थ है जिसे हम भगवद्गीता कहते हैं। इसमें बहुत बड़े-बड़े उपदेश हैं, लड़के उन्हें पढ़ते हैं और सयाने व्यक्ति उन्हें उपदेश देते हैं।
इसी तरह नेहरू ने संसार में जाति, कौमें, जाति का सरगना के बारे में अपने पत्र में इंदिरा को बताया। उन्होंने भारत और चीन के रिश्तों को लेकर भी पत्र में उल्लेख किया। उन्होंने इंदिरा को बताया कि यह दुनिया रहस्यों से भरी पड़ी है इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि सबकुछ सीखकर बहुत बुद्धिमान बन गये।