LAC पर बढ़ा तनाव: सेना ने शुरू की मोर्चाबंदी, भारतीय लड़ाकू विमानों ने उत्तराखंड से लगी चीन सीमा पर भरी उड़ान

LAC पर बढ़ा तनाव: सेना ने शुरू की मोर्चाबंदी, भारतीय लड़ाकू विमानों ने उत्तराखंड से लगी चीन सीमा पर भरी उड़ान

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-07 18:10 GMT
LAC पर बढ़ा तनाव: सेना ने शुरू की मोर्चाबंदी, भारतीय लड़ाकू विमानों ने उत्तराखंड से लगी चीन सीमा पर भरी उड़ान
हाईलाइट
  • चिन्यालीसौड़ स्थित हवाई अड्डे पर सेना के वाहनों का लगा जमावड़ा
  • चीन और भारत दोनों ही लगातार सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की संख्या बढ़ा रहे

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनाव जारी है। चीन और भारत दोनों ही लगातार सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की संख्या बढ़ा रहे है, खासतौर पर पैंगोंग त्सो इलाके में। यही नहीं दोनों ओर से सेनाएं एडवांस्ड टैंक, एयरक्राफ्ट्स और कई तरह के वेपन की तेनाती भी कर रहे हैं। इस बीच भारतीय वायुसेना ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी की ओर से चीन से लगी सीमा पर मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। सोमवार को आसमान में सेना के लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी, जबकि दो दिन से चिन्यालीसौड़ स्थित हवाई अड्डे पर सेना के जवानों और वाहनों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। जल्द ही यहां से सेना के जवानों को हर्षिल एवं बॉर्डर की ओर भेजे जाने की बात सामने आ रही है।

बता दें कि जनपद की 117 किमी सीमा चीन के साथ लगी है। इस बॉर्डर की अग्रिम चौकियों पर भारतीय सेना और आईटीबीपी के जवान पूरी मुस्तैदी के साथ ड्यूटी दे रहे हैं। भारतीय सेना की एक बटालियन हर्षिल बेस कैंप में तैनात है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते इस बॉर्डर से कभी चीनी घुसपैठ नहीं हुई है, लेकिन चीन के साथ तनातनी के बीच सेना इस बॉर्डर भी पूरी सतर्कता बरत रही है। यही कारण है कि बीते मई माह से लद्दाख बॉर्डर पर चीन के साथ चल रहे विवाद के बाद से ही यहां सेना की गतिविधियां तेज हो गई हैं। बीते कुछ दिन से जिले के आसमान में भारतीय सेना के विमान उड़ान भरते दिख रहे हैं। इसके साथ ही बीते दो दिन से सीमा के सबसे निकटवर्ती चिन्यालीसौड़ हवाई अड्डे पर भी सैन्य गतिविधियां बढ़ गई हैं। 

24 घंटे गश्त कर रहे भारतीय सैनिक
लद्दाख में चीनी सैनिकों की हरकतों पर नजर रखने के लिए लिपुलेख सीमा की कड़ी निगरानी की जा रही है। सेना और अर्द्ध सैन्य बलों के जवान 24 घंटे गश्त कर रहे हैं। सोमवार को भारतीय वायु सेना के जेट फाइटरों ने मिलम से लेकर लिपुलेख तक उड़ान भरी। इन इलाकों में भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों ने अपनी तैनाती बढ़ा दी है। वहीं कालापानी से लेकर लिपुलेख तक चौबीस घंटे जवान सीमा की निगरानी कर रहे हैं। धारचूला से लगातार लिपुलेख सीमा के लिए सुरक्षा बलों के जवानों का मूवमेंट बना हुआ है।

नेपाल सीमा पर भी बढ़ाई तैनाती
वायु सेना के जेट फाइटर ने सोमवार को भी सुबह करीब दस बजे सीमा पर उड़ान भरी, हालांकि लिपुलेख सीमा पर इस बीच चीन की ओर से कोई अवांछित गतिविधियां नहीं की गई हैं। इधर भारत-नेपाल सीमा पर भी धारचूला से कालापानी तक एसएसबी लगातार गश्त कर रही है। अंतरराष्ट्रीय झूला पुलों सहित काली नदी में अवैध रूप से आने जाने वाले स्थानों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। 

सैनिक पूर्वी लद्दाख 40-50 हजार सैनिक तैनात, हर सैनिक पर खर्च 1 लाख
जानकारी के मुताबिक मई महीने में चीन से शुरू हुए विवाद से पहले तक पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर एक डिवीजन तैनात रहती थी यानि करीब 20 हजार सैनिक। लेकिन अब यहां 40-50 हजार सैनिक तैनात हैं, यानि लगभग पूरी एक कोर। ऐसे में इन अतिरिक्त सैनिकों के लॉजिस्टिक को पूरा करना सेना के लिए एक बड़ी चुनौती है। उनके लिए स्पेशल-क्लोथिंग (जैकेट, बूटंस इत्यादि) खाना-पीना, राशन और रहने के लिए बैरक भी तैयार करने हैं। एक अनुमान के मुताबिक, इसके लिए हर सैनिक पर करीब एक लाख रुपए का खर्च आएगा।

माइनस 40 डिग्री पहुंच जाता है तापमान
पूर्वी लद्दाख का पूरा इलाका यानि लेह से कारू, चांगला पास (दर्रा), दुरबुक, गलवान, बुर्तसे, डेपसांग प्लेन, डीबीओ, गोगरा, हॉट स्प्रिंग, फिंगर एरिया, थाकूंग, चुशुल, रेजांगला, रेचिन-ला सभी इलाके 14 हजार फीट से 18 हजार फीट पर है। यहां तापमान माइनस 40 तक पहुंच जाता है और बेहद ही सर्द हवाएं चलती हैं। ऐसे में सैनिकों के लिए टेंट में रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा। उनके लिए आर्टिक-टेंट की जरूरत होगी या फिर ऐसे बैरक की जरूरत होगी जहां सैनिक ठंड से बच सकें।

बर्फबारी से बंद हो जाती है सड़कें
ये रूट साल में छह महीने (अक्टूबर-मार्च) के लिए बंद रहता है, क्योंकि इस दर्रे के करीब 25-30 किलोमीटर के स्ट्रेच पर जमकर बर्फबारी होती है जिससे ये रास्ता पूरी तरह से बाकी देश से कट जाता है। बॉर्डर रोड ऑर्गेनेजाइजेशन यानि बीआरओ हर साल मार्च-अप्रैल में इस रास्ते पर जमी कई फीट उंची बर्फ को हटाकर या काटकर ये रास्ता खोलता है। तब तक ये रास्ता पूरी तरह बंद रहता है। 

दूसरा रूट है कुल्लु-मनाली और रोहतांग पास से कारू पहुंचना का, लेकिन रोहतांग पास भी साल में चार-पांच महीने बंद रहता है। रोहतांग टनल पर काम जोरो-शोरो से चल रहा है ताकि ये रूट 12 महीने खुला रहे। लेकिन अभी भी इस टनल का काम पूरा नहीं हो पाया है।

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