महिलाएं देती है राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा योगदान,जानिए कैसे?
महिलाएं देती है राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा योगदान,जानिए कैसे?
Bhaskar Hindi
Update: 2021-03-08 06:51 GMT
डिजिटल डेस्क,दिल्ली। महिलाएं चाहे जितना काम कर ले,उनके काम को समाज में कद्र नहीं की गई। इतिहास से लेकर आज तक औरतें सिर्फ अपने सम्मान और आजादी की लड़ाई लड़ रही है। इस बात में कोई शक नहीं की अगर सभी महिलाओं ने अपने काम के बदले पैसे लेना शुरु कर दिया तो दुनिया की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा धक्का लगेगा। बीबीसी के अनुसार, साल 2019 में महिलाओं द्वारा किए गए "घर के काम" की कीमत दस ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा थी। ये फॉर्च्यून ग्लोबल-500...लिस्ट की पचास सबसे बड़ी कंपनियों जैसे वॉलमार्ट, ऐप्पल और अमेज़न आदि की कुल आमदनी से भी ज़्यादा थी।
- वही अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम के एक अध्ययन की मानें तो, महिलाओं द्वारा किए गए "घर के काम" का मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था का 3.1 फीसदी है।
- इन सब बातों और अध्ययनों के बावजूद देश की अदालतें आज भी गृहणियों के काम को आर्थिक मान्यता देने के लिए लगातार फ़ैसले ले रही है।
- बता दें कि, विश्व बैंक की बहुप्रतिक्षित रिपोर्ट "वूमन बिजनेस एंड लॉ 2020 ( डब्ल्यूबीएल इंडेक्स)" की रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक तौर पर महिलाओं को सशक्त बनाने के मामले में 190 देशों में भारत का 117वां स्थान है।
- डब्ल्यूबीएल सूचकांक के मुताबिक औसत वैश्विक अंक 75.2 पाया गया जो कि पिछले सूचकांक वर्ष 2017 में 73.9 था। भारत ने इस मामले में 74.4 अंक प्राप्त किया है जो कि बेनिन और गेम्बिया जैसे देश के बराबर है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
- कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा कि, "एक गृहिणी की आमदनी को निर्धारित करने का मुद्दा काफ़ी अहम है। यह उन तमाम महिलाओं के काम को मान्यता देता है, जो चाहे विकल्प के रूप में या सामाजिक/सांस्कृतिक मानदंडों के परिणामस्वरूप इस गतिविधि में लगी हुई है। ये बड़े पैमाने पर समाज को संकेत देता कि क़ानून और न्यायालय गृहणियों की मेहनत, सेवाओं और बलिदानों के मूल्य में विश्वास करता है।"
- "यह इस विचार की स्वीकृति है कि, ये गतिविधियां परिवार की आर्थिक स्थिति में वास्तविक रूप से योगदान करती हैं और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में योगदान करती है। इस तथ्य के बावजूद इन्हें पारंपरिक रूप से आर्थिक विश्लेषण से बाहर रखा गया है।