सुप्रीम कोर्ट पर अंतहीन वैधानिक अपीलों का बोझ डालना बंद करे सरकार: अटॉर्नी जनरल
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट पर अंतहीन वैधानिक अपीलों का बोझ डालना बंद करे सरकार: अटॉर्नी जनरल
- सरकारें लंबे समय से मुकदमेबाजी नीति पर चर्चा कर रही हैं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमानी ने शनिवार को कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय पर अंतहीन वैधानिक अपीलों का बोझ डालना बंद करे। एजी ने सुप्रीम कोर्ट में आयोजित संविधान दिवस समारोह में बोलते हुए कहा, यह महत्वपूर्ण है कि सरकार निर्बाध और विशाल प्रवाह के साथ-साथ अंतहीन वैधानिक अपीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट को ओवरलोड करना बंद करे।
वेंकटरमणि ने कहा कि सरकारें लंबे समय से मुकदमेबाजी नीति पर चर्चा कर रही हैं, और ऐसी नीति के उभरने का कोई कारण नहीं था। एजी ने कहा, हमें अपने उच्च न्यायालयों में अंतहीन मामलों की भीड़ को कम करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हर विभाग में एक रिसॉल्यूशन विंग होना चाहिए और हर मामले को कानूनी विवाद का मामला नहीं बनना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून का शासन एक अहिंसक क्रांति है। कानून के शासन के लिए अधिक जगह हिंसा को कम करती है। मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब पश्चिम हमसे सीखने के लिए आएगा।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि उन्हें लगता है कि कॉलेजियम प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है, हालांकि उन्होंने हमेशा इस बात की वकालत की, कि कॉलेजियम प्रणाली सही प्रणाली थी बशर्ते यह ठीक से काम करे। उन्होंने आगे कहा कि अब तक देखी गई इस कार्यप्रणाली में कॉलेजियम सिस्टम की परिकल्पना का आधार यह था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज वकीलों को जानते हैं और उसी हिसाब से वे सर्वश्रेष्ठ वकीलों का चयन करने की सबसे अच्छी स्थिति में हैं।
सिंह ने कहा कि किसी भी कॉलेजियम के लिए उच्च न्यायालयों में प्रैक्टिस करने वाले लाखों वकीलों के बारे में जानना असंभव है और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कॉलेजियम यह जान सके कि कोई विशेष वकील कहां है या उसे पदोन्नत किया जाना चाहिए। कानून फर्मों में वकील हैं, निचली अदालतों में वकील हैं जो पदोन्नति के योग्य हैं। लेकिन व्यक्तिगत रूप से पदोन्नत करने के लिए व्यक्ति को जानने वाले कॉलेजियम की यह प्रणाली एक अत्यंत दोषपूर्ण प्रणाली है और इस प्रक्रिया में हमारी न्यायपालिका को नुकसान हो रहा है। संविधान की रक्षक होने के नाते न्यायपालिका को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है क्योंकि पूरी संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित कानून को भी अदालत कक्ष में बैठे दो न्यायाधीशों द्वारा ठप किया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा, हमारे सिस्टम में न्यायाधीशों के पास इस तरह की शक्ति है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह शक्ति सही हाथों में बनी रहे, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सिस्टम प्रासंगिक बना रहे। संविधान दिवस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, कानून और न्याय राज्य मंत्री एस पी बघेल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और बार के सदस्यों ने भाग लिया।
(आईएएनएस)
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