CAA Hearing: कानून पर रोक लगाने से SC का इनकार, दो हफ्ते में असम-त्रिपुरा पर मांगा जवाब
CAA Hearing: कानून पर रोक लगाने से SC का इनकार, दो हफ्ते में असम-त्रिपुरा पर मांगा जवाब
- असम
- यूपी और पूर्वोत्तर के लिए अलग कैटेगरी बनाई गई
- केंद्र सरकार को याचिकाओं पर जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का वक्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। साथ ही संवैधानिक वैधता परखने की मांग करने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेजने का फैसला किया है। वहीं सीएए पर दाखिल 144 याचिकाओं पर अदालत ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने आदेश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई करते हुए असम, पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तप्रदेश से जुड़ी याचिकाओं के लिए अलग कैटेगरी बनाई है।
किसने क्या कहा?
चीफ जस्टिस शरद बोबडे ने कहा कि हम अभी कोई आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। अभी काफी याचिकाओं पर सुनवाई होना बाकी है। उन्होंने कहा कि कहा असम, नॉर्थईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी। वहीं यूपी में सीएए को लेकर अलग से सुनवाई की जाएगी। बोबडे ने कहा कि पांच जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगा कि इसपर स्टे लगाना है या नहीं। उन्होंने कहा कि याचिकाओं पर केंद्र सरकार को चार हफ्ते में जवाब देना होगा। वहीं असम से जुड़ी याचिकाओं पर केंद्र सरकार को दो हफ्ते का समय दिया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उत्तरप्रदेश में 40 लाख लोगों को संदिग्ध रूप से चिन्हित किया गया है। जिनसे मतदान करने का अधिकार छिना जा सकता है। कृपया कर इस प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाएं। इससे अराजकता और असुरक्षा को रोका जा सकता है।
वकील वैद्यनाथन ने कहा कि बाहर मुस्लिम और हिंदुओं में एनपीआर को लेकर ड़र है। इसको लेकर कोई साफ गाइडलाइंस नहीं हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को संदिग्ध रूप में चिन्हित करने का कोई नियम नहीं है। ऐसे में मतदाता सूची में गड़बड़ी देखने को मिल सकती है।
वकील विकास सिंह ने कहा कि असम से 10 से अधिक याचिकाएं हैं। असम को लेकर अलग से आदेश जारी होना चाहिए।
कपिल सिब्बल ने कहा कि नागरिकता देकर वापस नहीं ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसपर कोई अंतरिम आदेश जारी होना चाहिए। सिब्बल ने कहा, अप्रैल में एनपीआर प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसलिए कोर्ट को पहले कुछ करना चाहिए। एनपीआर को तीन महीने के लिए टाला जाए, ताकि अदालत सीएए पर चल रहे विवाद पर फैसला ले सके। उन्होंने कहा कि कोर्ट फैसला करे कि इन याचिकाओं को संविधान बेंच के पास भेजना है या नहीं।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि हमें सिर्फ 60 याचिकाओं की कॉपी मिली है। केंद्र सरकार को बाकी याचिकाओं की भी कॉपी दी जाएं। उन्होंने कोर्ट में जमा हुई भीड़ पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने जस्टिस बोबडे से निर्देश जारी करने का निवेदन किया कि कौन कोर्ट में आए या नहीं। इसके लिए नियम निर्धारित होने चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा कि अमेरिका और पाकिस्तान में अदालत में आने वाले लोगों के लिए नियम हैं। उन्होंने कहा कि अदालत अब पिटिशन दाखिल करने की परमिश्न नहीं दे। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से जवाब देने के लिए छह हफ्ते का समय मांगा।
इन्होंने दी है याचिका?
सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम लीग, कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत अलेमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्ल और पीस पार्टी आदि शामिल हैं।
62 फीसदी सीएए और 65.4 फीसदी लोग एनआरसी के पक्ष में
पिछले साल दिसंबर में आईएएनएस-सीवोटर के एक सर्वे में चौकाने वाली बात सामने आई थी। जिसके मुताबिक देशभर में 65.4% लोग एनआरसी के लागू करने के पक्ष में है, जबकि 28.3 फीसदी विरोध और 6.3% लोग इस मुद्दे पर कुछ कहना नहीं चाहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व के 65.9, पश्चिम के 67.5, उत्तर 73.8 और दक्षिण भारत के 52.1 फीसदी लोग चाहते हैं कि एनआरसी पूरे देश में लागू होना चाहिए। 62.1 प्रतिशत लोगों ने सीएए का समर्थन किया है, जबकि 36.8 फीसदी लोगों ने इसका विरोध किया है। रिपोर्ट में पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से 57.3, 64.2, 67.7 और 58.5 प्रतिशत लोगों ने क्रमश: कानून के पक्ष में होने की बात कही। इसी प्रकार पूरब में 42.7 प्रतिशत, पश्चिम में 35.4 प्रतिशत, उत्तर में 31.2 प्रतिशत और दक्षिण में 38.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह इस कानून का विरोध करते हैं।