बैन हटते ही बोले आजम खान- चुनाव आयोग का रवैया पक्षपातपूर्ण
बैन हटते ही बोले आजम खान- चुनाव आयोग का रवैया पक्षपातपूर्ण
डिजिटल डेस्क, रामपुर। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने बैन हटते ही चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बड़ा हमला बोला है। आजम खान ने चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए कहा, एक जैसे मामले में मुझे सजा दी गई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को क्लीन चिट। चुनाव आयोग का यह रवैया पक्षपातपूर्ण है। आजम खान ने शुक्रवार को अपने आवास पर मीडिया से बातचीत के दौरान ये बाते कहीं।
दो बार लग चुका है बैन
बता दें कि रामपुर लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी आजम खान पर आपत्तिजनक भाषण देने और आचार संहिता का उल्लंघन करने पर आयोग दो बार बैन लगा चुका है। पहले 72 घंटे का प्रतिबंध लगा था, जो 16 से 18 अप्रैल तक रहा। इसके बाद 1 मई को फिर 48 घंटे की प्रतिबंध लगा, जो शुक्रवार सुबह 6 बजे हटा। प्रतिबंध हटने के बाद दोपहर में आजम ने मीडिया से बात की। इस दौरान उन्होंने कहा, पिछले लोकसभा चुनाव में जब चुनाव आयोग को यह अंदाजा हो गया कि बीजेपी की सरकार बनने जा रही है, तब चुनाव के आखिर तक प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस बार आयोग इसे लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है कि बीजेपी की सरकार बन रही है या नहीं, इसलिए टुकड़ों में प्रतिबंध लगा रहा है।
EC का रवैया मेरे खिलाफ है-आजम
आजम खां ने रामपुर में पत्रकारों से बातचीत में कहा, राहुल गांधी ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर जो आरोप लगाए थे, ठीक वैसी ही बात मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दिसंबर 1992 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री को लेकर कही थी। हालांकि चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को तो क्लीनचिट दे दी, लेकिन मेरे ऊपर प्रतिबंध लगा दिया। आजम ने सवाल किया, आखिर मेरे ऊपर प्रतिबंध क्यों लगाया गया? चुनाव आयोग का यह रवैया मेरे खिलाफ है। चुनाव आयोग का यह फैसला दर्शाता है कि उसका व्यवहार पक्षपातपूर्ण है।
India has become undeclared "Hindu Rashtra", says Azam Khan
— ANI Digital (@ani_digital) May 3, 2019
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"देश अघोषित हिंदू राष्ट्र बन गया"
इतना ही नहीं उन्होंने पीएम मोदी पर भी निशाना साधते हुए कहा, क्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाना ही देशभक्ति है? देश के प्रधानमंत्री नफरत की भाषा बोल रहे हैं। ऐसे में यही लगता है कि देश अघोषित हिंदूराष्ट्र बन गया है। अब बहुसंख्यक समुदाय को यह फैसला करना है कि वह अल्पसंख्यकों को साथ रखना चाहते हैं या नहीं।