समान नागरिक संहिता: 'मुसलमान ऐसा कोई भी कानून नहीं मानेंगे जो शरियत के खिलाफ हो...' जमीयत-उलेमा-ए-हिंद का विरोध

  • देहरादून में समान नागरिक संहिता का विरोध
  • जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने किया यूसीसी कानून मानने से इंकार
  • आदिवासियों की तरह मुसलमानों को भी बाहर रखने की मांग

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-07 05:50 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश होने के बाद कई मुस्लिम संगठन की तरफ से विरोध का स्वर मजबूत किया जा रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाद अब जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने यूसीसी का विरोध किया है। संगठन ने देहरादून में यूसीसी विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद का कहाना है कि मुस्लिम ऐसा कोई भी कानून नहीं मानेंगे जो शरियत के खिलाफ हो। आपको बता दें कि उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया जा चुका है। आज से सदन में विधेयक पर चर्चा की शुरूआत होगी।

शरीयत पर समझौता नहीं

उत्तराखंड विधानसभा में पेस किए गए यूसीसी विधेयक से आदिवासियों को अलग रखा गया है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने इस बात का हवाला देते हुए कहा कि अगर आदिवासी को अलग रखा जा सकता है तो संविधान से मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को आधार मानते हुए अल्पसंख्यकों को भी इस कानून से बाहर रखा जाना चाहिए। इस संगठन के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने यूसीसी पर असहमति जताते हुए कहा, "हम ऐसे किसी भी कानून को स्वीकार नहीं कर सकते हैं जो शरीयत के खिलाफ हो क्योंकि, एक मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन वह शरीयत और मजहब पर कभी समझौता नहीं कर सकता है।"

यूसीसी मौलिक अधिकारों का हनन

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने यूसीसी से आदिवासी समाज की तरह मुललमानों को भी अलग रखने की मांग की। उनका मानना है कि अगर संविधान के किसी प्रावधान के तहत आदिवासियों को समान नागरिक संहिता से बाहर रखा जा सकता है तो संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत मुस्लिमों को भी इस कानून के दायरे से अलग रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने से संविधान से मिले मौलिक अधिकार का हनन होगा। संवैधानिक रूप से सभी को धार्मिक स्वतंत्रता मिलना चाहिए। अरशद मदनी का कहना है कि यूसीसी नागरिकों के मौलिक अधिकार को निरस्त करती है। आदिवासियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखे जाने पर मदने ने सवाल किया कि अगर यह समान नागरिक संहिता है तो नागरिकों के बीच यह अंतर क्यों है?

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