मिशन मून: पुरानी गलती नहीं दोहराएगा नया चंद्रयान, सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसरो ने की है तगड़ी प्लानिंग, दस प्वाइंट में समझें पूरी प्रोसेस
- भारत की मुट्ठी में होगा चांद!
- 23 अगस्त को चांद की दक्षिणी धुव्र पर उतरेगा देश का चंद्रयान-3
डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। भारत मिशन मून के तहत चांद छूने में महज कुछ ही कदम दूर है। बीते दिन यानी 17 अगस्त दोपहर एक से डेढ़ बजे के बीच चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल से विक्रम लैंडर अलग हो गया था। इसरो के मुताबिक, अब दोनों यान 153 km x 163 km की लगभग गोलाकार ऑर्बिट में आगे-पीछे चल रहे हैं। विक्रम, प्रोपल्शन मॉड्यूल से आगे चल रहा है। जिसे आज यानी 18 अगस्त को डीबूस्टिंग और डीऑर्बिटिंग करनी है।
डीबूस्टिंग और डीऑर्बिटिंग का अर्थ, गति और ऑर्बिट की उंचाई को कम करना होता है। विक्रम लैंडर एक ऐसा यान है जो चांद के चारों तरफ चक्कर लगाकर उसकी सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर में ऐसे यंत्र लगे हैं, जो चांद पर प्लाज्मा, सतह की गर्मी, भूकंप और चांद की डायनेमिक्स का अध्ययन करेगा।
विक्रम लैंडर के अंदर प्रज्ञान रोवर है जो लैंडिंग के करीब 10 से 15 मिनट के बाद दरवाजे से बाहर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर का आकार 6.56 फीट x 6.56 फीट x 3.82 फीट है। इसके चार पैर एवं वजन 1749.86 किलोग्राम है।
चंद्रयान-2 के लैंडर से इस बार के यान के लैंडर को काफी मजबूत बनाया गया है ताकि मिशन में किसी तरह की कोई दिक्कत न आए। इस बार के लैंडर को इसरो ने ज्यादा मजबूती के साथ अधिक सेंसर्स के साथ बनाया है ताकि नाकामी का इतिहास फिर से न दोहरा सके। इस बार के विक्रम लैंडर को कुछ खास तकनीक से निर्मित किया गया है। जैसे- लेजर, आएएफ आधारित अल्टीमीटर, लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर, लैंडर हॉरिजोंटल वेलोसिटी कैमरा, लेजर गाइरो बेस्ड इनर्शियल रिफरेंसिंग और एक्सीलेरोमीटर पैकेज।
साथ ही विक्रम लैंडर में 800 न्यूटन थ्रॉटेबल लिक्विड इंजन लगे हुए हैं। इसके अलावा 58 न्यूटन ताकत वाले अल्टीट्यूड थ्रस्टर्स एंड थ्रॉटेबल इंजन कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स, विगेशन, गाइडेंस एंड कंट्रोल से संबंधित आधुनिक सॉफ्टवेयर, हजार्ड डिटेक्टशन एंड अवॉयडेंस कैमरा और लैंडिंग लेग मैकेनिज्म लगे हुए हैं। ये सभी तकनीकें चांद की दक्षिणी सत्तह पर विक्रम लैंडर को आसानी से लैंड कराने में मदद करेंगी।
विक्रम लैंडर के इंटीग्रेटेड सेंसर्स और नेविगेशन परफॉर्मेंस की जांच करने के लिए सबसे पहले हेलिकॉप्टर से उड़ाया गया था। जिसके बाद लैंडर में फिट किया गया था, जिसे इंटीग्रेटेड कोल्ड टेस्ट कहते हैं। इंटीग्रेटेड कोल्ड टेस्ट के बाद इंटीग्रेटेड हॉट टेस्ट हुआ, जिसे लूप परफॉर्मेंस टेस्ट के नाम से भी जानते हैं। इसके प्रशिक्षण के लिए इसरो ने सेंसर्स और एनजीसी को टावर क्रेन से गिराकर देखा था। जिसके बाद लैंडर में फिट किया गया था।
लैंडर में स्थित मैकेनिज्म परफॉर्मेंस की जांच के लिए लूनर सिमुलेंट टेस्ट बेट पर कई बार गिराया गया था। चांद की दक्षिणी सतह पर लैंडिंग होने के बाद विक्रम लैंडर 14 दिनों तक वहां सर्च करेगा। अगर सबकुछ सामान्य रहा तो लैंडर कुछ और दिन चांद पर सर्च अभियान कर सकता है।
विक्रम लैंडर चंद्रयान-3 का सबसे अहम भाग है। लैंडर में चार पेलोड्स लगे हुए हैं।
- पहला रंभा, जो चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाजमा कणों के घनत्व, मात्रा की जांच करने वाला है।
- दूसरा चास्टे, यह चांद की सतह की गरमी यानी टेंप्रेचर की जांच करेगा।
- तीसरा इल्सा, ये लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करने वाला है।
- चौथा और अंतिम लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे है। ये तकनीक चांद के डायनेमिक्स को समझने में मदद करेगा।
विक्रम लैंडर चांद की सतह पर मौजूद रहेगा और वो प्रज्ञान रोवर से सूचना लेगा। जो बेंगलुरु स्थित इंडियन डीप स्पेश नेटवर्क में भेजेगा। अगर लैंडर को लगा की किसी अन्य तकनीक की मदद लेनी है तो वो प्रोपल्शन मॉड्यूल और चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ले सकता है। प्रज्ञान रोवर केवल विक्रम लैंडर से ही कनेक्ट यानी बात कर सकता है।
विक्रम लैंडर जब चांद की दक्षिणी सतह पर उतरेगा, उस समय उसकी गति 2 मीटर प्रति सेकंड रह सकती है। जबकि हॉरीजोंटल गति 0.5 मीटर प्रति सेकंड रहने की उम्मीद है। इसरो की रिपोर्ट के मुताबिक, विक्रम लैंडर 12 डिग्री झुकाव वाली ढलान पर सॉफ्ट लैंडिंग 23 अगस्त को कर सकता है।