संसद भवन पहुंचे देश के सबसे कमजोर जनजातीय समूहों के सदस्य- बिरला ने किया संबोधित

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-12 14:14 GMT
Members of the weakest tribal groups of the country reached the Parliament House : Om Birla addressed.
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोक सभा अध्यक्ष बिरला ने संसद भवन पहुंचे देश के सबसे कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के सदस्यों का संसद के ऐतिहासिक केन्द्रीय कक्ष में स्वागत करते हुए, देश के सबसे वंचित समूह के सदस्यों को संसद भवन में आमंत्रित करने की अनूठी पहल की सराहना की।

बिरला ने अंडमान निकोबार, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, असम, तेलंगाना, मणिपुर और झारखंड के अलावा कई अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आए पीवीटीजी के विभिन्न समूहों के लोगों के साथ बातचीत करते हुए भारत के स्वतंत्रता के संघर्ष में भगवान बिरसा मुंडा और अन्य आदिवासी नेताओं द्वारा दिए गए योगदान का उल्लेख किया और साथ ही भेदभाव का सामना करने वाले आदिवासी लोगों को विशेष सुरक्षा प्रदान करने के लिए संविधान सभा की सराहना भी की।

बिरला ने आधुनिक भारत के इतिहास में केन्द्रीय कक्ष के महत्व की बात करते हुए कहा कि केन्द्रीय कक्ष उन सभी लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है जो संविधान से सभी देशवासियों को प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय कक्ष भारत की आजादी का गवाह था और यहीं पर संविधान निमार्ताओं ने सभी भारतीयों को समानता, न्याय और स्वतंत्रता की गारंटी दी थी। पिछड़ेपन को दूर करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इसे संविधान में शामिल किया।

प्रकृति, परंपरा और संस्कृति के ज्ञान की जनजातीय विरासत के संदर्भ में बोलते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि प्राचीन काल से ही वनवासियों ने प्रकृति के साथ तालमेल से रहने का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों और विशेष रूप से पीवीटीजी की जीवन शैली हमेशा प्रकृति के अनुरूप रही है और आधुनिक दुनिया को उनसे बहुत कुछ सीखना है। उन्होंने प्रधानमंत्री पीवीटीजी मिशन की सराहना की जिसके अंतर्गत इस समूह के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अगले तीन वर्षों में 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे।

बिरला ने आशा व्यक्त की कि पिछली कई सदियों की समझदारी के साथ, पीवीटीजी किसी भी चुनौती का सामना करने और सभी लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार रहेंगे। उन्होंने यह विश्वास भी व्यक्त किया कि भारत में शीघ्र ही न केवल जीवन के सभी क्षेत्रों में बल्कि संसद में भी इस समूह के लोगों का अधिक प्रतिनिधित्व होगा। देश के विभिन्न संस्थानों, शासन और निकायों में जनजातीय समुदायों की भागीदारी को सुव्यवस्थित किए जाने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि जनभागीदारी बढ़ने से जनजातीय समाज के लोग भी इन संस्थाओं के सु²ढ़ीकरण में अपना योगदान सुनिश्चित कर सकते हैं और इससे भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता और विविधता बढ़ेगी।

संसदीय लोकतंत्र शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (प्राइड) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के सदस्यों को आमंत्रित किया गया था।

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