महात्मा गांधी पुण्यतिथि 2024: भगत सिंह की फांसी रुकवाने में महात्मा गांधी ने नहीं निभाई कोई भूमिका? जानिए बरसों पुराने इस आरोप की सच्चाई

  • भगत सिंह की फांसी रुकवाने में महात्मा गांधी ने नहीं किया कोई जतन?
  • जानिए बरसों पुराने इस आरोप की सच्चाई

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-29 18:59 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज पुण्यतिथि है। 30 जनवरी 1948 को भारत ने ऐसे महापुरुष को खो दिया। आज के दिन पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे जिनसे जनता का अटूट प्रेम था। लेकिन, कई लोग आज भी महात्मा गांधी पर कई तरह के आरोप लगाते हैं। इनमें से एक दो आरोपों की सच्चाई आज हम आपके सामने रखने वाले हैं। जिसके जरिए मौजूदा समय में महात्मा गांधी को बदनाम किया जा रहा है। 

पहला आरोप

गांधी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रुक जाती? 

महात्मा गांधी पर एक आरोप लगाया जाता है कि अगर वह चाहते तो भगत सिंह की फांसी रुक जाती मगर उन्होंने इसके लिए प्रयास नहीं किया। इसमें कितनी सच्चाई है आइए जानते हैं।

प्रसिद्ध पुस्तक 'उसने गांधी को क्यों मारा' के लेखक अशोक कुमार पांडेय के मुताबिक, यह आरोप झुठे हैं कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए प्रयास नहीं किया। बता दें कि, भगत सिंह को जे.पी सांडर्स के हत्या करने के आरोप में सजा हुई थी। सांडर्स एक अंग्रेजी पुलिस अधिकारी था। जब यह बात शुरू हुई तो पंजाब के सारे पुलिस अधिकारों ने इस्तीफे की धमकी देना शुरू कर दी थी। उनका कहना था अगर भगत सिंह की फांसी रोकी गई तो हम सब अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। इस बात का जिक्र उस वक्त के न्यूज क्रॉनिकल के संवाददाता बर्निस और द पीपल नामक अखबार ने भी अपने एक लेख में किया था। भगत सिंह की फांसी अगर कोई रुकवा पाता तो वह थे लॉर्ड इरविन जो उस वक्त ब्रिटिश भारत के वायसराय थे। मगर उनके सामने बड़ी चुनौती थी कि उनके ऐसा करने से पंजाब के सारे पुलिस अधिकार इस्तीफा दे देते और प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ जाती।

महात्मा गांधी का लॉर्ड इरविन को संदेश

18 फरवरी को गांधी इरविन को एक पत्र लिखते हैं। जिसमें वह कहते हैं, 'यह मैं निश्चित रूप से कहूंगा कि उनके विचार सही नहीं हैं मगर भगत सिंह एक बहादुर आदमी है। मृत्यु दंड की बुराई यह है कि वह व्यक्ति को सुधरने का मौका नहीं देता। मैं यह मुद्दा आपके सामने एक मानवीय आधार पर रख रहा हूं। और मेरी यह इच्छा है कि इस आदेश को टाल दिया जाए। अन्यथा देश में अनावश्यक उथल-पुथल हो सकती है। अगर आपकी जगह मैं होता तो उन्हें (भगत सिंह) रिहा कर देता। लेकिन सरकारों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती।' गांधी अपने पत्र से यह कहना चाह रहे थे कि भगत सिंह को फांसी की सजा न देकर कोई और सजा सुनाई जाए। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी जाए। यह तो महात्मा गांधी का पहला प्रयास था। मगर इसके बाद भी गांधी ने अन्य प्रयास भी किए। स्थिति ऐसी बन गई थी कि कोई भी प्रयास सफल नहीं रहा।

इरविन ने अपने संस्मरण में क्या लिखा

इस बात का एक और तथ्य हमें इरविन के संस्मरण में भी मिलता है। इरविन संस्मरण में लिखते हैं, 'मुझे डर है कि मैंने अगर भगत सिंह के फांसी के बारे में कुछ नहीं किया तो समझौता टूट सकता है। मैंने कहा इसका दुख मुझे भी होगा।' इरविन अपने संस्मरण में आगे लिखते हैं,' मेरे लिए यह असंभव है कि मैं भगत सिंह की मृत्यु दंड में कोई छूट दे सकूं।' ऐसे में अगर गांधी इरविन पैक्ट तोड़ भी देते तो भी भगत सिंह की फांसी नहीं रुक पाती।

दूसरा आरोप

क्या गांधी ने पाकिस्तान को दिए 55 करोड़?

अविभाजित भारत के रिजर्व बैंक को अक्टूबर 1948 में यह भूमिका दी गई कि वह हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों के रिजर्व बैंक की भूमिका निभाए। रिजर्व बैंक की संपत्ति के बंटवारे के लिए 6 लोगों की कमेटी बनाई गई। जिसमें तीन हिंदुस्तान और तीन लोग पाकिस्तान से थे। यह वह समय था जब भारत के पास कुल 400 करोड़ रुपए की संपत्ति थी। कमेटी ने निर्णय लिया कि 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान को दिए जाएंगे और बाकी बचा पैसा हिंदुस्तान में रहने दे। कांग्रेस नेता और स्वतंत्रता सेनानी पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस पर हस्ताक्षर किए। अब समझौता हो चुका था। हस्ताक्षर के बाद सरदार पटेल ने इसमें एक शर्त को जोड़कर एक पत्र पाकिस्तान को भेजा था। जिसमें लिखा था, 'अगर युद्ध का माहोल होता है तो हम ये समझौता नहीं मानेगें।' पाकिस्तान की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। वैसै भी समझौता तो हो चुका था तो इस शर्त का कोई मतलब नहीं होता। बता दें कि 20 करोड़ रुपए पाकिस्तान को बंटवारे के वक्त ही दिए जा चुके थे और अब 55 करोड़ पाकिस्तान को देने थे।

उस समय आरबीआई के गवर्नर जीडी देशमुख थे। उन्होंने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर एक सुझाव दिया कि हमें पाकिस्तान को प्रतिमाह 3 करोड़ के हिसाब से पैसे देने चाहिए। एक बार में ही पैसे देने से हमें दिक्कत आ सकती है । मगर पत्र पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

कैबिनेट ने लिया 55 करोड़ न देने का निर्णय

इन्हीं अटकलो के बीच हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद शुरू हो गया। जिसके बाद 7 जनवरी को कैबिनेट की बैठक होती है। इस बैठक में सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे बड़े नेता शामिल थे। हालांकि, इस बैठक में महात्मा गांधी नहीं थे। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि हम पाकिस्तान को बाकी बचा पैसा नहीं देंगे। इस फैसले की भनक महात्मा गांधी को बिल्कुल नहीं थी।

जब गांधी को पता चली कैबिनेट की बात

उस समय दिल्ली में हिंसा फैली हुई थी। जिसे शांत करने के लिए महात्मा गांधी ने उपवास और अनशन करने का फैसला लिया। अपने अनशन को समाप्त करने के लिए उन्होंने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई थी, जिसमें 55 करोड़ का जिक्र हो। महात्मा गांधी 12 जनवरी 1948 की शाम को माउंटबेटन से मिलने गए तब उन्हें कैबिनेट के इस फैसले के बारे में पता चला। गांधी ने माउंटबेटन से कहा आप बताएं क्या कहना है आपका? इस पर माउंटबेटन महात्मा गांधी से कहते हैं कि यह राजनीतिक रूप से कमजोर, अविवेकपूर्ण फैसला है जो भारत को असम्मान की स्थिति में डालेगा। माउंटबेटन यह कहना चाहते थे कि अगर भारत पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए नहीं देता है तो यह नए भारत के लिए असम्मान की बात होगी। भारत का मजाक बनाया जाएगा कि नया भारत अपने पहले समझौते से ही मुकर गया। फिर पाकिस्तान इस बात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेकर जाएगा। जिससे भारत की दुनियाभर में भी किरकिरी होगी।

गांधी ने पटेल को बताई माउंटबेटन की बात

जब गांधी ने सरदार पटेल को माउंटबेटन की बात बताई फिर 15 जनवरी को दोबारा मंत्रिमंडल की बैठक होती है। इस बैठक में सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी उपस्थित रहते हैं। मगर इस बैठक में भी गांधी नहीं थे। बैठक के दौरान तीनों नेता एक बादत पर पहुंचते हैं कि अगर हमने जिद में आकर पैसा नहीं दिया तो आगे चलकर हमारा यह फैसला भारत की छवि खराब कर सकता है। 

अनशन खत्म करने के लिए यह थी गांधी की मांग

महात्मा गांधी ने अपना अनशन 12 जनवरी 1948 को शुरू किया था। उनकी मांग थी कि दंगों को खत्म करके सभी लोग शांति बनाए रखें। 18 जनवरी को महात्मा गांधी ने अपना अनशन तोड़ा। जब सभी पक्षों की तरफ से यह समझौता कर लिया गया कि हम दंगे नहीं करेंगे। हम भाईचारे के साथ रहेंगे। मगर समाज में यह भ्रांति फैला दी गई है कि महात्मा गांधी का यह अनशन पाकिस्तान को 55 करोड़ दिलाने के लिए था। बता दें कि, खबर में दी गई सारी जानकारी अशोक कुमार पांडे की पुस्तक ' उसने गांधी को क्यों मारा' से ली गई है।

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