अयोध्या गोली कांड: श्री राम के नाम पर आहुति देने में जरा भी नहीं हिचके कोठारी बंधु, हंसते हंसते सीने पर खाई थीं गोलियां

  • अयोध्या गोली कांड में हुई थी कोठारी बंधुओं की मौत
  • बाबरी की गुंबद पर चढ़कर फहराया था तिरंगा
  • सैंकड़ों किलोमीटर चलकर आए थे अयोध्या

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-14 19:02 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में साल 1990 में कारसेवकों पर चली गोलियां भी शामिल हैं। इस वर्ष 21 से 30 अक्टूबर के बीच लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। विवादित स्थल के चारों तरफ पुलिस का घेरा होने के बावजूद कारसेवक बाबरी मस्जिद परिसर में घुस गए। उस समय इन्हें रोकने के लिए परिसर और अयोध्या में लगभग 30 हजार जवान तैनात थे। जवानों की इतनी सघन तैनाती के बावजूद कारसेवकों ने बैरिकेडिंग तोड़कर मस्जिद के अंदर प्रवेश किया।

भारी भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन ने पहले आंसू गैस छोड़े और फिर फायरिंग भी की, जिसके चलते कई कारसेवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। राम मंदिर के लिए जान की आहुति देने वाले इन्ही कारसेवकों में से दो नवयुवकों, जो रिश्ते में भाई भी थे, के बारे में हम आपको बताएंगे। इन्हीं दोनों भाईयों ने मस्जिद के गुम्बद पर चढ़कर पहली बार भगवा फहराने का साहस किया था और अपने सीने पर गोली भी खाई थीं। 25 साल से कम उम्र में इतना बड़ा बलिदान देने वाले ये दोनों कारसेवक मंदिर आंदोलन में बहुत बड़ी मिसाल बने थे। इनका नाम शरद कोठारी और रामकुमार कोठारी थी। इनमें से शरद की उम्र 20 जबकि रामकुमार की उम्र 23 साल थी। मंदिर आंदोलन में दिए अपने इस अतुलनीय योगदान के चलते कोठारी ब्रदर्स का नाम राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गए। 

गुंबद पर चढ़कर फहराया भगवा

21 से 30 अक्टूबर के बीच लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या आए। 30 अक्टूबर को सुबह 10 के करीब कारसेवक बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। तब प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। सरकार का आदेश था कि बाबरी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने उन पर आंसू बम के गोले फेंकना शुरू कर दिया साथ ही कारसेवकों को पकड़कर एक बस में भरकर शहर के बाहर छोड़ा जा रहा था। 11 बजे कारसेवकों ने बस को अपने नियंत्रण में ले लिया और तेजी से बैरिकेडिंग की ओर बढ़े। बैरिकेडिंग टूटते ही रास्ता खुल गया और कारसेवकों की भीड़ तेजी से बाबरी परिसर में घुसी।

कोठारी ब्रदर्स मस्जिद परिसर में दाखिल होने के बाद गुम्बद की ओर बढ़े। 30 अक्टूबर को गुम्बद के ऊपर सबसे पहले शरद कोठारी चढ़ने में कामयाब रहे। इसके बाद राजकुमार कोठारी भी गुम्बज पर चढ़ गए और दोनों भाई ने मिलकर वहां भगवा फहराया। इस तरह बाबरी पर सांकेतिक रूप से हिंदुओं के राम मंदिर के दावे को पहली बार मूर्त रूप दिया गया।

200 किमी पैदल चलकर पहुंचे थे अयोध्या

कोठारी ब्रदर्स 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंच पाए थे। 'अयोध्या के चश्मदीद' किताब में कोठारी ब्रदर्स के दोस्त राजेश अग्रवाल लिखते हैं, शरद और राजकुमार कोठारी 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले थे। उस दौरान सरकार ने ट्रेन और बसें बंद कर दी थी जिस वजह से वे बनारस आकर रूक गए। बस और ट्रेन बंद होने के कारण दोनों भाई बनारस से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बा तक टैक्सी से आए। आगे रास्ता बंद होने के कारण टैक्सी भी छोड़नी पड़ी और 200 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद दोनों अयोध्या पहुंचे।

गोली लगने से हुई मौत

30 अक्टूबर को बाबरी पर भगवा फहराने के बाद 2 नवंबर को दोनों भाई को गोली लगी। 'अयोध्या के चश्मदीद' किताब के मुताबिक, शरद और राजकुमार कोठारी दिगंबर अखाड़े की ओर से विनय कटियार के नेतृत्व में हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। इस बीच पुलिस की फायरिंग शुरू हो गई। आवाज सुनकर गोलियों से बचने के लिए दोनों भाई कुछ पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए लेकिन, थोड़ी देर बाद जैसे ही बाहर आए पुलिस ने उन पर गोलियां दाग दीं। गोली लगने से दोनों भाईयों की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद 4 नवंबर को सरयू घाट पर दोनों भाईयों का अंतिम संस्कार हुआ जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए।

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