जानिए चंद्रयान -3 से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में, जिनकी बदौलत भारत दुनिया में बना पहला देश

  • चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग
  • साउथ पोल चुनने की वजह
  • भारत बना दुनिया का पहला देश

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-24 12:26 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय चंद्रयान के कदम रखते हुए पूरे देश में जश्न का माहौल पैदा हो गया। सभी भारतीयों ने इसरो के वैज्ञानिकों को शुभकामनाएं और बधाई दी। चंद्रयान 3 ने चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिग कर और भारतीय तिरंगा फहराकर पूरी दुनिया में भारत की छाप छोड़ी। साउथ पोल पर लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया । इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन भी चंद्रमा पर लैंडिग करवा चुके है, लेकिन तीनों ही देशों ने मून की भूमध्यरेखा पर किसी कोण से लैंडिग करवाई है। हम आपको बताना चाहेगे कि सॉफ्ट लैडिंग और हार्ड लैडिंग क्या होती है। और इसरो ने चंद्रमा पर लैंडिग करवाने की तारीख 23 अगस्त और दक्षिणी ध्रुव को ही क्यों चुना था।

 इससे पहले आपको बता दें मून मिशन का नाम पहले सोमायान था, जिसका अर्थ होता हे चंद्रमा। बाद में इसका नाम चंद्रयान कर दिया था। ये नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 1999 में दिया था, जिसका मतलब होता है चंद्रमा शिल्प । चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी और 40 दिनों की लंबी यात्रा पूरी की है। विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के बाद रोवर जिसका नाम प्रज्ञान है, वह चंद्रमा की सतह से डाटा संग्रह करने का काम करेगा ,रोवर जमीन और केमिकल अध्ययन करेगा। रोवर में एक यंत्र रम्भा भी है, जो चंद्रमा के वायुमंडल की स्टडी करेगा।

आपको बता दें इसरो ने 2008 में पहला चंद्रयान भेजा,दूसरा चंद्रयान 2019 में भेजा और तीसरा चंद्रयान 14 जुलाई 2023 को भेजा जो 23 अगस्त 2023 को चालीस दिन बाद सफल लैंडिग कर सका। इस बार भारत ने वो गलती नहीं दोहराई जो पहले के दो चंद्रयान को लैंडिंग करवाने में दोहराई थी। इस बार भारत ने सॉफ्ट लैंडिग करवाई ।

सॉफ्ट लैंडिंग हार्ड लैंडिंग के विपरीत किसी भी प्रकार के विमान, रॉकेट या अंतरिक्ष यान की वो लैंडिंग है जिसके परिणामस्वरूप वाहन या उसके पेलोड को नुकसान नहीं होता है। सॉफ्ट लैंडिंग में औसत ऊर्ध्वाधर गति लगभग 2 मीटर प्रति सेकंड या उससे कम होनी चाहिए। सॉफ्ट लैंडिंग का सबसे अच्छा उदाहरण पैराशूट से कूदता आदमी। चांद का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण की अपेक्षा 1/6 है। ऐसे में चांद पर कोई भी चीज पृथ्वी की तुलना में 6 गुना तेजी से गिरेगी। इसे धीमा करने के लिए चंद्रयान 3 के नीचे पांच इंजन लगाए गए थे।जो विपरीत दिशा में दबाव बनाकर विक्रम की गति को धीमा कर रहे थे। जिससे विक्रम लैंडर धीरे धीरे चांद की सतर पर उतर रहा था। इसे ही सॉफ्ट लैंडिंग कहा जाता है। चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर को चांद की सतह से 25 किलोमीटर की ऊंचाई से सॉफ्ट लैंडिंग कराना स्टार्ट करा दिया था। भारतीय समयानुसार बुधवार 23 अगस्त 2023 को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान -3 की सफल लैंडिंग हुई थी। अब अगले 14 दिन तक विक्रम लैंडर और रोवर चांद की सतह पर खोज करेगा। 14 दिन इसलिए क्योंकि चंद्रमा पर 14 दिन के रात दिन होते है। चंद्रमा पर दिन की शुरूआत 23 अगस्त से शुरू हो गई थी।

चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी सबसे पहले दक्षिणी ध्रुव पर पड़ती है इसलिए चंद्रयान -3 को साउथ पोल पर लैंड करने का इसरो प्लान था, रोशनी से विक्रम लैंडर और रोवर सौर ऊर्जा से चार्ज भी हो जाएगे। दूसरी बात साउथ पोल पर छाया लंबे समय तक रहती है और तापमान -100 डिग्री से भी नीचे चला जाता है। ऐसे में यहां खनिजों की मौजूदगी होने की अधिक संभावना है, जिनका विश्लेषण करने में आसानी होगी। कई वैज्ञानिकों द्वारा यहां बर्फ जमा होने की बात कही जा रही है। वर्ष 2022 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका के पास वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक 11 सफल सॉफ्ट लैंडिंग का रिकॉर्ड है।

बीबीसी ने अपनी खबर में नासा के हवाले से बताया कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य क्षितिज के नीचे या हल्का सा ऊपर रहता है। ऐसे में जितने दिन सूर्य की थोड़ी-बहुत रोशनी दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचती है, उन दिनों में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है। चांद का दक्षिणी ध्रुव क़रीब ढाई हज़ार किलोमीटर चौड़ा और ये आठ किलोमीटर गहरा गड्ढे के किनारे स्थित है जिसे सौरमंडल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर माना जाता है. इंपैक्ट क्रेटर से आशय किसी ग्रह या उपग्रह में हुए उन गड्ढों से है जो किसी बड़े उल्का पिंड या ग्रहों की टक्करों से बनता है।

वहीं हार्ड लैंडिंग सॉफ्ट लैंडिंग की तुलना में कम जटिल है। हार्ड लैंडिंग आमतौर पर हवाई सर्वेक्षण में काम आता है। इसमें अंतरिक्ष यान नष्ट हो जाते हैं क्योंकि सॉफ्ट लैंडिंग की तुलना में यह और अधिक गति से किया जाता है। हार्ड लैंडिंग आम तौर पर दुर्घटना से अलग होती है क्योंकि इससे यान को बड़ा नुकसान होता है। इसरो के पूर्व चीफ आर के सिवन ने कहा कि विक्रम लैंडर के सॉफ्टवेयर में खराबी के कारण यान की हार्ड लैंडिंग हुई थी। बता दें कि अभी भी अंतरिक्ष की सतह पर चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर मौजूद है। चार साल पहले 2019 में चंद्रयान-2 मिशन उस समय विफल हो गया था जब इसका लैंडर 'विक्रम' लैंडिंग के प्रयास में टचडाउन से कुछ मिनट पहले चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। भारत ने चंद्रमा पर पहला मिशन 2008 में भेजा था।

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