इसरो चीफ का बड़ा बयान: 2040 तक चांद पर कदम रखेगा भारतीय! एस. सोमनाथ बोले - 'स्पेस टूरिज्म में अपार संभावनाएं'
- चांद पर पहुंचेगा भारतीय
- बिट्स पिलानी के दीक्षांत समारोह में बोले इसरो चीफ
- तेजी से उभरेगा स्पेस टूरिज्म का क्षेत्र
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अब भारत का नागरिक चांद पर कदम रख सकेगा। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के चीफ डॉ. एस सोमनाथ ने कहा है कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चांद पर एक भारतीय को उतारने का है। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक अतंरिक्ष स्टेशन बनाने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद तक मानव के जाने के लिए एक इंटरमीडियम होना चाहिए। इसके लिए माइक्रोग्रेविटी रिसर्च और कई स्पेशल स्पेस मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करना होगा।
इसरो चीफ ने कहा कि फिलहाल हम लर्निंग फेज में है और सीखने की हमारी यह यात्रा लगातार जारी है। रविवार को झुंझुनूं जिले के बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी संस्थान में हुए दीक्षांत समारोह में उन्होंने यह बात कही। इस समारोह में देश के कई जाने माने विज्ञानिक भी शामिल हुए थे।
'उभरेगा स्पेस टूरिज्म का क्षेत्र'
एस. सोमनाथ ने कहा, 'अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क चांद पर मानव भेजने, मंगल पर सोसाइटी स्थापित करने की प्लानिंग कर रहे है। उनकी योजना है कि वहां (मंगल ग्रह) लाखों लोगों के लिए कॉलोनी बनाएंगे और एक टिकट से लोग वहां जा सकेंगे।'
इसरो चीफ ने कहा- 'मुझे लगता है कि स्पेस टूरिज्म का क्षेत्र अच्छा खासा उभरेगा। इस क्षेत्र में भारत के लिए भी अपार संभावनाएं है। हमें बहुत किफायती इंजीनियरिंग के लिए जाना जाता है। हमारा मून और मार्स मिशन दुनिया के सबसे कम लागत वाले मिशन में से एक रहा है और इन दोनों ने हमें बहुत सम्मान भी दिलाया है।'
उन्होंने आगे कहा, 'हमने अगले 5 से 60 सालों के दौरान भविष्य को लेकर भी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की है। सरकार ने इसके लिए 30 हजार करोड़ रुपए के बजट की घोषणा भी की है। वर्तमान समय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक बड़ा ऐतिहासिक क्षण है।'
पहले से सस्ता स्पेश मिशन
इसरो चीफ ने छात्रों से कहा, 'पूरे स्पेस मैकेनिज्म में अब बदलाव आ रहा है, जिसे समझना चाहिए। अंतरिक्ष तक पहुंचने और इसके नियमों के बारे में जानना पहले जितना कठिन था, उतना अब नहीं है। जब अमेरिकियों ने मून मिशन के बारे में सोचना शुरू किया था, तो उन्हें अंतरिक्ष कार्यक्रम में बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट करना पड़ता था। उन्हें अपनी राष्ट्रीय संपत्ति का लगभग 20-30 प्रतिशत इन्वेस्टमेंट करना पड़ा था, ताकि वे आज की तरह साइंस कैपेसिटी डेवलप कर सकें। अब अंतरिक्ष तक पहुंचना आसान हो गया है। कोई भी आजकल उपग्रह लॉन्च कर सकता है। यह विश्वविद्यालयों और संस्थानों में भी किया जा सकता है और सैटेलाइट लॉन्च की लागत इतनी कम हो गई है कि आज अंतरिक्ष में लगभग 20 हजार उपग्रह हैं। लगभग 50 हजार से अधिक उपग्रह मिनिमम-लेटेंसी टेली-कम्युनिकेशन सेवाएं और इंटरनेट सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, जो वास्तव में काफी हैरान कर देने वाला आंकड़ा है।