एकतरफा मुस्लिम तलाक मामला: मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, पत्नी के न मानने पर तलाक के लिए कोर्ट का ही आदेश होगा मान्य
- एकतरफा मुस्लिम तलाक मामले में सुनवाई
- मद्रास हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
- तलाक के लिए कोर्ट का आदेश ही होगा मान्य
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मद्रास हाई कोर्ट ने सोमवार को मुस्लिम तलाक के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट में जस्टिस जी आर स्वामीनाथन की बेंच ने सुनवाई की। जस्टिस स्वामिनाथन ने अपने फैसले में कहा कि यदि पति के तलाक देने की बात को पत्नी झुठला रही है। ऐसी स्थिति में अदालत से ही तलाक कराया जा सकता है। इस फैसले को सुनाते हुए कोर्ट ने तमिलनाडु की शरीयत काउंसिल की ओर से तलाक सर्टिफिकेट को अवैध बताया गया। इसी के साथ कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पति के दूसरी बार शादी करने पर वह अपनी पहली पत्नी को मुआवाजा और गुजारा भत्ता देगा।
कोर्ट ने एकतरफा तलाक पर सुनाया फैसला
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पति के दूसरी शादी करने पर वह अपनी पहली पत्नी को उसके साथ रहने के लिए दबाव नहीं बना सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने की अनुमति है। लेकिन, इसके चलते पहली पत्नी को मानसिक रूप से कष्ट पहुंचता है। इस वजह से 'घरेलू हिंसा कानून' की धारा 3 के तहत इसे क्रूरता के रूप में माना जाता है। यदि पति के दूसरे शादी से पहली पत्नी स्वीकार्य नहीं करती है। ऐसे में धारा 12 के तहत पति का दायित्व है कि वह अपनी पहली पत्नी के भरण-पोषण के लिए पैसे दें।
दरअसल, कोर्ट ने यह फैसला साल 2010 में दोनों पक्षकारों की शादी मामले के संबंध में सुनाया है। इस मामले में पत्नी की ओर से पति के खिलाफ 'घरेलू हिंसा कानून' के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। इस बारे में पति का कहना था कि उसने महिला को पहले ही तलाक दे दिया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक लेने के लिए 3 नोटिस का होना जरूरी होती है। लेकिन, इस मामले में पति ने कोर्ट के समक्ष पहला और दूसरा नेटिस ही रखा था।
तलाक की मान्यता देने वाली संस्था अवैध - मद्रास हाई कोर्ट
कोर्ट में पति ने तमिलनाडु मुस्लिम तौहीद जमात की शरीयत काउंसिल के चीफ काज़ी का एक सर्टिफिकेट पेश किया। यह सर्टिफिकेट 29 नवंबर 2017 को जारी किया गया था। इसमें पति को तलाक की मान्यता प्राप्त थी। इस सर्टिफिकेट में तलाक होने की पुष्टि पति के पिता की ओर से की गई है। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि तीसरे नोटिस के बजाए पिता की गवाही को तलाक की मान्यता नहीं प्राप्त हो सकती है।
इसके बाद हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शरीयत काउंसिल या इस तरह की अन्य किसी भी निजी संस्था को तलाक का सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है। तलाक पर विवाद को लेकर पति को कानून के तहत गठित कोर्ट से अपील करनी चाहिए। कोर्ट में ही फैसला हो सकता है कि वास्तव में तलाक हुआ या नहीं। इस स्थिति में अगर हाई कोर्ट ने यह मानने से मना कर दिया कि पक्षकारों के बीच तलाक हो चुका है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को भी बरकरार रखा, जिसमें पति से कहा गया था कि वह पत्नी को अपनी मानसिक क्रूरता के लिए 5 लाख रुपए मुआवजा दे और हर महीने 2500 रुपए गुजारा भत्ता भी दे।