चुनाव की तैयारी: बीजेपी को आई पुराने साथियों की याद, फिर से जोड़ने की कवायद शुरू, आम चुनाव में बड़ा फायदा या कांग्रेस का नुकसान
- बीजेपी आम चुनाव में कई पुराने साथियों को फिर साथ ला सकती है
- पंजाब में अकाली दल तो यूपी में आरएलडी बीजेपी में हो सकती है शामिल
- आंध्र में टीडीपी का फिर से मिल सकता है साथ
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता इस बार 400 का आंकड़ा पार करने का दावा ठोक रही है। दावे के साथ चुनाव को लेकर पार्टी की तैयारियों में भी दम नजर आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी हर स्तर पर चुनाव के लिए पुख्ता तैयारी करती दिखाई दे रही है। इंडिया अलायंस को कमजोर करने की बात हो या एनडीए गठबंधन को मजबूत करने की भाजपा कहीं भी चूकना नहीं चाहती है। यूपी जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीट हैं वहां स्थिति मजबूत होने के बावजूद भाजपा खुद को और बेहतर रखने के लिए दाव-पेंच लगा रही है। खबरों की मानें तो सपा की सहयोगी पार्टी आरएलडी जल्द ही भाजपा में शामिल होने जा रही है। बिहार में ऐसी एक बड़ी और कामयाब कोशिश पहले ही की जा चुकी है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में भी भाजपा प्रभावशाली और चुनाव के दृष्टिकोण से फायदेमंद पार्टियों के साथ गठजोड़ करने की कोशिशों में लगी हुई है।
पंजाब में अकाली दल को वापस लाने की कोशिश
पंजाब की राजनीति में आम आदमी पार्टी का सबसे ज्यादा दबदबा है। हालांकि, ये दबदबा प्रदेश की राजनीति तक ही सीमित है। पिछले लोकसभा चुनाव में आप को यहां सिर्फ एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल हुई थी। वहीं कांग्रेस ने 13 में से 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार 'इंडिया' गठबंधन से खुद को अलग रखते हुए आप ने पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया है।
भाजपा ने 2019 में अकाली दल के साथ मिलकर 4 सीटें जीती थी। किसान आंदोलन के दौरान दोनों दलों ने मतभेद के कारण अपने रास्ते अलग कर लिए थे। वहीं 2014 के आम चुनाव में दोनों दल के गठजोड़ ने 6 सीटों के साथ सबसे मजबूती स्थिति में थी। वहीं आप को 4 और कांग्रेस को तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा था। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पंजाब में अपने सबसे पुराने साथियों में से एक अकाली दल के साथ फिर से वापसी कर सकती है।
रणनीतिक दृष्टि से दोनों पार्टी को एक-दूसरे की जरूरत है। ग्रामीण इलाकों में अकाली दल का वोट शेयर बेहतर है तो वहीं शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ मजबूत है। यही नहीं अकाली दल के साथ अमृतसर, जालंधर, लुधियाना और पठानकोट जैसे शहरी इलाकों में भाजपा की ताकत और बढ जाती है। ऐसे में अगर दोनों दल साथ आते हैं तो एनडीए 2014 के लोकसभा चुनाव जैसे या उससे बेहतर परिणाम हासिल कर सकती है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय यूनिट पंजाब में अकाली दल का साथ चाहती है। भाजपा के प्रति पिछले कुछ समय से अकाली दल नर्म रूख अपनाए हुए है। बीते दिनों अकाली दल ने एक देश एक चुनाव का भी समर्थन किया था। दोनों दल का गठजोर आप और कांग्रेस के लिए पंजाब में चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश में मिल सकता है आरएलडी का साथ
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कुल 80 लोकसभा सीटें हैं। यहां भाजपा की स्थिति काफी मजबूत है। योगी आदित्यनाथ की प्रदेश सरकार और राम मंदिर का सकारात्मक प्रभाव निश्चित तौर पर भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिलेगा। अच्छी स्थिति में होने के बावजूद भाजपा यहां काफी एक्टिव है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां 80 में से 62 सीट हासिल किए थे। वहीं बसपा ने 10 और सपा ने पांच सीटें जीती थी तो कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट से संतोष करना पड़ा था।
रिपोर्ट्स की मानें तो सपा की सहयोगी दल आरएलडी जल्द ही भाजपा में शामिल हो जाएगी। इससे भाजपा को फायदा मिलने से ज्यादा विपक्ष को नुकसान झेलना पड़ेगा। अखिलेश यादव पहले से ही इंडिया अलायंस से दूरी बनाए हुए हैं। आरएलडी के टूटने से सपा नेता को बड़ा झटका लग सकता है। खबरों की मानें तो, भाजपा ने आरएलडी को बिजनौर और बागपत जैसी लोकसभा सीटों का ऑफर दिया है।
शुक्रवार को पीएम मोदी ने आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के दादा और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया है। भाजपा को इस फैसले का चुनावी फायदा मिलने के पूरे आसार हैं। आरएलडी ने योगी सरकार का विधायकों के अयोध्या दौरे के प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया है जबकि सपा बाद में अलग से राम मंदिर जाने की बात कह रही है। इस सबके बाद जानकार आरएलडी का पाला बदलना लगभग तय मान रहे हैं।
नायडू और शाह की मुलाकात के मायने
पिछले दिनों आंध्र प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में से एक टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) नेता चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली पहुंचकर अमित शाह से मुलाकात की। राजनीतिक विश्लेषक इसे एक और गठबंधन की तैयारी मान रहे हैं। इसके अलावा वाईएसआर कांग्रेस के तीन सांसदों ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कयास लगाया जा रहा है कि तीनों बहुत जल्द टीडीपी में शामिल हो जाएंगे।
टीडीपी के घर वापसी से दक्षिण में खस्ता हाल भाजपा को मदद मिलने की पूरी संभावना है। भाजपा का साथ टीडीपी के लिए भी काफी अहम है। पिछले विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू से 175 में से 151 सीटें जीतकर सत्ता छीन ली थी। इसके अलावा आंध्रप्रदेश की 25 में से 22 लोकसभा सीटों पर भी कब्जा जमाए हुए है। लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं।
बिहार के खेला में भाजपा
इंडिया गठबंधन में संयोजक की भूमिका से नीतीश ने ऐसी पलटी मारी की पूरा देश देखता रह गया। नीतीश कुमार ने एक झटके में इंडिया अलायंस को अलविदा कह एनडीए में शामिल हो गए। लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए नीतीश का साथ बेहद अहम है। बिहार में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव ज्यादा है और यहां जीत हासिल करने के लिए नीतीश का चेहरा भाजपा के हित में है।
राजद प्रदेश में अपना रास्ता साफ करने के लिए इंडी ब्लॉक के बहाने नीतीश को राज्य के सत्ता से दूर केंद्र में धकेलने की कोशिश में लगी हुई थी। नीतीश बाबू ने पाला बदलकर सारी योजना पर पानी फेर दिया। नीतीश के आने से भाजपा को दो स्तर पर फायदा हुआ। लोकसभा चुनाव में खुद को मजबूत करने के साथ इंडिया अलायंस को तोड़ने का सिरा भाजपा ने यहीं से खोजा।
भाजपा आगे या इंडिया छूट रही है पीछे
भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अबकी बार 400 पार का नारा दे चुकी है। बड़ी जीत हासिल करने के लिए पार्टी सभी स्तरों पर हर संभव प्रयास कर रही है। भारतीय जनता पार्टी हर राज्य, सीट, जाति और वर्ग को टार्गेट करने का प्लान बनाते नजर आ रही है तो वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया खुद में उलझ कर टूटती जा रही है।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडी ब्लॉक अब तक सीट शेयरिंग की चुनौती का काट निकालने में नाकामयाब रही है। नतीजा यह है कि एक-एक कर स्थानीय प्रभाव रखने वाले घटक दल विभिन्न राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते जा रहे हैं। इंडी ब्लॉक के साथ होने का दावा करने के बावजूद टीएमसी और आप जैसी पार्टियां सीट शेयरिंग में पेंच फंसते ही अलग-थलग हो गई। बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। पंजाब में आप भी अकेले चुनाव लड़ने को तैयार है। इन सब के बावजूद इंडी ब्लॉक या इसका नेतृत्व कर रही कांग्रेस खुद को एनडीए के खिलाफ मजबूत करने के लिए कोई भी कदम उठाती नजर नहीं आ रही है। इसके उलट भाजपा एक-एक सीट और वर्ग को तवज्जो देते हुए सभी को रणनीतिक तौर पर साधने की कोशिशों में जुटी हुई है।