जीत का प्रतीक: अयोध्या नहीं बल्कि सबसे पहले यहां थी बाबरी मस्जिद! पानीपत की लड़ाई जीतने की याद में बाबर ने कराया था निर्माण

  • पहली मुगल स्मारक थी ये मस्जिद
  • मुगल वास्तुकला का शानदार नमूना
  • संरक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-06 11:16 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बाबरी मस्जिद का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में अयोध्या की मस्जिद और इससे जुड़ा राम जन्मभूमि विवाद आता है। अगर आप से कोई कहे की असली बाबरी मस्जिद अयोध्या नहीं बल्कि पानीपत में है तो शायद ही आप इस बात पर भरोसा करेंगे। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हरियाणा के पानीपत में एक ऐसी मस्जिद है जिसे कुछ लोग ओरिजनल बाबरी मस्जिद कहते हैं। इस मस्जिद को काबुली बाग मस्जिद के नाम से जाना जाता है जिसे मुगल वंश के संस्थापक और पहले मुगल शासक कहे जाने वाले बाबर ने बनवाया था।

पानीपत के पहले युद्ध में इब्राहिम लोधी को हराने के बाद बाबर ने दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया। इस जीत के बाद बाबर ने यहां पर बाग और मस्जिद बनवाई। अपनी बेगम मुसम्मत काबुली के नाम पर मस्जिद का नाम काबुली मस्जिद रखा। मस्जिद के चारों तरफ बाग भी बनवाया गया जिसे काबुली बाग कहा जाता है। काबुली बाग मस्जिद के अलावा इसे बाबरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।

पहली मुगल स्मारक

यह उस समय की बात है जब दिल्ली पर इब्राहिम लोधी का शासन था। वहीं तैमूरवंशी बाबर दिल्ली की सत्ता पर राज करना चाहता था। बाबर ने अपनी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए लोधी साम्राज्य के कई छोटे-छोटे इलाके पर हमला कर उन्हें जीत लिया। इसके बाद 1526 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी को हराकर बाबर ने दिल्ली की सत्ता पर अपना शासन स्थापित किया। जीत के ठीक बाद बाबर ने पानीपत में एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसका नाम अपनी बेगम के नाम पर रखा। बाबर द्वारा बनवाई गई यह पहली स्मारक थी जिस वजह से इसे असली बाबरी मस्जिद माना जाता है। बाबर द्वारा बनवाई गई यह मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक शानदार नमूना थी। जो पानीपत के युद्ध में हासिल की गई जीत का प्रतीक भी बनी।

आठ कोने वाली मस्जिद

काबुली बाग मस्जिद को मुगल वास्तुकला का शानदार नमूना माना जाता है। इस मस्जिद की वास्तुकला को तैमूर वास्तुकला भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर किसी भी इमारत के कमरे में चार कोना होते हैं लेकिन इस मस्जिद में कुल आठ कोने हैं। मस्जिद का मुख्य हॉल चूने से बना हुआ है। समय के साथ अन्य मुगल शासकों ने इस इमारत का विस्तार किया। मस्जिद के दोनों तरफ दो कोठरियां भी बनी हुई हैं जिनपर फारसी शिलालेख उकेरें हुए हैं। समय के साथ यह मस्जिद खंडहर बनती जा रही है। काबुली बाग मस्जिद के संरक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास है।

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