राम मंदिर: कांग्रेस से ज्यादा समझदार निकले केजरीवाल! राम मंदिर पर आप के रुख ने किया हैरान

  • कांग्रेस ने ठुकराया न्योता
  • आप की अलग चाल
  • दलों का अलग अलग रुख

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-11 14:15 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। 22 को जनवरी अयोध्या में रामलला की प्राण- प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन होने जा रहा है जिसके लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र की तरफ से विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को न्योता भेजा गया। इस आयोजन का न्योता कांग्रेस को भी गया। लेकिन कांग्रेस ने न्योते को अस्वीकार कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को इस फैसले से बड़ा खामियाजा भुगतना होगा। जबकि इंडिया गठबंधन में ही शामिल आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर बहुत सोच समझ कर आगे बढ़ रही है। जिसे आम आदमी पार्टी का स्मार्ट मूव भी कहा जा सकता है।

क्या है आप का स्मार्ट मूव?

इंडिया गठबंधन से जुड़े अलग अलग दल लगातार राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर मुखर हैं। अखिलेश यादव भी मोदी सरकार पर इस मुद्दे को लेकर निशाना साधते रहे हैं। कांग्रेस को तो इस समारोह में शामिल होने का न्योता भी भेजा गया। लेकिन कांग्रेस की दो प्रमुख शख्सियत सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया। इन सबसे उलट इंडिया गंठबंधन में ही शामिल आप ने पूरे मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। आप ने अब तक न तो राम मंदिर पर कोई टिप्पणी दी है न ही इसके प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर कुछ कहा है। देखा जाए तो राम मंदिर मामले पर आप भी तटस्थता की राजनीति पर ही आगे बढ़ रही है। जिससे उसे फायदा भले ही न हो लेकिन नुकसान होने की कोई गुंजाइश नहीं है।

कांग्रेस को नुकसान!

21 तारीख के लिए भेजे गए प्राण- प्रतिष्ठा निमंत्रण को कांग्रेस ने अस्विकार कर दिया। इस मामले पर 20 दिनों बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कांग्रेस ने कहा- रामलला की प्राण - प्रतिष्ठा का आयोजन भाजपा और आरएसएस का राजनीतिक इवेंट है, भाजपा राम मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट की तरह इतेमाल कर अधूरे राम मंदिर में आयोजन करा रही है। इस मामले पर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने भी अपनी राय जाहिर की है। उनके मुताबिक वर्तमान में कांग्रेस की छवी मुस्लिम परस्त बन चुकी है, अगर कांग्रेस रामलला की प्राण- प्रतिष्ठा आयोजन में जाती है तो उसे आने वाले आम चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है। वहीं अगर वो आयोजन में नहीं जाती है फिर कांग्रेस को उस हिंदू वोटबैंक से भी हाथ धोना पड़ेगा, जो अब तक उसके साथ था। इसलिए इस मुद्दे पर कांग्रेस को सूझ-बूझ से काम लेना होगा।

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