“प्रकृति की नियत पर संदेह: करो ना” - पंकज राय
“प्रकृति की नियत पर संदेह: करो ना” - पंकज राय
“प्रकृति की नियत पर,संदेह करो ना
इसके संसाधनों को, ज्यादा छेड़ो ना
नदी के बहाव की दिशा मे बहने से,सफर हल्का हो जाता है
वर्ना कुदरत से लड़ने मे, वजूद मिट जाता है”
डिजिटल डेस्क, भोपाल। आपने अक्सर कई बार यह अनुभव किया होगा कि, जब भी आप पहाड़ की किसी ऊंची चोटी पर कोई आवाज जोर से लगाते हो, तो कुछ समय बाद इसकी प्रतिध्वनि लौटकर आपको सुनाई देती है, जिसे ईको(echo) कहा जाता है। दूसरे अर्थो में इसे समझा जाए,तो हम जो प्रकृति को देते हैं वही वापस लौट करहमारे पास आता है, क्योंकि प्रकृति अपने आप में एक संपूर्ण व्यवस्थित व्यवस्था है जो अपने आप को स्थिर एवं शुद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध एवं परिपक़्व है।
वास्तविक रूप से प्राकृतिक घटनाक्रम में, जो भी घटित होता है यदि हम उस में अपना संपूर्ण सहयोग देते हैं तो प्रकृति हमें नई ऊंचाइयों पर ले जाती है अन्यथा हम स्वयं ही अपने विनाश के जिम्मेदार होते हैं। आइए एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करें कि हमारे जीवन में प्राकृतिक रूप से जो कुछ भी घटित होता है वह हमारी उन्नति एवं बेहतरी के लिए होता है।
बहुत समय पहले की बात है जब इंसान के पास यातायात के अत्याधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे एवं एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए वह घोड़ों, ऊंट एवं अन्य जानवरों का इस्तेमाल किया करते थे। एक नगर में एक संत पुरुष अपने युवा लड़के के साथ बहुत ही शांतिपूर्वक तरीके से अपना जीवन यापन कर रहे थे। उनके पास एक बहुत ही उन्नत नस्ल का अरबी घोड़ा था, वह बहुत सुंदर स्वस्थ एवं महंगा था। कभी-कभी जब संत को अपने दैनिक जीवन में पैसे के लिए कोई तकलीफ होती थी तो उस नगर के दूसरे नागरिक उसे अक्सर कहते थे,कि तुम यह अपना घोड़ा बेच दो और तुम्हें इसके मुंह मांगे दाम इसके मिल जाएंगे। संत ने जवाब दिया इस घोड़े के प्रति मेरा प्रेम उतना ही है, जितना मेरा अपने युवा लड़के के प्रति, सिर्फ पैसों की खातिर तो मैं इसे कभी नहीं बेचूंगा। उस नगर के राजा को भी यह घोड़ा बहुत पसंद था, उन्होंने भी संत को कई बार खबर भिजवाई कि कृपया आप जो भी कीमत लगाएंगे घोड़े की,वह आपको दे दी जाएगी कृपया इसे बेच दें। संत ने मना कर दिया।
एक दिन अचानक से संत का वह घोड़ा उसके घर से गायब हो गया और ना जाने कहां चला गया। उसके आसपास के लोग एक बार पुनः एकत्रित हुए और सभी ने कहा, देखा हम लोग कहते थे ना कि तुम अपना घोड़ा बेच दो, किंतु तुमने नहीं बेचा और तुम्हें इसका भारी नुकसान हो गया। संत ने मुस्कुरा कर कहा कि मुझे "प्रकृति की नियत पर पूरा भरोसा है"। नगर के लोगों ने कहा यह व्यक्ति मूर्ख है एवं वे वापस चले गए।कुछ दिनों के पश्चात अचानक एक दिन संत का वह पुराना घोड़ा वापस, उसके घर आ गया और इतना ही नहीं अपने साथ उसी नस्ल के 15 नए घोड़े,वापस ले आया। संत तो अपने घोड़े से अत्यधिक प्रेम के कारण बहुत प्रसन्न था, किंतु उसके नगर के लोग एक बार पुनः एकत्रित हुए और सबकी आंखें फटी की फटी रह गई, उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी, सभीने विस्मृत होकर संत को प्रणाम किया और कहा आप तो वाकई बहुत धनवान हो गए हैं। संत ने कहा हां वाकई,पहले मुझे प्रेम करने के लिए सिर्फ दो बेटे थे अब मेरे पास 17 हैं मैं वाकई मेंपहले से ज्यादा धनवान हो गया हू, प्रकृति ने मुझे अत्यधिक स्नेह दिया है और मैं इससे अभिभूत हूं। “एक बार पुनः में प्रकृति की नियत का सम्मान करता हूं।“ कुछ दिनों के बाद एक दिन जब उस संत का युवा लड़का इन घोड़ों के साथ घुड़सवारी सीख रहा था, अचानक वह गिर पड़ा, उसके पैर में बहुत गंभीर चोट आयी, उसका पैर लगभग टूट चुका था वह चलने के भी काबिल नहीं रहा।
एक बार फिर नगर के लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने संत से कहा यह घोड़ों का आना आपके लिए बहुत नुकसानदायक साबित हुआ, आपका लड़का अपाहिज हो गया। संत ने एक बार फिर मुस्कुराकर कहा "मैं प्रकृति की नियत पर पूरा भरोसा करता हूं और जो हुआ अच्छा हुआ"। नगर के लोगों ने कहा,जिसका लड़का अपाहिज हो गया हूं और वह मुस्कुरा रहा है वाकई येह व्यक्ति मूर्ख है। कुछ दिनों पश्चात इस नगर पर पास के ही एक दूसरे बलशाली राजा ने आक्रमण कर दिया। इस नगर के राजा के पास इतनी शक्तिशाली सेना ना होने के कारण उसने तुरंत एक कानून पास किया, जिसके अंतर्गत नगर के सभी युवा जो युद्ध लड़ सकने के काबिल हो उन्हें तुरंत सेना में शामिल किया जाए एवं युद्ध पर भेजा जाए। नगर के लोग भयभीत थे सैनिक लोगों के घर जा जाकर, जो भी युवा युद्ध लड़ सकने में समर्थ था उसे जबरदस्ती सेना में शामिल किया जा रहा था। सैनिक संत के घर भी आए इसके युवा लड़के को भी देखा,किंतु चूकि उसका पैर टूटा हुआ था उसे वे युद्ध के लिए नहीं ले गए, क्योंकि इस समय वह इनके किसी भी काम का नहीं था। नगर के लोग एक बार फिर इकट्ठा हुए और सभी ने एक स्वर में कहा आप बहुत सौभाग्यशाली हैं की आपके लड़के का पैर टूटा हुआ था जिसके कारण वह मौत के मुंह में जाने से बच गया हम लोग नाहक ही आपको मूर्ख कहा करते थे। संत ने मुस्कुराकर फिर कहा मैं" प्रकृति की नियत का सम्मान करता हूं"।
मित्रों आज जो यह एक विकट परिस्थिति हम सभी के सामने उत्पन्न हुई है उसके पीछे कहीं ना कहीं इंसानों की प्रकृति के साथ ज्यादा छेड़छाड़, ज्यादा ताकतवर बनने की इच्छा, दूसरों पर राज करने की इच्छा, मासूम एवं निरीह जानवरों के साथ अत्याचार, विज्ञान के आविष्कारों का विनाश के लिए इस्तेमाल जैसे अनेक कारण शामिल है। मित्रों हमें एक होकर,यथासंभव जितना हम कर सकें और जो भी हमारे सामर्थ्य में होउस के अनुसार,प्रकृति और मानव सभ्यता पर किए गए इन सभी हमलो का मुंहतोड़ जवाब देना होगा।
धन्यवाद
पंकज राय
(अंतर्राष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर,लेखकएवं मनोवैज्ञानिक )
M +919407843111