वर्ल्ड टेलीविजन डे 2024: टीवी को अपनी पहचान बनाने में लगा था काफी समय, सिनेमा के बाद करना पड़ा था आगे बढ़ने के लिए काफी इंतजार, जानें कैसा रहा है टीवी का सफर अब तक

  • टीवी को अपनी पहचान बनाने में लगा था काफी समय
  • सिनेमा के बाद करना पड़ा था आगे बढ़ने के लिए काफी इंतजार
  • बड़े पर्दे और छोटे पर्दे के एक्टर्स और एक्ट्रेसेज में था काफी अंतर

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-20 12:57 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले कुछ दशकों में टेलीविजन का स्वरूप और उपयोग काफी बदल गया है। पहले, टेलीविजन केवल एंटरटेनमेंट और न्यूज के साधन तक ही सीमित था। छोटे स्क्रीन, सीमित चैनल और ब्लैक-एंड-व्हाइट ब्रॉडकास्ट इसका मुख्य हिस्सा हुआ करते थे। लोग तय समय पर प्रोग्राम देखने के लिए जुटते थे और केबल टीवी तक पहुंच भी सीमित थी। लेकिन, आज डिजिटल युग में टेलीविजन स्मार्ट हो गया है। अब ये केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि एक इंटरैक्टिव प्लेटफॉर्म बन चुका है। ओटीटी प्लेटफॉर्म, लाइव स्ट्रीमिंग और 4K अल्ट्रा-एचडी स्क्रीन के साथ दर्शक अपनी पसंद का कंटेंट कभी भी, कहीं भी देख सकते हैं। पहले टेलीविजन पब्लिक एंटरटेनमेंट का प्रतीक था, जहां पूरा परिवार एक साथ बैठकर इसका आनंद उठाता था। लेकिन आज ये पर्सन सेंटर्ड हो गया है, जहां हर कोई अपने डिवाइस पर अलग कंटेंट का आनंद लेता है, खासकर कोविड-19 के बाद।

आज टेक्नोलॉजी ने न केवल इस डिजिटल डिवाइस की गुणवत्ता बदली है, बल्कि इसे हमारी जीवनशैली का एक अहम हिस्सा भी बना दिया है। उनके लिए टेलीविजन आनंद और लोकप्रियता पाने का मीडियम है। वे इसका उपयोग कुछ आइटम को बेचने, किसी पॉलिटिकल पार्टी के सदस्य बनाने या पब्लिसिटी करने के लिए करते हैं। टेलीविजन के मंच पर आने से "छोटे" और "बड़े पर्दे" के बीच एक बहस भी छिड़ गई है। "टेलीविजन", जिसे पहले "छोटा पर्दा" कहा जाता था, आज "बड़े पर्दे" यानी "सिनेमा" के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। लेकिन ये बदलाव रातों रात नहीं आया है। फिल्मी सितारों की टेलीविजन को लेकर सोच और प्राथमिकताएं समय के साथ बदल गई हैं। पहले के दौर में जहां सिनेमा को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती थी और टेलीविजन को कमजोर समझा जाता था। वहीं, आज टेलीविजन फिल्मी सितारों के लिए एक फेम बन चुका है। तो आइए 21 नवंबर "विश्व टेलीविजन दिवस"( World Television Day) के मौके पर हम आपको टेलीविजन इंडस्ट्री के इस बदलाव को विस्तार से समझाते हैं।

छोटे और बड़े पर्दे के सितारो में अंतर

एक समय था जब भारतीय सिनेमा के सितारे जैसे दिलीप कुमार, राज कपूर, और नरगिस को सिर्फ पर्दे पर ही देखने का मौका मिलता था। वे सिर्फ अपनी कला के लिए जानें जाते थे और पब्लिक अपीयरेंस से दूरी बनाए रखते थे। उनकी छवि बेहद सम्मानित और आदर्शवादी थी। किसी निजी पार्टियों, शादियों और इवेंट्स में परफॉर्म करना उन्हें आपत्तिजनक लगता था। उस समय टीवी से ज्यादा सिनेमा को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती थी। ये सितारे अपनी "स्टार" की छवि को बनाए रखने के लिए टेलीविजन से दूरी बनाकर रखते थे। क्योंकि उनका मानना था कि, ये उनकी प्रतिष्ठा के लिए खतरा हो सकता है। लेकिन समय के साथ-साथ आज टीवी इंडस्ट्री में काफी बदलाव आ चुका है। आज वही बड़े सितारे जो कभी टेलीविजन को नजरअंदाज करते थे, इसे अपना सबसे प्रभावशाली मीडियम मानते हैं।

आज के सितारे फिल्मों के साथ-साथ टेलीविजन पर भी एक्टिव रहते हैं। वे सिनेमा से ज्यादा टेलीविजन या विज्ञापनों को प्राथमिकता देते हैं और ये उनके लिए एक आम बात हो गई है। वे प्राइवेट पार्टियों, शादियों और इवेंट्स में जाकर परफॉर्म करने से भी नहीं कतराते हैं। टेलीविजन ने एंटरटेनमेंट की फील्ड में एक नई क्रांति लाई है। ये बदलाव 1980-90 के दशक में देखने को मिला। साल 1980 और 90 के दशक में धारावाहिकों और सेटेलाईट चैनलों के आने से टेलीविजन हर घर का हिस्सा बन गया। इसके बाद रियलिटी शोज और विज्ञापनों ने सितारों को टीवी की ओर आकर्षित किया है। आज के सेलिब्रिटीज न केवल फिल्मों का प्रचार करने बल्कि, शादियों और पार्टियों में परफॉर्म करने से भी पीछे नहीं हटते। ये बदलाव दर्शकों की बदलती पसंद, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के प्रोफेशनल मॉडल का नतीजा है।

पहले के दौर में सिनेमा का महत्व और टेलीविजन की अनदेखी

साल 1950 और 60 के दशक में भारतीय एंटरटेनमेंट का सबसे प्रमुख माध्यम सिनेमा था। उन दिनों सिनेमा के अभिनेता केवल अपने काम पर ध्यान देते थे। उनका मानना था कि अभिनेता का काम सिर्फ पर्दे तक सीमित रहना चाहिए। 'दिलीप कुमार' और 'नरगिस' जैसे सितारे अपनी कला को इतना महत्व देते थे कि वे पब्लिक इवेंट्स में पार्ट लेने से बचते थे। 1960 के दशक में जब टेलीविजन भारत में आया, तो इसे केवल समाचार और शिक्षा का माध्यम माना गया। "दूरदर्शन" ने भारतीय समाज में इंफॉर्मेशन और एंटरटेनमेंट का एक नया विस्तार जोड़ा। लेकिन तब भी सिनेमा और टेलीविजन के बीच बहुत बड़ा अंतर था। तब भी सिनेमा का रुतबा ऊंचा था और टेलीविजन को आम लोगों का माध्यम माना जाता था। साल 1980 से लेकर 90 के दशक में सिनेमा का काफी बोलबाला हुआ करता था। उस दौर के बड़े सितारे जैसे- 'दिलीप कुमार', 'राज कपूर', 'अमिताभ बच्चन' और 'हेमा मालिनी' केवल फिल्मों तक ही सीमित रहना पसंद करते थे। उनकी नजर में सिनेमा ही ग्लैमर, स्टारडम और सक्सेस का प्रतीक था।

टेलीविजन, जिसे "छोटा पर्दा" कहा जाता था, वो होम एंटरटेनमेंट का माध्यम था। ये सामान्य घरों में महिलाओं और बच्चों के लिए उपयोगी था। बड़े सितारों को लगता था कि टेलीविजन पर आकर उनकी "स्टार" छवि को नुकसान होगा। टेलीविजन के कलाकारों को बी-ग्रेड एक्टर्स समझा जाता था। फिल्मी सितारे सोचते थे कि टेलीविजन पर काम करने से उन्हें भी उसी श्रेणी में रखा जाएगा। साथ ही, टेलीविजन का बजट सीमित था और इसकी टेक्निकल क्वालिटी भी कमजोर थी। टेलीविजन, ग्रामीण और घरेलू दर्शकों के लिए था, जबकि सिनेमा हॉल शहरी और युवा वर्ग के लिए। धीरे-धीरे फिल्मों का शानदार सेट, बड़े बजट और गानों की लोकप्रियता ने इसे और ज्यादा आकर्षक बना दिया था। उस समय सिनेमा हॉल में दर्शकों की भीड़ को देखना, सितारों के लिए एक अलग ही अनुभव हुआ करता था।

आज के दौर में टेलीविजन और सिनेमा की सीमाएं

आज के समय में टेलीविजन ने न केवल खुद को साबित किया है, बल्कि ये फिल्मी सितारों के करियर का एक अहम हिस्सा भी बन गया है। पहले मनोरंजन का माध्यम सिर्फ सिनेमा था। लेकिन जब 1990 के दशक में टीवी धारावाहिक और रियलिटी शोज का चलन बढ़ा, तो टेलीविजन ने एक बड़ा बाजार हासिल कर लिया। आज हर घर में टीवी मौजूद है और टीवी पर आने वाले शो हर उम्र के लोगों तक पहुंचते हैं। इससे स्टार्स को ये समझ आया कि फिल्मों के अलावा टीवी भी उनके लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म हो सकता है। पुराने जमाने के सितारे जहां अपनी छवि को लेकर बहुत सतर्क रहते थे, वहीं आज के सितारे अपनी पॉपुलैरिटी बढ़ाने के लिए हर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। वे जानते हैं कि, दर्शकों तक पहुंचने के लिए ये मीडियम कितना प्रभावी है। रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, शाहरुख खान और सलमान खान जैसे कलाकार न केवल फिल्मों में बल्कि टेलीविजन, विज्ञापन और रियलिटी शोज में भी एक्टिव रहते हैं। रियलिटी शोज जैसे- कौन बनेगा करोड़पति, बिग बॉस और झलक दिखला जा के जरिए सितारे अपनी लोकप्रियता को बनाए रखते हैं।

ये न केवल उनके करियर को नई ऊंचाई देता है, बल्कि दर्शकों को भी उनसे जुड़ने का मौका देता है। रियलिटी शोज न केवल लोकप्रियता बढ़ाने का साधन हैं, बल्कि इससे बड़ी कमाई भी होती है। बड़े सितारे अपनी फिल्मों को हिट बनाने के लिए रियलिटी शोज या टीवी धारावाहिकों का सहारा लेते हैं। इस बदलाव में सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। आज स्टार्स के लिए पॉपुलैरिटी और फॉलोअर्स का बहुत महत्व है, जो वे टीवी और रियलिटी शोज से हासिल करते हैं। वे अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े पल को फैंस के साथ साझा करते हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने भी स्टार्स को अधिक एक्सपोजर दिया है। आज लोग घर बैठे ही अपने मोबाइल पर हर छोटी से छोटी चीजों को आसानी से ढूंढ लेते हैं। इंटरनेट, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया ने टेलीविजन और फिल्मों के बीच की दरार को मिटा दिया है। आज कोई भी प्लेटफॉर्म "छोटा" या "बड़ा" नहीं माना जाता।

ओटीटी प्लेटफॉर्म का विकास

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया ने टेलीविजन और फिल्मों के बीच की दरार को मिटा दिया है। आज कोई भी प्लेटफॉर्म "छोटा" या "बड़ा" नहीं माना जाता। ओटीटी प्लेटफॉर्म के विकास ने दर्शकों के एंटरटेनमेंट के तरीके को ओरिजिनल फॉर्म से बदल दिया है। दर्शक ट्रेडिशनल टेलीविजन की तुलना में ऑन-डिमांड स्ट्रीमिंग का विकल्प चुन रहे हैं। इस बदलाव के कारण 24hrs शो में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा, ओटीटी प्लेटफॉर्म ने बिंज-वॉचिंग को भी कुशल किया है, जहां दर्शक एक ही बार में एक सीरीज के कई एपिसोड देख सकते हैं। स्क्रिप्टेड स्ट्रीमिंग सर्विसेज सीरीज से लेकर डॉक्यूमेंट्री और रियलिटी शो तक, ओटीटी प्लेटफॉर्म ओरिजनल प्रोग्रामिंग में भी लगातार इन्वेस्टमेंट कर रही हैं। इस प्लेटफॉर्म में "स्ट्रेंजर थिंग्स", अमेजन प्राइम वीडियो की "द मार्वलस मिसेज मैसेल" और डिजनी+ की "द मैंडलोरियन" शामिल हैं।

Tags:    

Similar News