इंदिरा गांधी को किसने कहा 'दुर्गा'?: एक फैसले से 'गूंगी गुड़िया' से 'दुर्गा' बन गईं इंदिरा गांधी, धुर विरोधी विचारधारा वाले नेता ने माना लोहा, दिया ये नाम
- 19 नवंबर 1917 को हुआ था इंदिरा गांधी का जन्म
- अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया 'दुर्गा' नाम
- इंदिरा गांधी देश की पहली महिला पीएम बनीं
डिजिटल डेस्क, भोपाल। क्या आप देश की पहली और एक मात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के "गूंगी गुड़िया" से "दुर्गा" बनने की यात्रा के बारे में जानते हैं? इंदिरा गांधी की "गूंगी गुड़िया" से "दुर्गा" बनने तक की ये यात्रा बेहद दिलचस्प है। राजनीतिक करियर की शुरुआत में उन्हें "गूंगी गुड़िया" कहा गया। तब शायद उनके आलोचकों को ये अंदाजा नहीं था कि, यही "गूंगी गुड़िया" आगे चलकर भारत के राजनीतिक परिदृश्य को बदल देगी। अपने उम्र के इस अलग-अलग पड़ाव में इंदिरा ने अपने व्यक्तित्व, नेतृत्व और क्षमता में जिस तरह का बदलाव किया, उससे विरोधी दल भी उनका लोहा मानता था। 1969 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चुनौती देकर बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने से लेकर 1971 के भारत-पाक युद्ध में बांग्लादेश को आजादी दिलाने तक।
इंदिरा ने हर कदम पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। जिस संसद में कभी एक विपक्षी नेता ने उन्हें "गूंगी गुड़िया" की उपाधि दी थी, उसी संसद में इंदिरा के नेतृत्व, साहस और कूटनीतिक कौशल के कारण विपक्षी नेता ने ही उन्हें "दुर्गा" भी कहा। उनकी "गूंगी गुड़िया" से "दुर्गा" बनने तक का ये सफर इस बात का सबूत है कि आलोचना और कठिनाइयों के बावजूद, संकल्प और नेतृत्व किसी व्यक्ति की छवि को बदल सकते हैं। ये भारतीय राजनीति की एक ऐसी कहानी है, जो आज भी हमें प्रेरणा देती है। इस दिन को हम "राष्ट्रीय एकता दिवस" के रूप में मनाते हैं। तो आइए, 19 नवंबर 2024 इंदिरा गांधी के जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनके उन अनछुए पहलू के बारे में बताते हैं, जिसके कायल विरोधी भी रहते थे।
किसने कहा इंदिरा गांधी को "गूंगी गुड़िया"?
बात 1966 की है, जब लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। उस वक्त देश एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा था। उस समय आर्थिक मंदी और सूखे की समस्या एक गंभीर मुद्दा बना हुआ था। तब राजनीति में नई-नई आईं इंदिरा को इन समस्याओं से लड़ने का उतना तजुर्बा नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के एक-दो साल तक वो बहुत तनाव में रहती थीं। वो भाषण और संसद में बहसबाजी जैसे कार्यक्रमों से बचने का प्रयास करती थीं। कहा जाता है कि, 1969 में जब उन्हें देश का बजट पेश करना था तब वो इतना डर गई थीं कि, उनके मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी। वो इन कार्यक्रमों में इतना नर्वस हो जाती थीं कि, उनको सर में दर्द या पेट में गड़बड़ी हो जाती थी। इस बारे में इंदिरा गांधी के राजनीतिक निजी चिकित्सक रहे डॉ केपी माथुर ने अपने बुक "द अनसीन इंदिरा गांधी" में काफी कुछ जिक्र किया है।
उनकी इसी असहजता के कारण विपक्षी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने उन्हें भरी संसद में "गूंगी गुड़िया" कह उनका मजाक उड़ाया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस आलोचना को सकारात्मक रूप से लिया और इसे अपने नेतृत्व में सुधार का अवसर बनाया। उन्होंने विपक्षी पार्टी के नेताओं के दबदबे को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय हित के लिए कई ऐसे काम किए और धीरे-धीरे अपनी छवि बदलने में सफल रहीं। पार्टी में हो रहे किट-किट के चलते इंदिरा ने अपना अलग ही रास्ता चुन लिया। जिसमें 1969 में कांग्रेस का विभाजन कर दिया गया। इसमें मोरारजी देसाई ने "कांग्रेस (ओ)" बना लिया और इंदिरा ने "कांग्रेस (आर)" बनाई। यहां से शुरू हुआ था उनका "दुर्गा" बनने का सफर। इस दौरान उन्होंने देश के हित के लिए कई क्रांतिकारी फैसले भी लिए। जैसे-1969 में आम जनता और आम किसानों के लिए 14 बड़े बैंको का राष्ट्रीकरण करना, भूमिहीन और समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के लिए "भूमि सुधार नीति"(Land Reform Policy) बनाना, 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा ने "गरीबी हटाओ" का नारा देने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
इंदिरा गांधी को "दुर्गा" नाम किसने दिया?
1970 के दौर में देश की राजनीति काफी उथल-पुथल से गुजर रही थी। उस समय केंद्र में इंदिरा की सरकार थी। जनता पार्टी मुख्य विपक्षी दल था और अटल बिहारी वाजपेयी इसके नेता थे। 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया जिससे भारत को अचानक एक युद्ध झेलना पड़ा। ये वो समय था जब पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है) में पाकिस्तानी सेना द्वारा वहां के लोगों पर अत्याचार किया जा रहा था। इस कारण लाखों शरणार्थी भारत में आ गए थे। इस संकट का समाधान करने और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का साहसिक फैसला लिया।
1971 में इंदिरा कोलकाता में एक जनसभा कर रहीं थी। उसी शाम पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर बमबारी शुरू कर दी। जिसमें देश के पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के सैनिक हवाई अड्डों को निशाना बनाया गया। उसी वक्त इंदिरा ने ठान लिया कि वो पाकिस्तान को सबक सिखाकर रहेंगी। उन्होंने इस युद्ध में पाकिस्तान को हरा दिया। इस हार से पाकिस्तान का विभाजन हो गया। जिससे एक नया देश "बांग्लादेश" को अस्तित्व में लाया गया। ये केवल एक सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि इंदिरा के नेतृत्व और साहस की मिसाल थी। आमतौर पर कभी इंदिरा के आलोचक रहे विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विजय के बाद संसद में उनकी प्रशंसा करते हुए उनको "दुर्गा" का अवतार कहा। ये उपाधि इंदिरा को इसलिए दी गई क्योंकि, उन्होंने संकट की घड़ी में अपनी ताकत और धैर्य से न केवल देश का नेतृत्व किया, बल्कि पाकिस्तान के भूगोल को भी बदल दिया। इस विजय ने इंदिरा को "आयरन लेडी" और "दुर्गा" के रूप में स्थापित किया जो शक्ति, साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक मानी जाती हैं।
इंदिरा गांधी का परिचय
इंदिरा गांधी भारतीय राजनीति का एक ऐसा नाम है जो साहस, शक्ति और दूरदर्शिता का प्रतीक बन गया। उन्हें उनकी अटल इच्छाशक्ति और निर्णायक नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में जन्मीं इंदिरा गांधी बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम और राजनीतिक माहौल का हिस्सा रहीं। स्वतंत्रता सेनानी पिता जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभाव ने उनके व्यक्तित्व को गहराई से गढ़ा। वो भारत की एक मात्र पहली महिला प्रधानमंत्री रही हैं जिन्होंने अपने नेतृत्व, साहस और कूटनीतिक कौशल से भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी। इंदिरा गांधी का राजनीति में प्रवेश ऐसे समय में हुआ, जब देश बदलाव के दौर से गुजर रहा था। उनके नेतृत्व ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। चाहे वो 1971 का "भारत-पाक युद्ध" हो, "बैंकों का राष्ट्रीयकरण" या "गरीबी हटाओ अभियान"। इंदिरा ने हर फैसलों में अपने मजबूत इरादों की छाप छोड़ी।
हालांकि, आपातकाल (Emergency) जैसे विवादित निर्णय भी उनके जीवन का हिस्सा रहे। लेकिन उन्होंने हमेशा अपने हर कदम को देशप्रेम में आगे बढ़ाया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि, सच्चे नेता वो होते हैं जो मुश्किल परिस्थितियों में भी सही दिशा में खड़े रहते हैं। वो केवल एक नेता ही नहीं थीं, बल्कि भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण और साहस का प्रतीक भी थीं। उनकी कहानी केवल एक राजनेता की नहीं, बल्कि एक ऐसी महिला की है जिसने हर चुनौती का डटकर सामना किया और खुद को "आयरन लेडी" के रूप में पहचान दिलाई। उनकी संस्कृति हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। "गूंगी गुड़िया" के तंज से लेकर "आयरन लेडी" और "दुर्गा" के सम्मान तक का उनका सफर दिखाता है कि, आलोचनाओं और चुनौतियों को अवसर में कैसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजनीतिक आलोचनाओं को अपनी शक्ति में बदलते हुए देश को एक नई दिशा दी। उनकी कहानी भारतीय महिलाओं के लिए ये संदेश है कि, आत्मविश्वास और संकल्प के बल पर किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।