Children's Day 2024: चाचा नेहरू बनाना चाहते थे 'मिनी पार्लियामेंट'! एजुकेशन सिस्टम में इनोवेटिव चेंजेस की पैरोकार होती 'बच्चों की सरकार'
- अगर बच्चों का होता 'मिनी पार्लियामेंट' तो उसमे होती अनोखी बैठकें
- नेहरू जी के रहने पर आज कुछ ऐसा होता हमारा एजुकेशन सिस्टम
- जानें नेहरू जी के प्रस्ताव के पीछे का उद्देश्य
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश का एजुकेशन सिस्टम कैसा होना चाहिए और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है, इस पर अरसे से बहस चली आ रही है। समाजसेवी संगठनों के अलावा फिल्म के जरिए भी एजुकेशन सिस्टम में बदलाव लाने पर जोर दिया जाता रहा है। थ्री इडियट्स मूवी इसी बदलाव की डिमांड थी। जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि काबीलियत पर फोकस किया जाए तो कामयाबी खुद ब खुद मिल जाएगी। लेकिन ये काबीलियत कैसे हासिल होगी। क्या मौजूदा एजुकेशन सिस्टम इस काबिल है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए मिनी पार्लियामेंट की कल्पना की थी। इस मिनी पार्लियामेंट का आधार बच्चों का, बच्चों द्वारा और बच्चों के लिए वाला सिद्धांत ही होता। बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू की परिकल्पना थी कि बच्चे मिनी पार्लियामेंट के जरिए अलग अलग विषयों पर चर्चा करें। ताकि वो किसी भी विषय की गंभीरता को समझें, उससे जुड़े सुझाव भी दे सकें। उस मिनी पार्लियामेंट से निकले निष्कर्ष को व्यवस्थाओं से जोड़ा जा सकता था। इस तरह एजुकेशन सिस्टम को ज्यादा इनोवेटिव और बेहतर बनाने के तरीके निकाले जा सकते थे।
बता दें कि, उनके इस प्रस्ताव का जिक्र हमें उनकी जीवनी पर लिखी गई "एन ऑटोबायोग्राफी- जवाहर लाल नेहरू" जैसी किताबों में पढ़ने को मिलती है। चाचा नेहरू के 'मिनी पार्लियामेंट' के प्रस्ताव के पीछे का उद्देश्य यही था कि, बच्चों को ऐसा मंच मिले जहां वो अपने अंदर की बातें शेयर कर पाएं। साथ ही अपने विचारों को भी प्रकट कर पाएं और अपने मुद्दों पर खुलकर बातचीत कर पाएं। अब आप सोचिए, अगर ऐसा सच में हो जाता तो "बच्चों की संसद" में कौन-कौन से मजेदार नियम पास किए जाते? ये संसद एक ऐसी जगह बन जाती जहां मजाक-मस्ती के बीच बच्चे भविष्य की बड़ी-बड़ी बातें भी खुद सीखते। तो चलिए, इस "बाल दिवस" (Children's Day) के मौके पर हम नेहरू जी के बारे में और उनके इस "मिनी पार्लियामेंट" के सपनों के बारें में जानने की कोशिश करते हैं।
बच्चों के प्यारे "चाचा नेहरू"
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। वे बच्चों के लिए बेहद प्यार और स्नेह रखते थे। उन्हें हमेशा लगता था कि बच्चों का विकास केवल पढ़ाई-लिखाई तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। बल्कि, उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में भी काम करना चाहिए। उनका मानना था कि बच्चों में जिज्ञासा, कल्पना और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि वे भविष्य में समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकें। उनके इसी स्नेह के कारण बच्चे प्यार से उन्हें "चाचा नेहरू" भी कहते थे और हर साल 14 नवंबर को उनकी जयंती के मौके पर हम "बाल दिवस" (Children's Day)मनाते हैं। जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि, बच्चे किसी भी समाज का मूल आधार होते हैं। उनको जितना जल्दी समाज के नियमों, लोकतंत्र और जिम्मेदारियों का एहसास होगा उतना ही बेहतर वे अपने भविष्य को भी समझ पाएंगे। इसलिए उनका पालन-पोषण अच्छे वातावरण में किया जाना चाहिए। इसी सोच के साथ, उन्होंने "बच्चों की संसद" बनाने का भी विचार रखा था।
नेहरू जी के "मिनी पार्लियामेंट" में क्या-क्या होता?
बच्चों में लीडरशिप का विकास
नेहरू जी जानते थे कि एक सशक्त देश बनाने के लिए जरूरी है कि बच्चों में लीडरशिप क्वालिटी का विकास हो। इसके लिए अगर बच्चों को शुरुआत से ही उनकी जिम्मेदारी उठाने और समस्याओं का हल निकालने का अनुभव मिल जाए, तो वे बड़े होकर एक अच्छे नेता बन सकते हैं। जिसके चलते नेहरू जी के इस पार्लियामेंट में बच्चों को अपनी बात रखने, टीम वर्क में काम करने और फैसला लेने का मौका मिलता। साथ ही ये सारे स्किल्स बच्चों के भविष्य में काम भी आते।
बच्चों के लिए प्रेरणा
पार्लियामेंट का सपना आज के बच्चों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हो सकता था। जिससे बच्चों को ऐसा लगता कि उनकी बातें भी सुनी और समझी जा रही हैं। उनके विचार भी काफी महत्व रखते हैं। इसके अलावा उनके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती जिससे वे समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए आगे बढ़ते और हर चुनौती का डटकर मुकाबला करते।
बच्चे अपनी समस्याओं का हल खुद निकालें
नेहरू जी का मानना था कि, बच्चों को एक ऐसा प्लैट्फॉर्म दिया जाए जहां वे अपनी समस्याओं का हल खुद निकाल सकें। इस पार्लियामेंट के जरिए वे चाहते थे कि बच्चे अपने हर मुद्दों पर खुलकर बात कर सकें और बिना डरे ही अपनी हर छोटी-बड़ी समस्याओं को सबके सामने रख सकें।
बच्चों में आत्मविश्वास का बढ़ाव
सबके प्यारे चाचा नेहरू चाहते थे कि बच्चों में आत्मविश्वास की कमी दूर हो जाए। उनकी नजर में सभी बच्चे एक समान थे और वो सभी बच्चे को एक जैसा प्यार देते थे। उनका मानना था कि, मजाक-मस्ती के बीच बच्चे भविष्य की बड़ी-बड़ी बातें भी सीख जाते हैं। इसलिए उनके ऊपर किसी भी चीज का कोई भी बोझ न डाला जाए जिससे वे अपना आत्मविश्वास खो दें।
बच्चों में समाजिकता लाना
नेहरू जी बच्चों को समाज का मूल आधार मानते थे। वे चाहते थे कि बच्चों को जितना जल्दी समाज के लोकतंत्र और जिम्मेदारियों का अहसास होगा उतना ही जल्दी वे अपने आगे के भविष्य को अच्छे से समझ पाएंगे। उन्हें हर जिम्मेदारियों का एहसास कराना बहुत जरूरी है। इसलिए उनका लालन-पालन अच्छे माहौल में किया जाना चाहिए।