पेरेंटिंग टिप्स: अपने बच्चों के ब्राइट फ्यूचर के लिए ऐसे दें वर्किंग मदर्स उन पर ध्यान, बच्चों को सिखाएं ये स्किल्स
- बच्चों के अच्छे फ्यूचर के लिए स्किल्स डेवलप करना जरूरी है
- बच्चों का टाइमटेबल सेट करें
- बच्चों को छोटी-छोटी बातों पर न फटकारने से बचें
डिजिटल डेस्क, भोपाल। आज-कल महिलाएं घर संभालने के साथ नौकरी करने भी जाती हैं। दोनों चीजों को एक साथ संभालना आसान नहीं होता। कई बार माएं कामों में इस तरह उलझ जाती हैं कि उनको बच्चों के लिए समय ही नहीं मिल पाता। मां का समय न मिलने से बच्चों पर कई बार बुरा असर पड सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि बच्चे खुद को अकेला और कमजोर समझने लगते हैं। बच्चों को अच्छी परवरिश देना मां के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण है। आप अपने बच्चों को कुछ कमाल की स्किल्स सिखा सकती हैं जिससे वह मजबूत और आत्मनिर्भर बनेंगे। चलिए जानते हैं वह कौन सी स्किल्स हैं।
अपना काम खुद करने की आदत
बच्चों को अपने छोटे- मोटे काम खुद करने की सलाह दें। जब बच्चे अपना काम खुद करते हैं तो उनमें कॉन्फिडेंस आता है, वह अपने ऊपर भरोसा करने लगते हैं। अगर आप बच्चों का सारा काम खुद कर देंगी तो वह आगे चलकर हर काम के लिए आपके ऊपर निर्भर रहेंगे। बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपना काम खुद करने की हैबिट डालिए।
डिसीजन मेकिंग
बच्चों को हर चीज का फैसला खुद करने को नहीं बोला जा सकता है। उनमें इतनी समझ नहीं होती की वह चीजों की गहराई को समझ सकें। लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिसका फैसला बच्चों को लेने दिया जा सकता है। जैसे उन्हें कौन से कपड़े लेने हैं, क्या खाना है या कहां घूमने जाना है। बच्चे जब डिसीजन लेंगे तो उन्हें अच्छे और बुरे की पहचान होगी। अगर डिसीजन मेकिंग की स्किल बच्चों को आ गई तो वह फैसला लेने से कतराएंगे नहीं।
टाइम टेबल फॉलो करना
बच्चों को समय की अहमियत समझाने के साथ टाइम टेबल के हिसाब से चलना सिखाएं। सोने का समय, उठने का समय, खाने का, खेलने का और पढ़ने का समय फिक्स करें। अगर बच्चे टाइमटेबल फॉलो करेंगे तो उनमें डिसिप्लिन आएगा। सभी काम सही समय पर पूरा होगा जिससे बाद में समस्या नहीं होगी। मां को बच्चों पर नजर रखनी चाहिए की क्या वह अपना काम टाइमटेबल के अनुसार कर रहे हैं या नहीं। अगर नहीं तो उन्हें बिना डाटे समझाएं। डाटने से बच्चे जिद्दी हो सकते हैं।
मन की बात कहना
बच्चों को अपनी बात खुलकर सामने रखने की शिक्षा दीजिए। उनसे उनके दिन के बारे में पूछिए। जैसे कि, स्कूल में क्या हुआ? क्या पढ़ाई हुई? कोई तकलीफ तो नहीं? बात करने से बच्चे आपके करीब आएंगे। कई बार बच्चे मन की बात सामने नहीं रख पाते और अंदर ही अंदर डरते रहते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनको बात खुलकर करने की आदत शुरू से ही नहीं सिखाई गई।