इजरायल-हमास महायुद्ध: फिलिस्तीन का पक्ष लेने वाले अरब देश क्यों बना रहे हैं शरणार्थियों से दूरी, बेघर हुए फिलिस्तीनियों को आसरा देने में किस बात का डर?

  • इजरायल-हमास में युद्ध जारी
  • मरने वालों का आंकड़ा पांच हजार के पार

Bhaskar Hindi
Update: 2023-10-21 10:38 GMT

डिजिटल डेस्क, येरुशलम। इजराइल-हमास में 7 अक्टूबर 2023 से युद्ध जारी है। इस जंग में दोनों साइड से मिलकर अब तक करीब पांच हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा गाजा पट्टी में विनाश हुआ है। यहां की आबादी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इजराइल के हमलों से गाजा की हालात नाजुक है। जिस पर अरब देशों के बयान भी सामने आए हैं। अरब देशों का कहना है कि, इजराइल को अपनी कार्रवाई रोकनी चाहिए, ये मानवता के खिलाफ है। इजराइल के हमलों की वजह से गाजा में रह रहे फिलिस्तीनी कहीं भाग भी नहीं सकते क्योंकि ये शहर चार ओर से घिरा हुआ है।

गाजा की एक सीमा मिस्त्र से तो दो इजरायली सीमा से लगती है जबकि एक भूमध्य सागर से बॉर्डर साझा करती है। गाजा वासी इस जंग से बुरी तरह से प्रभावित हैं लेकिन अरब देश भले ही इजराइल द्वारा गाजा में हो रहे बमबारी और मिसाइलों को विरोध कर रहे हैं लेकिन पास में ही सीमा रहते हुए भी अपने देश में इन्हें एंट्री नहीं दे पा रहे हैं। हाल ही में इजरायली सेना ने एलान किया था कि गाजा में जितने भी हमास के आतंकवादी हैं उन्हें मौत के घाट उतारे बिना ये जंग शांत होने वाली नहीं है। जानकारी के मुताबिक, गाजा में हमास के अलावा लाखों की संख्यों में फिलस्तीनी निवास करते हैं और इजराइल के हमलों से अधिक संख्या में इनकी ही जान जा रही है।

इतनी मौत और भयानक यु्द्ध को देखते हुए लेबनान या मिस्त्र अपने देश में फिलिस्तीनियों को एंट्री नहीं दे रहे हैं जिस पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतनी फिक्र करने वाले देश अपने यहां इन्हें शरण क्यों नहीं दे रहे हैं? इस मामले पर विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि इसके तीन प्रमुख वजह हैं।

पहली वजह

फिलिस्तीनी लोग लंबे समय से विस्थापित हो रहे हैं। जिसकी शुरुआत साल 1948 से ही चली आ रही है। इजराइल के अस्तिव में आने के बाद फिलिस्तीन के करीब साढ़े सात लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। इजराइल का कब्जा गाजा पट्टी पर साल 1967 के युद्ध के दौरान से ही है। इस जंग में भी फिलिस्तीन के तीन लाख लोगों ने अपना घर छोड़ा था और जाकर पड़ोसी मुल्क जॉर्डन में बस गए थे। जिनकी आज संख्या 60 लाख हो गई है। विस्थापित लोग आज वेस्ट बैंक, गाजा, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन जैसे मुल्कों में कैंपों में रह रहे हैं। जबकि कुछ पश्चिमी मुल्कों में भी जाकर बस गए हैं।

इजराइल इन शरणार्थियों को अब वापस स्वदेश लौटने नहीं देता है। जब भी शांति समझौते में इन फिलिस्तीनियों के आकर बसने की बात होती है, तो इजराइल साफ इनकार कर देता है। विस्थापित लोगों को लेकर इजराइल का कहना है कि इनकी वजह से उसके देश में यहूदी बहुल आबादी को खतरा बढ़ जाएगा। मिस्र समेत अरब मुल्कों को लगता है कि अगर वे गाजा के फिलिस्तीनियों को अपने यहां बुला लेंगे, तो शांति स्थापित होने के बाद इजराइल उन्हें फिर से गाजा में लौटने नहीं देगा, जिसकी वजह से उनके मुल्क पर बोझ बढ़ जाएगा।

दूसरी वजह

इजरायली सेना का कहना है कि जितने भी लोग युद्ध शुरू होने के बाद भागकर गाजा के उत्तरी हिस्से से दक्षिणी हिस्से में गए हैं। उन्हें जंग खत्म होने के बाद लौटने का मौका मिलेगा। जानकारी के लिए बता दें कि, इजराइल-हमास युद्ध के दौरान इजरायली सेना ने उत्तर से दक्षिण गाजा में जाने के लिए लोगों को कहा था। जिसके बाद लाखों की संख्या में लोग अपना घर छोड़ दक्षिणी गाजा में रहने को चले गए हैं। अब इसी को लेकर अरब मुल्कों को इजराइल की बात पर भरोसा नहीं है। मिस्र समेत इजराइल के कई सारे पड़ोसी देशों में पहले से ही ढेर सारे शरणार्थी मौजूद हैं जिस पर इजराइल ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इस वजह से ये देश फिलिस्तीनीयों को अपनाने को तैयार नहीं हैं।

अरब देशों और कई सारे फिलिस्तीनियों को लगता है कि इजराइल गाजा, वेस्ट वैंक और पूर्वी यरुशलम से फिलिस्तीनियों को हटाकर आजाद देश बनाने की मांग को खत्म कर सकता है। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने खुद कहा है कि गाजा से पलायन का मकसद फिलिस्तीन की मांग को खत्म करना है। जब फिलिस्तीनी ही वेस्ट बैंक और गाजा में नहीं रहेंगे, तो उनके लिए अलग देश बनाने की मांग भी ठंडे बस्ते में चली जाएगी।

तीसरी वजह

गाजा से बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित देख मिस्त्र टेंशन में है क्योंकि उसे ऐसा लग रहा है कि इजराइल के हमलों से कहीं हमास के लड़ाके उनके देश में प्रवेश न कर जाएं। जिसकी वजह से मिस्त्र का सिनाई इलाका अस्थिर हो सकता है। जहां कई वर्षों तक मिस्त्र ने आतंकियों से लड़ा और इलाके में शांति स्थापित की है। मिस्र पहले ही हमास पर आरोप लगा चुका है कि उसने आतंकियों के साथ लड़ाई में दहशतगर्दों की मदद की थी। जिसकी वजह से दोनों के रिश्ते भी ठीक नहीं हैं।

मिस्र को इस बात का भी डर सता रहा है कि अगर फिलिस्तीनी उसकी जमीन पर आकर बसते हैं, तो हमास के लड़ाके यहां से भी इजराइल पर धावा बोल सकते हैं, जो इजराइल और मिस्र के रिश्तों पर सीधा असर डाल सकता है। साल 1979 में इजराइल और मिस्र के बीच शांति समझौता हुआ था। मिस्त्र सिनाई का वो इलाका है जहां फिलिस्तीनियों को बसाने की बात कही जा रही है। लेकिन मिस्त्र को डर सता रहा है कि कहीं ये इलाका हमास का नया ठिकना न बन जाए।

Tags:    

Similar News