दो साल में दुनिया ने खोए चार लोकतांत्रिक देश, भारत में भी लोकतांत्रिक में आई कमी
यादें 2021, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को धार्मिक धक्का दो साल में दुनिया ने खोए चार लोकतांत्रिक देश, भारत में भी लोकतांत्रिक में आई कमी
- सरकारों ने की अवैध
- अनावश्यक
- और आनुपातहीन कार्रवाईयां
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूरी दुनिया में कई देशों की सरकारों द्वारा अलोकतांत्रिक और अनावश्यक कार्रवाईयां कर लोकतंत्र को बिगाड़ा है, या बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। कुछ दिन पहले जारी एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि कोविड़ महामारी के दौरान सरकारों ने गैरजरूरी निर्णय लिए, जिनसे अप्रत्यक्ष रूप से देश के लोकतंत्र पर बुरा असर पड़ा। इस अंतर सरकारी निकाय की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कई कार्रवाईयों को सत्ता ने अपने हित साधने के लिए लोकतांत्रिक शासन शक्ति का दुरूपयोग किया गया। अंतर सरकारी संगठन, जिसका मिशन दुनिया भर में लोकतंत्र को आगे बढ़ाना है, की 80-पृष्ठ की रिपोर्ट में "नागरिक सक्रियता की उल्लेखनीय ताकत" का उल्लेख किया गया है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस या इंटरनेशनल आईडिया ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि कई लोकतांत्रिक सरकारें पीछे हट रही हैं । 34-राष्ट्र संगठन ने कहा कि अगस्त 2021 तक, 64% देशों ने महामारी पर अंकुश लगाने के लिए अनुपातहीन, अनावश्यक या अवैध कार्रवाई की।
इंटरनेशनल आईडिया ने कहा यूरोप के लिए महामारी ने लोकतंत्र पर दबाव डाला है और कुछ देश जहां लोकतांत्रिक सिद्धांत पहले से ही खतरे में थे, इसने सरकारों को लोकतंत्र को और कमजोर करने का एक बहाना प्रदान किया। यूरोप की गैर-लोकतांत्रिक सरकारों ने पहले से ही बहुत दमनकारी प्रथाओं को तेज कर दिया है। इसने अजरबैजान, बेलारूस, रूस और तुर्की की पहचान की। प्रोग्राम रीजनल यूरोप के प्रमुख सैम वान डेर स्टाक का मानना है कि महामारी ने पश्चिमी यूरोप में उच्च प्रदर्शन करने वाले लोकतंत्रों और मध्य और पूर्वी यूरोप में कमजोर समकक्षों के बीच पहले से मौजूद दरार को बढ़ा दिया है। और यह विभाजन यूरोप की एकता को चुनौती देना जारी रखेगा, क्योंकि यह गैर-लोकतांत्रिक महाशक्तियों के अधिक बाहरी दबाव का भी सामना करता है। लेकिन इसका बढ़ा हुआ लोकतांत्रिक अलगाव भी अधिक एकीकरण और सहयोग के अवसर पैदा करता है, क्योंकि यूरोप लोकतंत्र के मूल्य को अपना मूल मानने के लिए मजबूर है।
रिपोर्ट में कहा गया है चीन का प्रभाव, अपने स्वयं के गहरे निरंकुशता के साथ मिलकर, लोकतांत्रिक मॉडल की वैधता को भी खतरे में डालता है।
अफ्रीका में, लोकतंत्र की गिरावट ने पिछले तीन दशकों में पूरे महाद्वीप में उल्लेखनीय प्रगति को कम कर दिया है। महामारी ने सरकारों पर शासन, अधिकारों और सामाजिक असमानता के बारे में चिंताओं का जवाब देने के लिए दबाव डाला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बोलीविया, ब्राजील, कोलंबिया, अल सल्वाडोर और संयुक्त राज्य अमेरिका में उल्लेखनीय गिरावट के साथ, अमेरिका में आधे लोकतंत्रों को लोकतांत्रिक क्षरण का सामना करना पड़ा है।
इंटरनेशनल आईडिया ने लोकतंत्र की स्थिति पर अपनी प्रमुख रिपोर्ट में कहा कि पिछले एक दशक में पीछे हटने वाले लोकतंत्रों की संख्या दोगुनी हो गई है। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, हंगरी, पोलैंड और स्लोवेनिया का उल्लेख किया गया है। स्वीडिश स्थित निकाय ने कहा कि उन देशों में भी हालात और खराब हो रहे है जो लोकतांत्रिक नहीं हैं। निरंकुश शासन उनके दमन में और भी अधिक निर्लज्ज हो गए हैं, मुक्त भाषण प्रतिबंधित कर दिया गया है और कानून के शासन को कमजोर कर दिया गया है, लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारी पिछली रिपोर्ट के दो साल लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं रहे हैं, और यह उपलब्धि तब हासिल हुई जब लोकतंत्र शासन का प्रमुख रूप बन गया, अब पहले की तरह अधर में लटका हुआ है। कुल मिलाकर रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2020 में एक सत्तावादी दिशा में आगे बढ़ने वाले देशों की संख्या लोकतांत्रिक दिशा में जाने वालों से अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो वर्षों में त्रुटिपूर्ण चुनावों के माध्यम से या सैन्य तख्तापलट से दुनिया ने कम से कम चार लोकतंत्र खो दिए हैं। इसने चाड, गिनी, माली और सूडान में सैन्य तख्तापलट का भी उल्लेख किया।
रिपोर्ट में कहा गया कि 80 से अधिक देशों ने महामारी के दौरान सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद, विरोध और कठोर नागरिक कार्रवाई देखी है। जिनमें क्यूबा, इस्वातिनी, जिसे पहले स्वाज़ीलैंड के नाम से जाना जाता था म्यांमार और सूडान शामिल है। लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों ने बेलारूस में दमन का सामना किया है।
रिपोर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के दिसंबर 9-10 के वर्चुअल "लोकतंत्र के लिए शिखर सम्मेलन" से पहले आई।, जिसका उद्देश्य सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के नेताओं को इकट्ठा करना है, बाइडेन ने इसके जरिए बढ़ती निरंकुश ताकतों के खिलाफ ग्लोबल फेसऑफ़ के रूप में दर्शाया।
अंतर्राष्ट्रीय आईडिया ने एशिया के संबंध में कहा कि अफगानिस्तान, हांगकांग और म्यांमार को "बढ़ती सत्तावाद की लहर" का सामना करना पड़ा है। अफगानिस्तान में बारूद और बंदूक की नोंक पर लड़ाकू तालिबान ने कब्जा कर लिया। तालिबान कब्जे के बाद मानवता को शर्मसार करने वाली कई तस्वीर दुनिया के सामने आई। लेकिन दुनिया की इंसानियत चुप रही और आज भी वहां की महिला बच्चे जिल्लत और किल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर है। भारत फिलीपींस और श्रीलंका में भी लोकतांत्रिक क्षरण पाया गया है।
हाल ही के दिनों में उत्तराखंड के हरिद्वार में आयोजित हुई विशेष धर्म संसद में हिंसा की पैरवी, एक विशेष राष्ट्र की पैरवी के लिए संघर्ष, विवादित भाषण,और भारतीय संविधान को गलत बताने की संकीर्म सोच ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को न केवल चोंट पहुंचाई है बल्कि उन तमाम शहीदों का अपमान भी किया है जिन्होंने भारत की आजादी में अपने प्राणों का त्याग किया। धर्म के नाम पर धंधा और नफ़रत की सियासत लोकतांत्रिक देश और धर्म के लिए उचित नहीं है।
एनडीटीवी न्यूज चैनल से बात करते हुए पूजा शकुन ने देश के संविधान को गलत बताने की कोशिश की। और भारतीयों से महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रार्थना करने की अनुशंसा की। साल 2019 में पूजा शकुन उस समय चर्चा में आई थीं जब उन्होंने महात्मा गांधी के पुतले पर गोली चलाई थी। उन्होने बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा में नारे भी लगाए थे। तथाकथित धर्मगुरूओं में सद्भाव सौहार्द बिगाड़ने और हिंसा भड़काने की हिम्मत कहा से आती है। जिसे कोई भी धर्म इजाजत नहीं देता। ऐसे लोग पवित्र हिंदू धर्म को बदनाम करने के साथ साथ देश को भी शर्मसार करता है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय आईडिया महासचिव केविन कैसस-ज़मोरा ने अपने एक बयान में कहा कि यह वक्त लोकतंत्रों के लिए साहसी होने, खुद को नया करने और पुनर्जीवित करने का समय है।