हिमालय कोई बाधा नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण सहयोग का गलियारा है

चीन हिमालय कोई बाधा नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण सहयोग का गलियारा है

Bhaskar Hindi
Update: 2022-12-13 13:01 GMT
हिमालय कोई बाधा नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण सहयोग का गलियारा है
हाईलाइट
  • चीन और भारत इन दो पड़ोसियों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग में बाधा

डिजिटल डेस्क, बीजिंग। हाल ही में, चीन-नेपाल रेलवे के निर्माण के प्रति भारत में कुछ आदमियों के द्वारा आरोप लगाया गया, जो इस रेलवे को हिमालय की दक्षिणी तलहटी में चीनी घुसपैठ के रूप में देखते हैं। उधर, चीन और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के बीच मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान के प्रति हमेशा नकारात्मक दृष्टिकोण रखने का विचार, चीन और भारत इन दो पड़ोसियों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग में बाधा ही है।

चीन और दक्षिण एशियाई देश हिमालय के दोनों ओर स्थित हैं, लेकिन यह पर्वत दोनों ओर के लोगों के बीच मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान में बाधा नहीं रहता है। प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ-साथ चीन और दक्षिण एशिया के बड़ी संख्या में भिक्षु और विश्वासी ने धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करने के लिए हिमालय पार किया करते थे। इसके अलावा, पहाड़ों और घाटियों की बाधाओं के बावजूद, हिमालय के दोनों ओर को व्यापार को बनाए रखने के लिए अनगिनत व्यापारी भी पारकर चलते रहते थे। आज तक, हिमालय के पहाड़ी र्दे भी व्यावसायिक गतिविधियों और तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण मार्ग हैं।

पिछले एक दशक में, चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के माध्यम से दक्षिण एशियाई देशों के साथ बुनियादी ढांचे और माल के व्यापार में सहयोग का विस्तार किया है। हालाँकि, कुछ लोग इसे भारत को घेरने की चीन की रणनीति के हिस्से के रूप में देखते हैं। यह एकदम गलत है। चीन भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, भूटान, नेपाल और पाकिस्तान सहित सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंध रखता है। दक्षिण एशियाई देश चीन के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं। 2022 में, चीन-भारत व्यापार एक नया रिकॉर्ड यानी 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंचने की उम्मीद है। दक्षिण एशिया में चीन का भारी निवेश और कई प्रमुख परियोजनाएं हैं। जो भी वैश्विक औद्योगिक श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला के हिस्से हैं, और स्थानीय देशों के आर्थिक विकास और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

दक्षिण एशिया को भौगोलिक वितरण में अपनी निश्चित स्वतंत्रता प्राप्त है। उधर अपनी जनसंख्या और आर्थिक आकार के कारण भारत का दक्षिण एशिया में सबसे अधिक प्रभाव है। हालाँकि, इतिहास में दक्षिण एशिया के देश कभी भी बंद और अलग-थलग नहीं रहे। दक्षिण एशिया के देशों ने प्राचीन काल से अन्य क्षेत्रों के देशों के साथ अच्छे आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे हैं। शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण विदेश नीति अपनाना सभी दक्षिण एशियाई देशों के हित में है। किसी भी देश को दूसरे देशों के खिलाफ नीतियां अपनानी नहीं चाहिए। दक्षिण एशिया के अन्य देशों के साथ चीन के संबंधों को भारत के लिए खतरा मानने के लिए कुछ भारतीय थिंक टैंकों को बाहरी ताकतों द्वारा उकसाया नहीं जाना चाहिए। वास्तव में, हिंद महासागरीय देशों के साथ चीन के संबंधों का विकास आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों का हिस्सा है।

निस्संदेह, चीन और भारत के बीच कुछ सीमा विवाद हैं। जो इतिहास में उपनिवेशवादियों द्वारा चीन और भारत के बीच संघर्ष पैदा करने के लिए बोए गए बीजों से उपजा है। मुक्ति और स्वतंत्रता हासिल करने के बाद चीन और भारत के लोगों समानता, आपसी समझ और आपसी सामंजस्य के सिद्धांतों के तहत सीमा सवाल का मैत्रीपूर्ण समाधान करना चाहिए। लेकिन, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा खींची गई एकतरफा सीमा को स्वीकार करने के लिए चीन को बाध्य करना अवास्तविक है।

चीनी लोग शांतिप्रिय हैं और चीन तर्कसंगतता और विनम्रता की वकालत करता है। चीन ने शांति, मित्रता और आपसी समझ और आपसी सामंजस्य के सिद्धांतों पर अपने अधिकांश पड़ोसियों के साथ सीमा मुद्दों को सुलझा लिया है। चीन समानता, पारस्परिक लाभ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के आधार पर दक्षिण एशिया के सभी देशों के साथ आर्थिक और व्यापार, बुनियादी ढांचा निवेश और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को विकसित करने का इच्छुक है। और ऐसे सभी सहयोग का अर्थ किसी भी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं हैं।

(आईएएनएस)

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