क्यूट पांडा पर है सिर्फ चीन का ही हक, किसी भी देश को पांडा गिफ्ट कर लाखों रुपये लेता है चीन, किसी भी देश में हो पांडा का जन्म उस पर सिर्फ चीन का अधिकार, जानिए क्यों

पांडा डिप्लोमेसी क्यूट पांडा पर है सिर्फ चीन का ही हक, किसी भी देश को पांडा गिफ्ट कर लाखों रुपये लेता है चीन, किसी भी देश में हो पांडा का जन्म उस पर सिर्फ चीन का अधिकार, जानिए क्यों

Bhaskar Hindi
Update: 2023-02-20 12:30 GMT
क्यूट पांडा पर है सिर्फ चीन का ही हक, किसी भी देश को पांडा गिफ्ट कर लाखों रुपये लेता है चीन, किसी भी देश में हो पांडा का जन्म उस पर सिर्फ चीन का अधिकार, जानिए क्यों
हाईलाइट
  • साल 1984 में चीन ने दूसरे देशों को पांडा गिफ्ट करना बंद कर दिया

डिजिटल डेस्क, मुंबई। जापान ने इस हफ्ते चार पांडा को उनके देश चीन वापस भेज दिया है। इन चारों पांडा में से एक जियांग का जन्म साल 2017 में टोक्यो के यूनो चिड़ियाघर में हुआ था। जबकि अन्य तीन पांडा का जन्म जापान के पश्चिमी वाकायामा के एक पार्क में हुआ था। लेकिन जापान में जन्मे इन सभी पांडा पर चीन का हक कैसे हो सकता और जापान ने इन्हें चीन क्यों भेज दिया? इसके पीछे चीन की बहुत पुरानी नीति "पांडा डिप्लोमेसी" है। इस डिप्लोमेसी के तहत जापान, अमेरिका, फ्रांस समेत कई देशों में पैदा होने वाले पांडा पर मालिकाना हक केवल चीन का ही होता है। साथ ही इन देशों को अपने पास पांडा रखने के बदले चीन को भारी रकम चुकानी पड़ती है। आइए जानते हैं चीन की नीति "पांडा डिप्लोमेसी" के बारे में- 

क्या है पांडा डिप्लोमेसी? 

साल 1950 के बाद से चीन "पांडा डिप्लोमेसी" के तहत कई देशों में पांडा देता रहा है। इस नीति के तहत चीन ने साल 1957 में यूएसएसआर को अपना पहला पांडा पिंग पिंग गिफ्ट किया था। इसके बाद से चीन ने उत्तर कोरिया, अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और मैक्सिको को भी पांडा दिए थे। इस नीति के तहत सभी देश एक पांडा के लिए चीन को हर साल 1 मिलियन डॉलर की राशि देते हैं। साथ ही जिन देशों को चीन पांडा देता है अगर वहां कोई भी बेबी पांडा पैदा होता है तो उस पर चीन का हक होता है। किसी भी देश में पैदा होने वाले बेबी पांडा को रखने के लिए देश हर साल 4 लाख देने पड़ते हैं। जबकि इस एग्रिमेंट के तहत बेबी पांडा की उम्र 4 साल होने के बाद उन्हें पुन: चीन भेज दिया जाता है क्यों चार साल का पांडा वयस्क माने जाते हैं और वो प्रजनन कर सकते हैं। 

शुरुआत में गिफ्ट के तौर पर पांडा देता था चीन

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साल 1941 में चीन ने अमेरिका से मिलने वाली मदद के लिए न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स चिड़ियाघर में दो पांडा भेजे थे। इसके अलावा साल 1972 में जब राष्ट्रपति निक्सन और उनकी पत्नी चीन दौरे पर थे। तब निक्सन ने चीन के प्रधान मंत्री से कहा था कि उन्हें पांडा बहुत प्यारे लगते हैं। जिसके बाद चीन ने निक्सन को अमेरिका वापस लौटते वक्त उन्हें दो पांडा हिंग-हिंग और लिंग-लिंग को गिफ्ट के रुप में दिया। जिसके बदले चीन अमेरिका से कोई भी कर्ज नहीं लेता था। लेकिन साल 1990 में दोनों पांडा मर गए।   

साल 1984 में शुरु किया नया नियम

साल 1984 में चीन ने दूसरे देशों को पांडा गिफ्ट करना बंद कर दिया। उस वक्त चीन ने बताया था कि यह फैसला पांडा की संख्या में आ रही कमी को देखते हुए लिया गया है। इसके बाद चीन देशों को पांडा देने के बदले उनसे एक पांडा पर हर साल 1 मिलियन डॉलर ऋण लेने लगा। इसके साथ ही अगर चीन से बाहर दूसरे देशों के चिड़ियाघरों में कोई पांडा पैदा होता है तो उसके लिए भी देशों को 4 लाख हर साल अदा करने पड़ते हैं। चीन की इस पांडा डिप्लोमेसी के तहत कोई भी देश चीन से पांडा नहीं खरीद सकता है। साथ ही दूसरे देशों में पैदा होने वाले बेबी पांडा भी चीन की संपत्ति रहते हैं। 

भारत में इस वजह से नहीं हैं पांडा

पांडा के रख-रखाव एक बड़ा टास्क है साथ इसमें बहुत अधिक खर्च भी आता है। इसलिए एशिया के बाहर के देश जैसे स्पेन, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी और मैक्सिको जैसे देश ही अपने चिड़ियाघरों में विशाल पांडा रखते हैं। साथ ही इनमें बहुत अधिक संख्या में बेबी पांडा भी शामिल हैं। भारत जैसे विकासशील देश में पांडा का रख-रखाव थोड़ा मुश्किल हैं इसलिए सभी विकासशील देशों में पांडा नहीं पाए जाते हैं। 

 

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