जानिए ऋषि सुनक से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानी, अच्छी जिंदगी की तलाश में कैसे पहुंच गया पंजाब का एक परिवार हजारों किलोमीटर दूर?

ब्रिटेन सियासत जानिए ऋषि सुनक से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानी, अच्छी जिंदगी की तलाश में कैसे पहुंच गया पंजाब का एक परिवार हजारों किलोमीटर दूर?

Bhaskar Hindi
Update: 2022-10-26 10:55 GMT
हाईलाइट
  • दादी के साथ नैरोबी पहुंचे थे सुनक

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ब्रिटेन के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक जल्द ही पीएम पद की शपथ लेंगे। इस बार ब्रिटेन में जो सियासी उठा-पटक देखने को मिला है। इससे स्पष्ट है कि जिंदगी में इंसान की मेहनत के साथ उसके किस्मत का अहम रोल होता है, साथ ही उसके पीछे संघर्ष की कहानी भी होती है। कुछ ऐसा ही सुनक के साथ भी हुआ। जिसके बारे में हर कोई जानना पसंद करेगा। आज हम आपके साथ भी ऋषि सुनक से जुड़ी कुछ ऐसी ही अनसुनी कहानी साझा करने जा रहे हैं। जिसके बारे में आप सुनकर हैरान रह जाएंगे। कैसे अब पाकिस्तान के पंजाब में स्थित गुजरांवाला का रहने वाला एक परिवार 90 साल पहले बेहतर भविष्य की तलाश के लिए पूर्वी अफ्रीका की यात्रा पर निकला था, फिर आज उसी परिवार के बेटे ने ऐसा मुकाम हासिल किया कि दुनिया सैल्यूट कर रही है। आइए ऋषि सुनक के परिवार से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियों के बारे में जानते हैं।

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जानें परिवार का सफरनामा

बात करीब 90 साल पहले की है, अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला के रहने वाला एक खत्री युवा बेहतर भविष्य की तलाश में सात समंदर पार जा पहुंचा। खत्री पंजाब का वह समुदाय है, जो बिजनेस में काफी बेहतर समझा जाता है। इसके साथ ही ये परिवार अकाउंट और क्लर्क का काम भी अच्छे से कर लेता था। करीब 1935 के दरम्यान ऋषि सुनक के दादा रामदास सुनक गुंजरावाला से 5 हजार किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले। गौरतलब है कि गुंजरावाला सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रंजीत सिंह की जन्मभूमि है। सुनक के दादा अफ्रीकी देश केन्या जाना चाहते थे, हालांकि वहां पर भी अंग्रेजों का शासन था। 5 हजार किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद जब रामदास सुनक केन्या पहुंचे तो उन्हें वहां क्लर्क की नौकरी मिली। फिर वहीं पर अपना घर बना लिया।

दादी के साथ नैरोबी पहुंचे थे सुनक

ऋषि सुनक की दादी सुहाग रानी सुनक गुंजरावाल से दिल्ली रहने लगी थीं। फिर सुनक अपनी दादी सुहाग रानी के साथ 1937 में नैरोबी पहुंचे। रामदास सुनक व सुहाग रानी सुनक के 6 बच्चे हुए। जिनमें 3 बेटे व 3 बेटियां थीं। ऋषि सुनक के पिता यशवीर सुनक का जन्म नैरोबी में 1949 में ही हुआ था। फिर 17 साल की उम्र में सुनक के पिता यशवीर नैरोबी को छोड़कर ब्रिटेन चले आए। ये बात 1966 के दरम्यान की थी। यशवीर सुनक भी करियर की तलाश में ही केन्या को छोड़कर ब्रिटेन के लीवरपुल पहुंच गए। बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ लीवरफूल में डॉक्टरी की पढ़ाई की। मौजूदा वक्त में यशवीर सुनक अभी साउथेम्पटन में रहते हैं। बताया जाता है कि ऋषि सुनक की भारतीय संस्कृति काफी आस्था रखते हैं। उनके दादा रामदास सुनक ने 1971 साउथैम्पटन में वैदिक सोसायटी हिंदू मंदिर की स्थापना की थी। साल 1980 में ऋषि सुनक के पिता यशवीर इस मंदिर के साथ ट्रस्टी के रूप में जुड़े थे।

जब नानी को बेचने पड़े थे गहने

ऋषि सुनक के परिवार की जिंदगी काफी संघर्षो भरी रही। हालांकि, करियर को बेहतर बनाने के लिए परिवार पीछे नहीं हटा। सुनक के नाना रघुवीर बेरी भी पंजाब के रहने वाले हैं। वह भी अच्छा पैसा कमाने के चक्कर में तंजानिया के तांगानिका में बतौर रेलवे इंजीनियर चले गए। यहां पर उनकी शादी 16 साल की सरक्षा के साथ हुआ। 1966 में ये परिवार ब्रिटेन आ गया लेकिन इसके लिए सुनक की नानी सरक्षा को अपने शादी के गहने तक बेचने पड़े थे। सुनक के नानी को तीन बच्चे थे। उन्हीं में से एक का नाम ऊषा सुनक था। ऊषा सुनक ने ब्रिटेन में ही फर्मासिस्ट की डिग्री हासिल की थी।

ब्रिटेन में आकर रघुवीर बेरी ब्रिटिश सरकार के राजस्व विभाग में नौकरी शुरू कर दिए। रघुबीर बेरी ईमानदार कर्मचारी थी, जिसकी वहज से उन्हें ब्रिटिश सरकार ने भी सम्मानित किया और ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर के सदस्य नियुक्ति किए गए। रघुवीर बेरी 92 साल की उम्र में अभी भी लंदन रहते हैं। आज भी बेरी परिवार से ताल्लुक रखने वाले दूर के उनके रिश्तेदार लंदन में रहते हैं। सुनक के पिता यशवीर व माता ऊषा दोनों की मुलाकात ब्रिटेन में हुई थी। 1977 में इन दोनों की शादी हुई फिर 1980 में साउथेम्पटन में सुनक का जन्म हुआ।


 

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