भारतीय मूल की वंदी वर्मा ने मंगल ग्रह पर पर्सेवरेंस रोवर चलाया, बोलीं- यह अविश्वसनीय है
भारतीय मूल की वंदी वर्मा ने मंगल ग्रह पर पर्सेवरेंस रोवर चलाया, बोलीं- यह अविश्वसनीय है
- वंदी वर्मा नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के रोबोटिक्स ऑपरेशन की चीफ इंजीनियर है
- वंदी वर्मा ने मंगल ग्रह पर पर्सवेरेंस रोवर को चलाने के बाद इसे अविश्वसनीय बताया
- वर्मा ने जेज़ीरो क्रेटर के कठिन इलाके में एसयूवी के आकार के इस रोवर को चलाया
डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। भारतीय मूल की वंदी वर्मा ने शुक्रवार को मंगल ग्रह पर पर्सवेरेंस रोवर को चलाने के बाद इसे अविश्वसनीय बताया। वंदी वर्मा नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के रोबोटिक्स ऑपरेशन की चीफ इंजीनियर है। वर्मा ने जेज़ीरो क्रेटर के कठिन इलाके में एसयूवी के आकार के इस रोवर को चलाया है। एंसीएंट माइक्रोबियल लाइफ की तलाश में इस रोवर को नासा ने जेज़ीरो क्रेटर में भेजा है। वैज्ञानिकों को यहां पर ऐसे सबूत मिले है जिनसे पता चलता है कि यहां पहले झील हुआ करती थी।
पंजाब के हलवारा के रहने वाले वंदी वर्मा के पिता भारतीय वायु सेना के पायलट थे। वर्मा ने कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी से रोबोटिक्स में पीएचडी की है। वह 2008 से मंगल ग्रह पर रोवर्स चला रही है। वह नासा के अपॉर्चुनिटी और क्यूरियोसिटी रोवर्स को भी सफलतापूर्वक चला चुकी हैं। इन दिनों वर्मा का ऑपरेशनल ग्राउंड जेज़ीरो क्रेटर है। अरबों साल पहले यहां झील हुआ करती थी। उस समय मंगल आज की तुलना में अधिक गीला था। पर्सवेरेंस रोवर का डेस्टिनेशन क्रेटर के किनारे पर एक सूखी हुई नदी डेल्टा है। अपनी यात्रा के दौरान, रोवर लगभग 15 किलोमीटर के स्ट्रैच में सैंपल एकत्र करेगा। इन सैंपलों को डीपर एनालिसिस के लिए वापस पृथ्वी पर लाया जाएगा।
जैसे ही रोवर अपनी यात्रा शुरू करता है, इंजीनियरों, ड्राइवरों और प्लानर्स की एक टीम लाल ग्रह पर इसके नेविगेशन में शामिल होती है। रोवर की सुरक्षा के लिए बहुत ही सटीक रुप से इसका रूट तैयार किया जाता है। चूंकि पृथ्वी और मंगल के बीच दूरी के कारण रेडियो संकेतों को पहुंचने में समय लगता है इसलिए रोवर को जॉयस्टिक का उपयोग करके नहीं चलाया जा सकता है। इंजीनियरों को पहले से दिए कमांड पर निर्भर रहना पड़ता है। वे क्रेटर की सैटेलाइट इमेज पर भरोसा करते हैं और रोवर के आस-पास मंगल ग्रह की सतह को देखने के लिए 3डी चश्मे का उपयोग करते हैं। एक बार टीम प्लान तैयार कर लेती है तो वे मंगल ग्रह के लिए निर्देशों को बीम करते हैं, और रोवर अगले दिन उन निर्देशों पर काम करता है।
अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत, पर्सवेरेंस अपने एक कंप्यूटर को केवल सतह पर नेविगेशन के लिए एम्पलॉय कर सकता है। ऐसे में इसका मेन कंप्यूटर रोवर को हेल्दी और एक्टिव रखने के लिए दूसरे टास्क पर लगा सकता है। 300 मिलियन किलोमीटर से अधिक दूरी पर रोवर को चलाने को लेकर वर्मा ने कहा, यह एक रोवर ड्राइवर का स्वर्ग है। जब आप 3डी चश्मा लगाते हैं, तो आप इलाके में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव देखते हैं। कुछ दिनों तक मैं सिर्फ इन तस्वीरों को टकटकी लगाकर देखती हूं।
नासा ने एक बयान में कहा, रोवर समय-समय पर शक्तिशाली ऑटो-नेविगेशन सिस्टम (AutoNav) का उपयोग करते हुए, ड्राइव-बाय का कार्यभार संभाल लेता है। AutoNav एक उन्नत प्रणाली है जो आगे के इलाके के 3D मैप बनाती है, खतरों की पहचान करती है। पृथ्वी पर मौजूद कंट्रोलर्स के एडिशनल डायरेक्शन के बिना किसी भी बाधा को पार करने के लिए एक रूट का प्लान बनाती है।
रोवर "विज़ुअल ओडोमेट्री" नामक प्रणाली का उपयोग करके इस बात पर भी नज़र रखता है कि यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर कितनी दूर चला गया है। एक पोजिशन से दूसरे की तुलना करने के लिए पर्सवेरेंस चलते समय तस्वीरों को भी कैप्चर करता है। यह देखने के लिए कि क्या उसने अपेक्षित दूरी तय की है या नहीं।
रोवर ने ग्रह पर कुछ सबसे बड़े इंजीनियरिंग साइंटफिक चमत्कार भी देखे हैं। उसने इनजेनिटी हेलीकॉप्टर को पहली उड़ान भरते देखा। लाल ग्रह पर अपने पहले 100 दिनों में रोवर ने मंगल के पतले वातावरण से ऑक्सीजन भी बनाया है।