Beirut Explosion: किसी ओर देश के लिए विस्फोटक लेकर निकला जहाज बेरूत में रुका, फिर एक धमाके से खंडहर बना शहर, जाने विस्फोट की पूरी कहानी...
Beirut Explosion: किसी ओर देश के लिए विस्फोटक लेकर निकला जहाज बेरूत में रुका, फिर एक धमाके से खंडहर बना शहर, जाने विस्फोट की पूरी कहानी...
डिजिटल डेस्क, बेरूत। लेबनान की राजधानी बेरूत में मंगलवार, 4 अगस्त को ऐसा विस्फोट हुआ, जिससे पूरा शहर खंडहर में तब्दील हो गया। पहले से ही कई मुश्किलें झेल रहे लेबनान के लिए यह घटना बहुत बड़ी तबाही का कारण बन गई है। वहीं देश को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां से वापस लौटने में कई बरस लग जाएंगे। हादसे में अब तक 135 लोगों की मौत हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। के बाद से शहर में राहत और बचाव का कार्य किया जा रहा है। हादसे के बाद से कई तरह के सवाल उठाए जा रहे थे कि ये एक हादसा है या कोई आतंकी हमला। अब मामले का पूरा खुलासा हो गया है।
आईए जानते हैं बेरूत बंदरगाह पर हुए धमाके की पूरी कहानी...
2013 में जॉर्जिया से 2750 अमोनियम नाइट्रेट लेकर चला था जहाज
दरअसल, बेरूत के बंदरगाह पर जिस जहाज में ये धमाका हुआ। वह सात साल पहले रूस की दक्षिणी पश्चिमी सीमा से जुड़े छोटे से देश जॉर्जिया का है। यहां ब्लैक सी के किनारे बसे बातुनी नाम के एक शहर के बंदरगाह से सितंबर 2013 में रोसेस नाम का एक जहाज रवाना हुआ था। इसे यहां से रशियन व्यापारी इगोर रेशोशकिन नाम के कारोबारी ने रवाना किया था। इस जहाज में करीब 2750 मिट्रिक टन अमोनियम नाइट्रेट लदा हुआ था। केमीकल की इस खेप को अफ्रीकी देश मोज़ाम्बिक की विस्फोटक बनाने वाली फेब्रिका द एक्सप्लोसिवोस मोज़ाम्बिक नाम की कंपनी ने खरीदा था। इस कंपनी ने जहाज में लदे विस्फोटक के लिए इगोर रेशोशकिन को 10 लाख डॉलर का भुगतान किया था।
जहाज बातुनी के बंदरगाह से रवाना तो हुआ, लेकिन वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचा, क्योंकि इस शिप में कई तरह की दिक्कतें थीं। एक तो यह कि यह 30 से 40 साल पुराना और जर्जर था और तो और इगोर ने जहाज के क्रू को ठीक से पेमेंट नहीं किया था। यहां तक कि क्रू के पास रास्ते में खाने-पीने की सप्लाई तक के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था। क्रू का पेमेंट को लेकर इस रशियन व्यापारी से लगातार झगड़ा हो रहा था।
2013 में बेरूत बंदरगाह पर विस्फोटक लेकर आया था जहाज
इसी झंझट के बीच जहाज ईधन भरवाने के लिए ग्रीस रुका। यहां से आगे जाकर उन्हें स्वेत नहर पार करके अफ्रीकी देश पहुंचना था। यहां जहाज के क्रू से स्वेत नहर पार करने के लिए चुंगी मांगी गई तो क्रू ने इगोर से पैसे मांगे। इस पर व्यापारी ने कहा कि मैरे पास पैसे नहीं है। एक काम करो जहाज को बेरूत ले जाओ और वहां से भारी मशीनों का एक्स्ट्रा कार्गो (बोझ) उठाओ और इस कार्गो की ढुलाई से जो पैसा मिले उससे अपने जहाज का खर्चा निकाल लो। इस निर्देश की वजह से नवंबर 2013 में ये हजाज बेरूत बंदरगाह पहुंच गया।
बंदरगाह का किराया न होने से क्रू और जहाज यहीं बंधक बन गए
बेरूत पहुंचकर क्रू ने भारी मशीनों को जहाज पर लादना शुरू किया, लेकिन मशीनें जहाज में फिट नहीं हो रही थीं और क्रू के पास पैसा भी नहीं था। ऐसे में उनके पास बेरूत बंदरगाह आकर जहाज लगाने का किराया देने के पैसे भी नहीं थे। इन दिक्कतों के बीच बेरूत बंदरगाह के अधिकारियों ने जहाज का मुआयना किया और पाया कि यह शिप तो इतनी जर्जर है कि
समुद्री यात्रा के काबिल ही नहीं है। ऐसे में उन्होंने जहाज को जब्त कर लिया और जहाज के कैप्टन बोरिस पोर्टकोशेव के साथ नो क्रू सदस्यों को बंधक बना लिया। कुछ दिनों बाद छह क्रू मेंबर्स को घर लौटने की इजाजत दे दी गई, लेकिन कैप्टन सहित चार क्रू सदस्यों को रोक लिया गया। उनसे कहा गया कि जब तक बंदरगाह का किराया नहीं दिया जाता तुम लोग यहीं रहोगे।
जहाज का रूस से कनेक्शन
कैप्टन बोरिस पोर्टकोशेव रूस के नागरिक हैं। ऐसे में उन्होंने अपने देश से मदद मांगी। उन्होंने लेबनन रूसी दूतावास से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि किस तरह वे बेरूत बंदरगाह पर खतरनाक कार्गो के साथ बंधक हैं। इस पर दूतावास ने कहा कि तुम क्या चाहते हो? राष्ट्रपति पुतिन तुम्हें छुड़वाने के लिए स्पेशल फोर्स रवाना करे। इसके बाद ये क्रू सदस्य 10 महीने तक जहाज पर बंधक रहे।
कैप्टन बोरिस ने सीएनएन को बताया था कि कहीं सुनवाई नहीं होने पर रशियन राष्ट्रपति पुतिन को चिट्ठियां भेजी। लिखा कि सेकड़ों टन खतरनाक केमीकल से लदा जहाज है। इस पर कोई बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन इन अपीलो का कोई असर नहीं हुआ। आखिरकार कैपटन ने जहाज में मौजूद ईंधन बैचा और वकील कर लेबनन की अदालत में अर्जी लगाई। यहां अदालत ने दया दिखाते हुए 2014 में क्रू की रिहाई का आदेश दिया। इसके बाद क्रू तो अपने घर लौट गए। लेकिन, जहाज पर लदे 2750 मिट्रिक टन अमोनियम नाइट्रेट को बेरूत पोर्ट के हेंगर नंबर 12 में रख दिया गया। यह पूरा विस्फोटक अगस्त 2014 से 4 अगस्त 2020 तक इसी गौदाम में में पड़ा रहा। बेरूत पोर्ट का कस्टम और सुरक्षा विभाग यह बात जानता था कि यह केमीकल बहुत ही खतरनाक है।
कस्टम डिपाटमेंट ने कई बार बेरूत सरकार को चेताया
बेरूत कस्टम डिपाटमेंट के डायरेक्टर जनरल बद्री दाहेद ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि इस केमीकल को लेकर उन्होंने लेबनन की जूडिशरी को कई चिट्ठियां लिखीं और बार-बार पूछा कि इस खतरनाक केमीकल का क्या करें। कस्टम डिपार्टमेंट चाहता था कि लेबनिस कोर्ट सेना या फिर किसी एक्सपर्ट संस्था को इस केमीकल के सुरक्षित डिस्पोजल का निर्देश दे। लेकिन, उनकी किसी ने नहीं सुनी।
2017 की अपनी एक ऐसी ही चिट्ठी में बद्री दाहेर ने लिखा कि ""हमने जूडिशरी डिपार्टमेंट को पहले भी कई आवेदन भेजे हैं। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हम गुजारिश करते हैं कि इस केमिकल को तत्काल देश से बाहर कर दिया जाए या फिर इसे फौरन बेच दिया जाए। ये खतरनाक केमिकल असुरक्षित स्थिति में गोदाम के अंदर पड़ा है। किसी दिन ये बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।""
बेरूत पोर्ट के जनरल मैनेजर हसन कोरायतम ने भी न्यूयॉर्क टाइम्स को यही फीडबैक दिया और उन्होंने बताया कि लेबनीज़ अधिकारियों और अदालतों को बारबार अगाह करने के बावजूद इस केमिकल के भंडार पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। बस इतना कहा गय कि एक दिन इसकी निलामी होगी।
द इकॉनोमिस्ट रिपोर्ट के मुताबिक इतनी लापरवाही से रखे जाने के कारण यह अमोनियम नाइट्रेड का ये ढेर दिनोंदिन डीकंपोज होता जा रहा था और इस वजह से ज्यादा खतरनाक भी।
विस्फोट से हिजबुल्ला कनेक्शन
ये तो थी विस्फोट की वजह और उसके लिए जिम्मेदार लोग। अब आते हैं इस ब्लास्ट के हिजबुल्ला कनेक्शन पर। हिजबुल्ला की अमोनियम नाइट्रेट में पुरानी दिलचस्पी है। हिजबुल्ला की तरह दुनियाभर के कई आतंकी और चरमपंथी संगठन इस केमिकल से बम बनाते हैं। हिजबुल्ला पर ब्रिटेन, बुल्गारिया और जर्मनी जैसे कई देशों में हुई आतंकवादी वारदातों में इस केमिकल के इस्तेमाल का आरोप है। बता दें कि न्यूयॉर्क की अदालत ने 2019 में हिजबुल्ला के एक कमांडर अली कोरानी को 40 साल जेल की सजा सुनाई थी। कोरानी चीन की एक कंपनी से सेकड़ों टन अमोनियम नाइट्रेट खरीदने की कोशिश कर रहा था। विद्वानों को आंशका है कि बेरूत पोर्ट पर रखे इस केमिकल पर हिजबुल्ला की दिलचस्पी थी और इसीलिए इसकी निलामी नहीं की जा रही थी।
आपको बता दें कि बेरूत पोर्ट पर हिजबुल्ला का काफी दबदबा माना जाता है। पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों के मुताबिक हिजबुल्ला इस पोर्ट के रास्ते हथियारों की तस्करी करता आया है और इसी वजह से अमेरिका ने हिजबुल्ला के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर सेंशन भी लगाया था। पोर्ट पर इतना प्रभुत्व होने के कारण यह हिजबुल्ला के लिए एक सुरक्षित जगह थी। आशंका है कि शायद इसीलिए बारबार आगाह करने के बाद भी केमिकल गोदाम में रहने दिया गया। ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके। तब से यह केमिकल यहीं पड़ा रहा ओर 4 अगस्त 2020 को उसमें विस्फोट हो गया।
क्या है अमोनियम नाइट्रेट
बताया जा रहा है कि गोदाम में रखे अमोनियम नाइट्रेट में आग लगने की वजह से विस्फोट हुआ है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर यह अमोनियम नाइट्रेट क्या है, जिसने एक पूरे शहर को खंडहर में तब्दील कर दिया। अमोनियम नाइट्रेट एक गंधहीन रसायनिक पदार्थ है, जिसका उपयोग कई कामों में होता है। सामान्यत इसे दो कार्यों में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। पहला, खेती के लिए बनने वाले उर्वरक में और दूसरा निर्माण या खनन कार्यों में विस्फोटक के तौर पर।
फर्टिलाइजर इंडस्ट्री पिछले 80 साल से अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल कर रही हैं। सामान्य वातावरण में ये रसायन स्थिर होता है, लेकिन 40 डिग्री से ज्यादा के तापमान में इसके फटने का खतरा हो जाता है। इस तरह का हादसा 1947 में हुआ था। तब एक जहाज करीब 2300 टन अमोनियम नाइट्रेट लेकर अमेरिका के टेक्सस जा रहा था। जहाज पर आग लगी जो केमिकल तक जा पहुंची। इसके असर से समंदर में 15 फीट ऊंची लहरे उठीं। इस हादसे में पांच सौ लोग मारे गए थे। इसके बाद इस केमीकल को लेकर कई तरह की गाइडलाइन्स भी बनीं, लेकिन हादसे होते रहे।
अमोनियम नाइट्रेट और इसकी वजह से हुईं दुर्घटनाएं
1995 में अमेरिका के ओक्लाहोमा में भीषण बम विस्फोट हुआ था। इन धमाकों के लिए बम में अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग किया गया था।
2001 में फ्रांस के टुलूज के एक रसायनियक कारखाने में धमाका हुआ था जिसमें 31 लोग मारे गए थे।
2013 में अमेरिका के ही टेक्सस राज्य में एक उर्वरक कारखाने में धमाका हुआ था जिसमें 15 लोगों की मौत हुई थी।
2004 में इस केमिकल को लेकर जा रही ईरानी मालगाड़ी में धमाका हुआ, जिससे समूचा गांव खत्म हो गया। इसके बाद 2015 में चीन के तियांचिंग में भी ऐसा ही एक विस्फोट हुआ था, जिसके कारण आग लग गई। आग इतनी जबदस्त थी कि बुझाने आए दमकलकर्मियों में से 104 की झुलसकर मौत हो गई। इस घटना के पीछे 800 टन अमोनियम नाइट्रेट जिम्मेदार था।
234 किलोमीटर दूर सुनाई दी धमाके की आवाज
4 अगस्त 2020 को बेरूत पोर्ट पर हुए हादसे का जिम्मेदार 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट था। यह विस्फोट इतना जबदस्त था कि बेरूत से 234 किलोमीटर दूर मौजूद साइप्रस देश में न केवल भूकंप के झटके महसूस किए गए, बल्कि लोगों को इस ब्लास्ट की आवाज भी सुनाई दी। विस्फोट इतना भीषण था कि बेरूत का 10 किलोमीटर का इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया है। रेडक्रॉस टीम का कहना है कि हर तरफ क्षतिग्रस्त वाहनों और इमारतों का मलबा पड़ा हुआ है। धमाके के बाद जो तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया और विभिन्न समाचार एजेंसियों पर जारी हुए उनमें न केवल धुएं के गुब्बार दिख रहे हैं, बल्कि कई किलोमीटर तक तबाही के मंजर भी देखे जा सकते हैं।
आर्थिक और खाद्यान्न संकट
साल 1975 से 1990 तक चले गृह युद्ध के बाद लेबनान की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। धमाके से पहले भी लेबनान में तनाव के हालात थे।
देश की खराब होती जा रही अर्थव्यवस्था को लेकर जनता सरकार के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही थी।
लेबनान को जरूरत की खाने-पीने की वस्तुएं भी आयात करनी पड़ती हैं। यह सामान राजधानी बेरूत के बंदरगाह के पास के गोदामों में रखी जाती हैं। धमाके की वजह से बंदरगाह पूरी तरह से तबाह हो चुका है। धमाके में अनाज गोदाम भी पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं।
ऐसी स्थितियों के बाद देश अब खाद्य संकट के मुहाने पर खड़ा है। इस घटना से देश में खाद्य असुरक्षा की स्थिति पैदा होने की आशंका जताई जा रही है।
बेरूत बंदरगाह के भविष्य को लेकर भी संदेह जताया जा रहा है। राजधानी की इमारतें तबाह हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश अब रहने लायक नहीं रह गई हैं।