रूस-यूक्रेन युद्ध: खत्म हो सकती हैं दोनों देशों के बीच जंग! रूस की किस शर्त को मानकर जेलेंस्की रुकवा सकते हैं ये युद्ध
- रूस और यूक्रेन के बीच जारी है युद्ध
- रूसी राष्ट्रपति पुतिन की ओर से खत्म हो सकता है युद्ध
- यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को माननी होगी पुतिन की शर्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध 2 साल 7 महीने 28 दिन से जारी है। इस युद्ध से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे हैं। युद्ध को सीजफायर करने के लिए पश्चिमी देशों के बैन समेत संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों पुतिन के सामने फिके साबित रहे। जबकि, जेलेंस्की भी जंग के मैदान को छोड़ने नहीं चाह रहे हैं।
इस जंग में यूक्रेन पर रूस बुरी तरह से हावी पड़ा है। लेकिन, फिर भी यूक्रेन रूस के सामने घुटने नहीं टेक रहा है। इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाले यूक्रेन के हमलों से रूस को भी अच्छी खासी चोट पहुंची है। जेलेंस्की ने पश्चिमी देशों से हथियार सप्लाई और समर्थन के बदौलत पुतिन के युद्ध जीतने के इरादे को नाकाम कर रहे हैं। जंग के वैश्विक प्रभाव की परवाह किए बगैर रूस और यूक्रेन एक दूसरे पर हमले कर रहे हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए भारत की ओर से भी प्रयास किया जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की के साथ चर्चा करके युद्ध रोकना की हिदायत दे चुके हैं। जिससे दोनों देशों के बीच हालात फिर से सामान्य हो पाए। लेकिन, ये सभी प्रयास पुतिन और जेलेंस्की के सामने कोई मायने नहीं रखते हैं। नतीजा यह है कि यह जंग दिन ब दिन तीव्र होती जा रही है। लेकिन, सवाल अब भी यही है कि दोनों देशों के बीच जंग कब खत्म होगी?
NATO में यूक्रेन को शामिल करना चाहते हैं जेलेंस्की
रूस और यूक्रेन की जंग कब रुकेगी? इस सवाल का जवाब जानने के लिए दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू होने के पीछे के कारण को जानना होगा। वो कारण कुछ और नहीं बल्कि खुद जेलेंस्की का नाटो में यूक्रेन को शामिल करने का फैसला था। जेलेंस्की के इस फैसले पर का पुतिन ने विरोध किया था। अब सवाल यह उठता है कि आखिर नाटो में पुतिन क्यों यूक्रेन के शामिल होने के खिलाफ थे।
बता दें, नाटो एक सैन्य संगठन है। इसका पूरा नाम है उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन है। साल 1949 में बेल्जियम के ब्रुसेल्स में नाटो की स्थापना की गई थी। इस संगठन में 12 देशों को जोड़ा गया था। इनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल हैं।
सोवियत संघ के विस्तार को रोकने लिए बना नाटो
नाटो का गठन सोवियत संघ (रूस समेत अन्य देश) के विस्तार को रोकना था। इस बात से नाराज सोवियत संघ ने नाटो को सबक सिखाने की ठान ली थी। फिर साल 1955 में सोवियत संघ ने सात पूर्वी यूरोपीय राज्यों के साथ मिलकर एक सैन्य संगठन की नींव रखी। इस संगठन को वारसा पैक्ट नाम दिया गया था। लेकिन, यह संगठन ज्यादा सालों तक साथ नहीं रह पाया। वारसा पैक्ट के टूटने की सबसे बड़ी वजह बर्लिन की दीवार का ढ़हने और साल 1991 में सोवियत संघ के विघटन रहा। इसके बाद वारसा पैक्ट से निकलकर कई देश नाटो में शामिल हो गए।
पुतिन ने युद्ध रोकने के लिए रखी शर्त
जेलेंस्की के नाटो में शामिल होने की इच्छा पर पुतिन के लाख चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ। ऐसे में पुतिन की यही चेतावनी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में तब्दील हुई है। इस जंग में रूस ने यूक्रेन के कई क्षेत्रों को नेस्तनाबूत कर दिया है। साथ ही रूस ने यूक्रेन के उन इलाकों पर कब्जा कर लिया है। जिसे वह अपना अधिकार मानते आया है। बता दें, एक समय पहले यूक्रेन भी सोवियत संघ में शामिल रह चुका है। माना जा रहा है कि नाटो में यूक्रेन के अलावा बोस्निया-हर्जेगोविना और जॉर्जिया भी शामिल होने की इच्छा में हैं।
रूस और यूक्रेन की जंग शुरू होती ही व्लादिमीर पुतिन ने जेलेंस्की के सामने शर्त रखी थी। वो शर्त यह थी कि अगर यूक्रेन के राष्ट्रपति रूस के साथ युद्ध को खत्म करना चाहते है। तो उन्हें नाटो में यूक्रेन को शामिल करने की जिद से पीछे हटना पड़ेगा।