हिज्बुल्लाह के बाद हूती विद्रोहियों की बारी: इजरायली सेना ने कई ठिकानों को पर किए हवाई हमले, जानिए दोनों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की वजह

  • हिज्बुल्लाह और हमास के बाद हुती विद्रोहियों पर इजरायल का हमला
  • कई ठिकानों पर किए हवाई हमले
  • लंबे समय से चला आ रहा संघर्ष

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-30 11:43 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल इस समय अपने दुश्मनों को चुन-चुनकर निशाना बना रहा है। हमास और हिज्बुल्लाह के बाद अब यमन के हूती विद्रोहियों पर इजरायली सेना ने अटैक किया है। जानकारी के मुताबिक आईडीएफ ने यमन के हूती विद्रोहियों के ठिकानों को निशाना बनाया है। इजरायल की तरफ से आए बयान में इस बात का खुलासा किया है। बयान में कहा गया है कि कि रविवार दोपहर को इजरायली एयरफोर्स के लड़ाकू विमानों ने यमन के बंदरगाह शहर होदेइदाह में हूती विद्रोहियों के ठिकानों कई हवाई हमले किए हैं। ऐसे में चलिए हैं कि आखिर कैसे एक दूसरे के दुश्मन बन गए हूती विद्रोही और इजरायल?

कौन हैं यूती विद्रोही ?

यमन में सक्रिय हूती विद्रोही मूल रूप से जैदी शिया मुसलमानों के समूह से जुड़े हैं। यमन में अपने राजनीतिक और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना उनका मकसद है। वहीं बात करें इजरायल और हूती विद्रोहियों के बीच दुश्मनी की तो, इनके बीच दुश्मनी की मुख्य वजह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और राजनीतिक विचारधाराएं हैं। दरअसल, हिज्बु्ल्लाह की तरह हूती विद्रोही ईरान के समर्थक माने जाते हैं, जो इजरायल के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा हैं। बीते लंबे समय से ईरान और इजरायल के बीच चले आ रहे टकराव ने इस दुश्मनी को और भी बढ़ा दिया है।

बता दें कि हूती विद्रोही शिया मुसलमान हैं, जबकि इजरायल के आसपास के अधिकांश देश सुन्नी हैं। इस धार्मिक विभाजन ने स्थिति को और विकराल बना दिया है। वहीं, इजरायल ईरान के बढ़ते प्रभाव को हमेशा से अपने लिए खतरा मानता आया है। हूती विद्रोही, जिन्हें ईरान से हथियार और समर्थन होना इजरायल के लिए बड़ा चिंताजनक है।

दूसरी तरफ सऊदी अरब हमेशा से हूती विद्रोहियों के खिलाफ इजरायल के रूख का समर्थन करते आया है। ऐसे में इजरायल का हूती ठिकानों को निशाना बनाना सऊदी अरब के साथ उसके संबंधों को और मजबूत कर सकता है। वहीं, हूतियों पर इजरायल के अटैक की ईरान ने कड़े शब्दों में निंदा की है और इसे एक उकसावा के रूप में लिया है।

मध्य पूर्व एशिया में चल रहे इस तनाव अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएं व्यक्त की हैं। क्योंकि इससे भीषण युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है। कई देश इस बात की आशंका व्यक्त की है कि इस संघर्ष से न केवल यमन, बल्कि पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता पैदा हो सकती है। 

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