Shani Jayanti 2024: आज इस दुर्लभ योग में मनाई जा रही है शनि जयंती, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

  • शनि से जुड़े दोषों से निजात के लिए पूजा की जाती है
  • शनि अमावस्या पर शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है
  • गजकेसरी, लक्ष्मी नारायण, बुधादित्य योग बन रहा है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-06 05:45 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन शनिदेव का जन्म हुआ था। ऐसे में इस दिन शनि जयंती (Saturn Jayanti) मनाई जाती है। साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा जैसे शनि से जुड़े दोषों से निजात पाने के लिए शनि अमावस्या पर शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसे में इस दिन भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए लोग व्रत रखते हैं और शनि मंदिरों में जाते हैं।

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस वर्ष शनि जयंती 06 जून, गुरुवार को मनाई जा रही है। साथ ही इस बार शनि जयंती पर गजकेसरी, लक्ष्मी नारायण, बुधादित्य योग के साथ ही मालव्य राजयोग का भी निर्माण हो रहा है। आइए जानते हैं शनि जयंती को लेकर क्या है मान्यता, मुहूर्त और पूजा विधि...

मान्यता

मान्यता है कि भगवान शनि निष्पक्ष न्याय में विश्वास करते हैं और अपने भक्त को सौभाग्य और भाग्य का आशीर्वाद देते हैं। बता दें कि, ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव सभी नवग्रहों में बहुत अहम माने जाते हैं। उन्हें न्याय का देवता कहा गया है। धार्मिक मान्तय है कि, जब व्यक्ति बुरे कर्म करता है तो शनिदेव उसे दंड देते हैं और अच्छे कर्म करने वालों को अच्छे परिणाम देते हैं।

शनि अमावस्या/ जयंती तिथि

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 05 जून 2024, बुधवार शाम 07 बजकर 54 मिनट से

अमावस्या तिथि समापन: 06 जून 2024, गुरुवार, शाम 06 बजकर 07 मिनट तक

इन मंत्रों का करें जप

“ॐ शं शनैश्चराय नमः।”

“नमः सूर्यपुत्राय पथसाधकाय नमः।”

“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।”

“ॐ कालो कालाय विद्महे। सर्वश्रेष्ठाय धीमहि। तन्नः कालः प्रचोदयात्॥”

ऐसे करें पूजा

- शनि जयंती के दिन व्रती को नित्यक्रम के बाद सर्वप्रथम स्नान करना चाहिए।

- इसके बाद एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाएं।

- इस कपड़े पर शनि देव की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रखें।

- इसके बाद दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं।

- इस शनि स्वरूप के प्रतीक को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इत्र से स्नान कराएं।

- शनि देव को इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य लगाएं।

- नैवेद्य से पहले उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम और काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें।

- नैवेद्य अर्पण करके फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करें।

- पूजा के दौरान शनि स्त्रोत का पाठ करना बहुत उत्तम रहता है।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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