Amla Navami 2024: अक्षय नवमी पर इस विधि से करें आंवले के पेड़ की पूजा, जानिए मंत्र

  • आंवला पेड़ की 108 परिक्रमा की जाती हैं
  • इस दिन आवंले के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं
  • मां लक्ष्मी ने सबसे पहले इस पूजा की शुरुआत की थी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-09 18:17 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में अक्षय नवमी का विशेष महत्व है और इसे "आंवला नवमी" के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, जो कि इस वर्ष 10 नवंबर 2024, रविवार को है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पूरे विधि विधान से आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करती हैं। साथ ही घर से बनाकर लाए खाने को इसी पेड़ के नीचे ग्रहण करने के साथ ही अन्य लोगों को भी वितरित करती हैं।

शास्त्रों के अनुसार, धन की देवी मां लक्ष्मी ने सबसे पहले आंवले के पेड़ की पूजा की थी। साथ ही आंवला पेड़ के नीचे भोजन पकाकर भगवान विष्णु और भोलेनाथ को भोजन कराया था। तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व और पूजा विधि...

आंवली नवमीं का महत्व

मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पद्म पुराण में भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा है आंवला वृक्ष साक्षात् विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस विधि से करें पूजा

- आंवले के वृक्ष की पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें।

- अब दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें।

- संकल्प के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख कर ॐ धात्र्यै नम: मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का - तर्पण करें।

- इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में कच्चे सूत्र लपेटें।

- फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें।

- इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कथा सुनने या पढ़ें।

आंवला नवमी पूजा मंत्र

ॐ धात्र्ये नमः

ऊं नमो भगवते वासुदाय नम:

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।'

कथा

आंवला वृक्ष की पूजा और इस वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा का श्रेय माता लक्ष्मी को दिया गया है। एक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आईं। मार्ग में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी जी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की।

पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव न हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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