Dev Uthani Ekadashi 2024: कल मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-11 08:54 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु सहित सभी देव जागते हैं और सृष्टि का कार्य-भार देखते हैं। इस वर्ष यह एकादशी 12 नवंबर 2024, मंगलवार को मनाई जा रही है। इस दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। भक्त पूरे विधि विधान से पूजा करने के साथ क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों के आरंभ करने की प्रार्थना करते हैं।

पौराणिक अथा के अनुसार भगवान श्रीहरि ने असुरराज बलि को वचन दिया था कि वे देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे तभी से भगवाल विष्णु हार साल चार महीने के लिए पाताल लोक जाकर योग निद्रा में लीन हो जाते हैं और देवउठनी एकादशी को भगवान पाताल लोक को छोड़कर वापस अपने वैकुंठ धाम आ जाते हैं। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें...

शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भः 11 नवंबर 2024, सोमवार की शाम 6 बजकर 46 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2024 की शाम 4 बजकर 4 मिनट तक

गन्नों के मंडप

देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाती है। मंडप में शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाता है। मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित किया जाता है।

मण्डप की परिक्रमा

इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाती है। तुलसी को माता कहा जाता है क्योंकि तुलसी पत्र चरणामृत के साथ ग्रहण करने से अनेक रोग दूर होते हैं। शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है लेकिन उनके पत्र मंजरी पूरे वर्ष भर देवपूजन में प्रयोग होते हैं। तुलसी दल अकाल मृत्यु से भी बचाता है।

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर अपने घर और मंदिर को साफ करें। उसके बाद गन्ने कि झोपड़ी बनाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और माता तुलसी को भी स्थापित कर दीपक जलाएं, पीले चंदन और हल्दी कुमकुम से तिलक लगाएं और उन्हें विशेष प्रसाद भी चढ़ाएं। व्रत कथा पढ़ें और आरती के साथ पूजा का समापन करें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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