क्या है छलनी का महत्व, जानिए क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन

करवाचौथ क्या है छलनी का महत्व, जानिए क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन

Bhaskar Hindi
Update: 2021-10-21 08:13 GMT
क्या है छलनी का महत्व, जानिए क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। करवाचौथ हिंदू धर्म का लोकप्रिय त्यौहार है। इस पर्व पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को बेहद कठिन और महत्वपूर्ण माना जाता है। करवाचौथ के दिन महिलाएं छलनी में दीपक रख कर पहले चांद के दर्शन करती हैं फिर उसी छलनी से वे अपने पति के दर्शन करती हैं। लेकिन कई लोगों के मन में यह सवाल जरुर रहता है कि आखिर छलनी का उपयोग इस विधि में क्यों किया जाता है? आखिर इसके पीछे का क्या रहस्य है? छलनी के उपयोग के पीछे एक रहस्यमयी कथा है। जिसके बाद से छलनी का उपयोग किया जाने लगा।

क्यों किए जाते हैं छलनी से चांद के दर्शन- 
करवाचौथ व्रत की कथा के अनुसार एक साहूकार के घर सात बेटे और एक वीरावती नाम की बेटी थी। सातों भाईयों की इकलौती बहन होने के कारण वीरावती सबकी लाड़ली थी। वीरावती के विवाह के बाद पहले करवाचौथ पर वह संयोगवश अपने मायके में थी। करवाचौथ के व्रत पर वीरावती ने दिन-भर से ना कुछ खाया था ना कुछ पीया था। जिसके कारण वह कमजोर महसूस कर रही थी। वीरावती के भाईयों ने उन्हें थोड़ा बहुत खाने के लिए बोला पर वीरावती ने इससे इंकार कर दिया। 

कुछ समय बाद वीरावती कमजोरी से मुर्छित हो गई। ऐसे में उनके भाई काफी विचलित हो गए। सातों भाईयों में से एक भाई ने घर के थोड़े दूर जाकर एक पेड़ पर चढ़ कर दिया दिखाकर वीरावती को भ्रमित किया जिससे उसे यह यकीन हो जाए कि चांद निकल गया है और चांद के दर्शन कर वो अन्न ग्रहण करले। वीरावती ने पेड़ के पास दिख रहे दिये की रोशनी को चांद समझ लिया और चांद के दर्शन कर उसने खाना खाने का निर्णय लिया। 

जैसे ही वो खाना खाने के लिए बैठी तो उसके पहले निवाले में बाल आ गया, दूसरे में उसे छीक आ गई और तीसरे निवाले में उसके घर से बुलावा आ गया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष दौबारा करवाचौथ का व्रत कर चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा को प्रसन्न किया। मां करवा के आशीर्वाद से वीरावती का पति पुनः जीवित हो उठा।

मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति स्त्री के पतिव्रत से छल ना कर सके इसलिए स्त्रियां स्वयं ही छलनी को हाथ मे रख दीपक की रोशनी में चांद के दर्शन करती हैं और अपने व्रत का पारण करती हैं।

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