विश्वकर्मा जयंती 2020: आज है दुनिया के पहले इंजीनियर का जन्मदिन, जानें क्यों खास है ये दिन

विश्वकर्मा जयंती 2020: आज है दुनिया के पहले इंजीनियर का जन्मदिन, जानें क्यों खास है ये दिन

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-16 03:38 GMT
विश्वकर्मा जयंती 2020: आज है दुनिया के पहले इंजीनियर का जन्मदिन, जानें क्यों खास है ये दिन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। इनके जन्मदिन को विश्व के पहले इंजीनियर के तौर पर देशभर में विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्‍व है, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। इस वर्ष यह तिथि आज 16 सितंबर यानी कि बुधवार को है। बता दें कि विश्‍वकर्मा जयंती के दिन निर्माण से जुड़ी मशीनों, औजारों, दुकानों आदि की पूजा विधि-विधान से की जाती है।

वैदिक देवता के रूप में सर्वमान्य देव शिल्पी विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान के कारण मानव ही नहीं, देवगणों द्वारा भी पूजित हैं। कहते हैं देव विश्वकर्मा के पूजन के बिना कोई भी तकनीकी कार्य शुभ नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से दुर्घटनाओं, आर्थिक परेशानी आदि का सामना नहीं करना पड़ता है। आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी खास बातें...

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पूजा विधि 
- विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के बाद पत्नी सहित पूजा स्थान पर बैठें। 
- इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर ॐ आधार शक्तपे नम:, ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम: और ॐ पृथिव्यै नम: कहते हुए चारों दिशाओं में अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे। 
- अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे तथा पत्नी को भी रक्षासूत्र बांधे। 
- पुष्प जल पात्र में छोड़ें। हृदय में भगवान श्री विश्वकर्मा जी का ध्यान करें। 
- रक्षा दीप जलाएं, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। 
- शुद्ध भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाएं। उस स्थान पर सात अनाज रखें। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डालें। 
- इसके बाद पंचपल्लव (पाँच वृक्षों के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश को ढ़क दें।
- एक अक्षत (चावल) से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें फिर वरुण देव का आह्वान करें।

पुष्प चढ़ाकर कहें – हे भगवान् विश्वकर्मा जी, इस प्रतिमा में विराजमान होकर मेरी पूजा को स्वीकार कीजिए। इसके बाद कथा पढ़ें, सुनें और सुनाएं।

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अलग अलग प्रचलित कथाएं 
भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया। वहीं विश्वकर्मा  पुुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी, प्राय: सभी को विश्वकर्मा जी ने बनाया है। सतयुग का "स्वर्ग लोक", त्रेता युग की "लंका", द्वापर की "द्वारिका’ हस्तिनापुर" और इन्द्रप्रस्थ आदि सभी विश्वकर्मा जी द्वारा ही रचित हैं। "सुदामापुरी" की रचना के विषय में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा जी ही थे।

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