मां कात्यायनी की पूजा में करें इस मंत्र का जाप, ऐसा है स्वरूप
शारदीय नवरात्र का छठवां दिन मां कात्यायनी की पूजा में करें इस मंत्र का जाप, ऐसा है स्वरूप
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मां दुर्गा की आराधना के सबसे बड़े पर्व शारदीय नवरात्रि के पांच दिन पूर्ण हो चुके हैं और अब मां के छठवें स्वरूप की पूजा की जाएगी। मां के इस स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में होता है और योगसाधना में इस चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में रहने वाला साधक माता कात्यायनी पर अपना सब कुछ अर्पण कर देता है, जो साधक अपनी अत्मदान माता को कर देता है उसको मां कात्यायनी सहज भाव से दर्शन देती हैं।
इस बार मां कात्यायनी की पूजा 01 अक्टूबर 2022, शनिवार को की जा रही है। मान्यता के अनुसार, माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है तथा इस नशवर लोक में रहकर भी मनुष्य अलौकिक तेज से युक्त हो जाता है। आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजा विधि और कथा के बारे में...
माता का स्वरूप
माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और प्रकाशमान है। माता की चार भुजाएं हैं। माताजी के दाहिने ओर का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुसज्जित है। माता जी का वाहन सिंह है।
मन्त्र
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मन्त्र का अर्थ :-
हे मां! सर्वत्र विराजमान और शक्ति- स्वरूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
माता कात्यायनी की कथा
पुराणों के अनुसार, कत नाम के एक प्रसिद्ध महर्षि थे, उनके पुत्र का नाम कात्य था। कात्य के गोत्र में ही विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन हुए। महर्षी कात्यायन ने कई वर्षों तक भगवती मां की कड़ी उपासना की। वे चहते थे, कि देवी मां उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माता ने उनकी प्रार्थना को स्वीकारा और पुत्री रूप में आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लिया। जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। माँ कात्यायनी फलदायिनी हैं। ब्रज की गोपियां भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाना चाहती थीं। तब गोपियों ने माता कात्यायनी की ही पूजा कालिन्दी व यमुना नदी के तट पर की थी। यह देवी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।