पुत्रदा एकादशी 2020: जानें इस व्रत का महत्व, पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि
पुत्रदा एकादशी 2020: जानें इस व्रत का महत्व, पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का अत्यधिक महत्व है, वैसे तो पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशी आती हैं। लेकिन इन सब में पुत्रदा एकादशी साल में दोबार पुत्रदा आती है। दूसरी पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह में पड़ती है। इससे पहले श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में यह एकादशी आती है, जो कि इस वर्ष 30 जुलाई गुरूवार यानी कि आज है। माना जाता है कि सच्चे मन से यह व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे में जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
ये व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है, इसलिए संतान प्राप्ति के इच्छुक या संतान है तो उसे सुमार्ग पर लाने के लिए ये व्रत अवश्य रखना चाहिए, जिससे कि उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि पुत्रदा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनेक यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं इस एकादशी की पर क्या करना चाहिए।
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पूजा का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 30 जुलाई रात 01:16 मिनट से
एकादशी तिथि समापन: 31 जुलाई को रात 11:49 मिनट पर
व्रत के पारण का समय: 31 जुलाई, सुबह 05:42 बजे से 08:24 बजे तक
पारण का समापन समय: 01 अगस्त सुबह 10:42 बजे
व्रत और पूजा विधि
- एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।
- दशमी के दिन शाम के समय सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण कर श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- शुद्धजल में गंगा जल डालकर स्नान करें और श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करें।
- कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
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- भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध कर नए वस्त्र पहनाएं।
- धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें और नैवेद्य फलों का लगाकर प्रसाद वितरण करें।
- श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं।
- एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करें।
- दिनभर निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें।
- दूसरे दिन ब्राह्मणों या संत पुरुष को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य दें, उसके बाद भोजन करना चाहिए।
- इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान, पुत्रवान और लक्ष्मीवान होता है।