इस विधि से करें पूजा, मिलेगी श्रीहरि की कृपा

पौष पुत्रदा एकादशी इस विधि से करें पूजा, मिलेगी श्रीहरि की कृपा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-01-02 11:34 GMT
इस विधि से करें पूजा, मिलेगी श्रीहरि की कृपा

डिजि​टल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का अत्यधिक महत्व है, वैसे तो पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशी आती हैं। लेकिन इन सब में पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। यह एकादशी पौष माह में पड़ती है। इस बार यह एकादशी आज यानी कि 02 जनवरी सोमवार को है। ये व्रत बहुत ही शुभ फलदायक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, संतान प्राप्ति के इच्छुक या संतान है तो उसे सुमार्ग पर लाने के लिए ये व्रत अवश्य रखना चाहिए।

माना जाता है कि, जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे कि उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है ​कि पुत्रदा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से अनेक यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं इस एकादशी की पर क्या करना चाहिए।

पूजा का शुभ मुहूर्त
पौष पुत्रदा एकादशी आरंभ: 01 जनवरी 2023 को शाम 07 बजकर 11 मिनट से
पुत्रदा एकादशी समापन: 02 जनवरी 2023 शाम 08 बजकर 23 मिनट तक
पारण का समय: 03 जनवरी 2023, सुबह 07 बजकर 12 मिनट से 09 बजकर 25 मिनट तक 

व्रत और पूजा विधि
- एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए।  
- दशमी के दिन शाम के समय सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
- प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण कर श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- शुद्धजल में गंगा जल डालकर स्नान करें और श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करें। 
- कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें। 
- भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध कर नए वस्त्र पहनाएं। 
- धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें और नैवेद्य फलों का लगाकर प्रसाद वितरण करें। 
- श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं। 
- एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करें। 
- दिनभर निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार करें। 
- दूसरे दिन ब्राह्मणों या संत पुरुष को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य दें, उसके बाद भोजन करना चाहिए। 
- इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान, पुत्रवान और लक्ष्मीवान होता है। 

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष/वास्तुशास्त्री/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।

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