30 हजार से बचा 30 मी., एक मुट्ठी रोज कम होता है इस पर्वत का आकार
30 हजार से बचा 30 मी., एक मुट्ठी रोज कम होता है इस पर्वत का आकार
डिजिटल डेस्क, मथुरा। जिस पर्वत को कन्हैया ने अपनी छोटी अंगुली (छिंगली) पर उठाया था वह आज भी मौजूद है। पर्वत को लेकर कई मान्यताएं हैं। इस पर्वत की परिक्रमा अति पुण्यकारी मानी गई है। वहीं इसे श्रापित भी माना गया है। इसे लेकर मान्यता है कि पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है।
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। यह मथुरा से करीब 22 किमी दूर स्थित है।
द्रोणाचल पर्वत से लाए थे ऋषि
पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीगिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत से ब्रज लाए थे। दूसरी मान्यता यह भी है कि जब रामसेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थेए लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुबंध का कार्य पूर्ण हो गया हैए तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुनरू लौट गए।
7 कोस की परिक्रमा
गोवर्धन पर्वत की पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है। वैसे तो यहां आने वाला प्रत्येक प्राणी पर्वत की परिक्रमा करता है, लेकिन वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी में इसका अधिक महत्व है। क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त आते हैं।
ऐरावत और कन्हैया के चरण चिंह
परिक्रमा के दौरान रास्ते में पड़ने वाले प्रमुख स्थान आन्यौरए जातिपुराए मुखार्विद मंदिरए राधाकुंडए कुसुम सरोवरए मानसी गंगाए गोविन्द कुंडए पूंछरी का लौठाए दानघाटी इत्यादि हैं। गोवर्धन में सुरभि गायए ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान कृष्ण के चरण चिह्न हैं। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहां की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं।