कामिका एकादशी 2020: सिर्फ कथा सुनने से मिलता है यज्ञ के बराबर पुण्य, जानें शुभ मुहूर्त
कामिका एकादशी 2020: सिर्फ कथा सुनने से मिलता है यज्ञ के बराबर पुण्य, जानें शुभ मुहूर्त
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है, जो साल भर में 24 बार आती हैं। सभी एकादशियों में नारायण के समान फल देने की शक्ति होती है। इस व्रत को करने के बाद और कोई पूजा करने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इन सब में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी खास मानी गई है। इसे ‘कामिका एकादशी’ और ‘पावित्रा एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। इस बार यह एकदशी 16 जुलाई यानी गुरुवार को मनाई जा रही है।
शास्त्रों के अनुसार कामिका एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी यमराज का दर्शन करता है और न ही कभी उसे नरकगामी होना पड़ता है। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी खास बातें, महत्व और पूजा विधि के बारे में...
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मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 15 जुलाई 2020, रात 10 बजकर 23 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 16 जुलाई 2020, रात 11 बजकर 47 मिनट पर
व्रत पारण का समय: 17 जुलाई सुबह 5 बजकर 59 मिनट से 8 बजकर 10 मिनट तक
महत्व
धार्मिक मान्यता है कि, कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है। इस व्रत से अश्वमेघ यज्ञ के समान मिलने वाला फल प्राप्त होता है। वहीं कामिका एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से व्रती के सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।
पूजा विधि
कामिका एकादशी व्रत का तीन दिन का नियम होता है। इस एकादशी के व्रत की विधि दशमी से ही शुरू हो जाती है। ऐसे में दशमी, एकादशी और द्वादशी को कामिका एकादशी के नियमों का पालन होता है। इस व्रत के दौरान यानी तीन दिनों तक मांस और मदिरा का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए। तीन दिनों तक जातकों को चावल भी नहीं खाने चाहिए। इसके साथ ही लहसुन, प्याज और मसुर की दाल का सेवन भी नहीं किया जाना चाहिए। जातक को वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।
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ऐसे करें पूजा
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद स्नान करें।
- इसके बाद एकादशी व्रत का संकल्प लें।
- अब विष्णु भगवान की पूजा करें।
- पूजा धूप, दीप, फल, फूल एवं नैवेद्य से करना अति उत्तम फल प्रदान करता है।
- भगवान विष्णु के मन्त्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का यथासंभव जप करें।
- इस दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ अवश्य करें।
- व्रत रखने वाले को एकादशी की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए।
- व्रत के आखिर में ब्राह्मण को भोजन खिलाकर दान देकर विदा करें।
- इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।