ज्येष्ठ पूर्णिमा 2021: आज बना है ये विशेष संयोग, जानें कैसे लें इसका लाभ और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ पूर्णिमा 2021: आज बना है ये विशेष संयोग, जानें कैसे लें इसका लाभ और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त

Bhaskar Hindi
Update: 2021-06-23 06:13 GMT
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2021: आज बना है ये विशेष संयोग, जानें कैसे लें इसका लाभ और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि का अत्यधिक महत्व है। इन दोनों ही ति​थियों को माह के अनुसार अलग अलग रूपों में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और भगवा विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। ज्येष्ठ माह को धर्म कर्म की दृष्टि से विशेष माना गया है। इस माह में पूर्णिमा व्रत गुरुवार 24 जून को है। ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर पितरों की विशेष पूजा करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। इस दिन कई स्थानों पर महिलाएं वट वृक्ष की पूजा भी करती हैं।

वैसे तो अमावस्या और पूर्णिमा पर गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। लेकिन कोविड महामारी के चलते इस साल ऐसा करना उचित नहीं है। ऐसे में आप घर पर ही रहकर गंगा या किसी पवित्र नदी के जल को स्नान के पानी में मिलाएं। ऐसा करने से भी आपको पवित्र नदी में नहाने जितना ही फल प्राप्त होगा। आइए जानते हैं इस तिथि का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि...

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महत्व
इस दिन दान-पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है, इस दिन चंद्र पूजा और व्रत करने से चंद्रमा मजबूत होता है। जिससे मानसिक और आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। भगवान विष्णु की पूजा करने से दुखों का नाश होता है और सुखों की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा गुरुवार के दिन आने से सुख-समृद्धि की नजर से बहुत शुभ है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस शुभ संयोग में जरूरतमंदों को दान जरूर करना चाहिए। 

शुभ मुहूर्त 
तिथि आरंभ: 24 जून गुरुवार, तड़के 03:32 बजे से   
तिथि समापन: 25 जून शुक्रवार, रात 12:09 बजे तक

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पूजा ​की विधि
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर कई स्थानों पर महिलाएं सावित्री के व्रत की तरह वट पूर्णिमा का व्रत रखती हैं। वे पति की लंबी उम्र की कामना से वट वृक्ष यानी बरगद की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान एक बांस की टोकरी मे सात तरह के अनाज रखते जिसे कपड़े के दो टुकड़े से ढ़क देते हैं दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रखते हैं। इसके बाद वट वृक्ष को जल, अक्षत, कुमकुम से पूजा करती हैं। फिर लाल मौली से वृक्ष के सात बार चक्कर लगाते हुए ध्यान करती हैं। इस पूजन प्रक्रिया के बाद सभी महिलाएं सावित्री की कथा सुनाती है और अपनी क्षमता के अनुसार दान दक्षिणा देते हुए अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। 

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