Shivaji Maharaj Jayanti: मराठा साम्राज्य की रखी थी नींव, पढ़िए छत्रपति शिवाजी की शौर्य गाथा
Shivaji Maharaj Jayanti: मराठा साम्राज्य की रखी थी नींव, पढ़िए छत्रपति शिवाजी की शौर्य गाथा
Bhaskar Hindi
Update: 2021-02-19 05:31 GMT
डिजिटल डेस्क,भोपाल। आज देशभर में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाकर उन्हें याद किया जा रहा है। इतिहास के हर पन्नों में शिवाजी महाराज की वीर गाथाओं की एक से बढ़कर एक कहानियां है,जिन्हें सुनकर हर बच्चा उनकी तरह निडर और साहसी बनना चाहता है। हम आपको छत्रपति महाराज की शौर्य और पराक्रम से जुड़ी ऐसी ही कहानियां बताएंगे जो क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी -
- शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोसले एक सेनापति थे और मां जीजाबाई एक धार्मिक महिला थीं। मां से ही शिवाजी को धर्म और आध्यात्म की महान बाते सीखने को मिली। बचपन से ही शिवाजी ने मुगल शासकों द्वारा प्रजा पर क्रूर नीतियों का विरोध करने के लिए मन बना लिया था और ये तो जगजाहीर की मौका मिलने पर उन्होंने मुगलों को धूल चटा दी थी।शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब के समय में अपनी एक अलग सेना बनाई और सन् 1674 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की।
- माना जाता है कि, शिवाजी ने युद्ध के दौरान गुरिल्ला पद्धति का इजाद की थी और वो इसे उपयोग करने पर काफी जोर देते थे। छत्रपति ने मुगलों से साल 1656 से 57 में टक्कर ली। बीजापुर में सुल्तान आदिलशाह की मौत के बाद वहां की स्थिति डगमगा गई,जिसका पूरा फायदा उठाते हुए औरंगजेब ने वहां धावा बोल दिया। वही शिवाजी ने भी जुन्नार नगर पर आक्रमण कर मुगलों की अच्छी-खासी संपत्ति और 200 घोड़ों पर कब्जा कर लिया,जिसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी से बदला लेने की ठान ली।
- औरंगजेब ने सम्राट बनने के लिए अपने पिता शाहजहां को कैद कर लिया था। तो वही शिवाजी ने पूरे दक्षिण को जीत लिया था,जिसकी जानकारी औरंगजेब को थी वो शिवाजी के पराक्रम से अच्छी तरह परिचित नहीं था इसलिए उसने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार बनाया। शाइस्ता खां ने अपनी 1 लाख 50 हजार सेना के साथ सूपन और चाकन के दुर्ग पर खूब लूटपाट की।
- लेकिन इस बात का जब शिवाजी महाराज को पता चला तो उन्होंने सोच लिया कि इसका बदला वो जरुर लेकर रहेंगे और उन्होंने मात्र 350 सैनिकों के साथ शाइस्ता खां पर हमला किया। हमले में शाइस्ता खां की चार अंगुलियां कट गई और वो बचकर निकल गया। अब तक औरंगजेब को शिवाजी के पराक्रम का पता अच्छी तरह से लग चुका था और उसने धोखा देने के इरादे से शिवाजी से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाते हुए उन्हें आगरा बुलाया लेकिन औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में 5000 सैनिकों के पहरे में कैद कर दिया। शिवाजी जितने साहसी थे उतने ही बद्धिमान भी। वो औरंगजेब की कैद से बचकर निकल गए।
- 3 अप्रैल, 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी वो भारत के लिए जिंदा हैं वो मरकर भी हम सभी के दिलों में अमर है।