400वां प्रकाश पर्व: धर्म की रक्षा करते हुए ऐसे शहीद हुए थे गुरु तेग बहादुर

400वां प्रकाश पर्व: धर्म की रक्षा करते हुए ऐसे शहीद हुए थे गुरु तेग बहादुर

Bhaskar Hindi
Update: 2021-05-01 06:37 GMT
400वां प्रकाश पर्व: धर्म की रक्षा करते हुए ऐसे शहीद हुए थे गुरु तेग बहादुर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश भर में आज सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। गुरु तेग बहादुर सिंह एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे और उनका जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। इस दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरु साहिब के इतिहास और शहादत के बारे में बताया जाता है। प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली स्थित गुरुद्वारा शीश गंज साहिब में जाकर प्रार्थना की। पीएम मोदी गुरुद्वारे में बिना किसी सुरक्षा घेरे के गए थे। 

आपको बता दें कि कोरोना महामारी के चलते इस बार  गुरुद्वारों में कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। लोग गुरुद्वारों में मास्क पहनकर मत्था टेकने पहुंच रहे हैं। कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार गुरुद्वारों में छोटे-छोटे कार्यक्रम ही किए जा रहे हैं। आइए जानते हैं गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में...

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श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में
अमृतसर में जन्मे गुरु तेग बहादुर गुरु हरगोविन्द जी के पांचवें पुत्र थे। 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी के निधन के बाद इन्हें 9वां गुरु बनाया गया था। इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे। वे बचपन से ही बहादुर, निर्भीक स्वभाव के और आध्यात्मिक रुचि वाले थे। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया। इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया।

उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने को कहा तो गुरु साहब ने कहा शीश कटा सकते हैं केश नहीं। औरंगजेब ने गुरुजी पर अनेक अत्याचार किए, परंतु वे अविचलित रहे। वह लगातार हिन्दुओं, सिखों, कश्मीरी पंडितों और गैर मुस्लिमों का इस्लाम में जबरन धर्मांतरण का विरोध रहे थे जिससे औरंगजेब खासा नाराज था। 

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आठ दिनों की यातना के बाद गुरुजी को दिल्ली के चांदनी चौक में शीश काटकर शहीद कर दिया गया। उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बनाया गया जिसे गुरुद्वारा शीशगंज साहब नाम से जाना जाता है। इसी के साथ विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। कहा जाता है गुरु तेग बहादुर सिंह सिक्खों के नौंवें गुरु थे। इसी के साथ बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था और उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था।

गुरु तेग बहादुर अपने त्याग और बलिदान के लिए वह सही अर्थों में "हिन्द की चादर" कहलाए। अपने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए विश्व इतिहास में जिन लोगों ने प्राणों की आहुति दी, उनमें गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अग्रिम पंक्ति में हैं।  

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