मिशन चंद्रयान : विदर्भ की दो बेटियों ने भी दिया अहम योगदान

वर्धा और चंद्रपुरवासी गौरवान्वित

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-26 13:30 GMT

डिजिटल डेस्क, वर्धा/चंद्रपुर। अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी दुनिया में इस समय केवल भारत के चंद्रायन 3 की चर्चा है। इस चंद्रयान मिशन को सफल बनाने में विदर्भ की दो बेटियों ने भी अपना अहम योगदान दिया है। इन बेटियों के नाम वर्धा जिले के हिंगणघाट की इंजी. कोमल योगेश लोहिया और चंद्रपुर जिले की पडोली निवासी शर्वरी शिरीष गुंडावार हैं। विदर्भ की इन दोनों कन्याओं की सफलता पर विदर्भ के वर्धा और चंद्रपुरवासी गर्व महसूस कर रहे हैं।

वर्धा जिले के हिंगणघाट के जगन्नाथ वार्ड निवासी कोमल जब छोटी थी तो उनके पिता नंदकिशोर करवा का देहांत हो गया। कोमल की माता संतोष ने उसका पालन-पोषण किया। कोमल की पढ़ाई के लिए भरपूर मेहनत की। मां संतोष, चाचा नारायण, बृजमोहन करवा ने और उसके छोटे भाई इंजीनियर गणेश करवा ने भी कोमल की पढ़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्कूली जीवन से ही होशियार कोमल ने जीबीएमएम हाईस्कूल से 12वीं की परीक्षा मेरिट में उत्तीर्ण की थी। उसके बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई गुरु गोविंद कॉलेज नांदेड़ से पूरी की। इसके बाद इलाहाबाद के एनआईटी कॉलेज से गोल्ड मेडल के साथ एमटेक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वह 2017 में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान संस्था (इसरो) में अभियंता पद पर कार्यरत हुई। फिलहाल वह इसरो में एमडी पद पर कार्यरत है।

3 साल पूर्व कोमल की शादी जालना निवासी योगेश लोहिया के साथ हुई। पति योगेश मैनेजमेंट कंसल्टेंट बेंगलुरु में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं। इसी के साथ चंद्रपुर जिले की पडोली निवासी शर्वरी गुंडावार भी चंद्रयान-3 मिशन का हिस्सा थीं। शर्वरी गुंडावार बेंगलुरु स्थित इसरो मुख्यालय में वैज्ञानिक के रूप में पिछले 6 वर्षों से कार्यरत हैं। वह चंद्रयान 3 के सोलर पैनल व इलेक्ट्रिक विभाग का हिस्सा हैं। इस विभाग में उसके अलावा 60 से 70 लोग शामिल हंै। पडोली निवासी श्वेता की माता एसपी कॉलेज में प्रोफसर हैं और पिता एक व्यवसायी हैं। श्वेता ने कक्षा दसवीं की परीक्षा नारायणा विद्यालय से तथा बारहवीं नागपुर के बुटीबोरी स्थित इरा इंटरनेशनल स्कूल से पूरी की। बारहवीं के बाद शर्वरी ने त्रिवेंद्रम स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रवेश लिया। यहां से शर्वरी ने बी.टेक की पढ़ाई पूरी की और इसरो में पहुंची। जहां पर पिछले 6 वर्षों से कार्यरत है। शर्वरी के माता-पिता इस सफलता पर फूले नहीं समा रहे हैं।

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