Wardha News: मविआ के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं दलित-कुणबी समाज के चार प्रत्याशी
- सिर्फ विपक्षी दल महायुति के प्रत्याशी से निपटने की चुनौती
- दलित और कुणबी समाज के चार उम्मीदवारों ने भी मुश्किलें बढ़ा दी
Wardha News : संजयकुमार ओझा | विधानसभा क्षेत्र से महाविकास आघाड़ी से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे शेखर शेंडे के समक्ष न सिर्फ विपक्षी दल महायुति के प्रत्याशी से निपटने की चुनौती है, बल्कि दलित और कुणबी समाज के चार उम्मीदवारों ने भी उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इन चारों उम्मीदवारों के कारण महाविकास आघाड़ी के वोट बंट सकते हैं। हालांकि, 4 नवंबर तक कौन हटता है और कौन डटा रहता है, इसी पर आगे की स्थिति निर्भर है, लेकिन यदि यह चारों उम्मीदवार चुनाव मैदान में डटे रहते हैं तो शेखर शेंडे के लिए जीत का राह आसान नहीं होगी। महाविकास आघाड़ी के शेखर शेंडे के खिलाफ कुणबी और दलित समाज के चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष विलास कांबले तथा रिपाई (ए) के अधिकृत उम्मीदवार सुनील वनकर के अलावा कुणबी समाज के कांग्रेस के बागी डॉ. सचिन पावडे और राकांपा (शरद पवार गुट) के युवा नेता समीर देशमुख ने भी नामांकन दाखिल किए हैं। महाविकास आघाड़ी के अधिकृत उम्मीदवार शेखर शेन्डे अपने समाज के वोट, दलित वोट, मुस्लिम वोट, कुणबी वोट और पिछड़ी जाति के वोटों के भरोसे चुनाव मैदान में उतरे हैं। मगर महाविकास आघाड़ी के उपरोक्त चारों उम्मीदवार उनके लिए वोट कटवा साबित हो सकते हैं। इन चारों की उम्मीदवारी ने शेखर शेंडे की चिंता बढ़ा दी है।
सूत्रों के अनुसार डॉ. सचिन पावडे ने महाविकास आघाड़ी से उम्मीदवारी मांगी थी लेकिन उनका टिकट कट गया और आघाड़ी ने शेखर शेंडे को उम्मीदवारी दे दी, जिससे नाराज डॉ. सचिन पावडे ने बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन दाखिल किया है। डॉ. पावडे का कुणबी समाज में अच्छा वर्चस्व है। दूसरी ओर, महाविकास आघाड़ी के मित्र दल राकांपा (शरद पवार गुट) के युवा नेता समीर सुरेश देशमुख ने भी वर्धा सीट पर अपना दावा किया था, लेकिन उनके मंसूबों पर भी पानी फिर गया जिस कारण उन्होंने भी पार्टी से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। वर्धा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में देशमुख परिवार का अच्छा-खासा दबदबा है। समीर देशमुख भी शेखर शेंडे का सिरदर्द बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा दलित समाज के वर्धा जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष विलास कांबले पहली बार चुनाव मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरे हैं। इससे पहले वे सरपंच, पंचायत समिति के उपसभापति, जिला परिषद के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। दलित समाज के विलास कांबले पिछले 25 से 30 वर्ष से राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। विलास कांबले भी वर्धा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। दलित समाज के सुनील वनकर पिछले 25 वर्षो से आंबेडकरी समाज के बीच काम कर रहे हैं। वर्धा विधानसभा क्षेत्र से सुनील वनकर ने रिपाई (ए) गुट के अधिकृत उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल किया है। सुनील वनकर दलित वोटों के भरोसे चुनाव मैदान में उतरे हैं। वर्धा विधानसभा क्षेत्र से ही कांग्रेस के बागी सुधीर पांगुल ने भी अपना नामांकन दाखिल किया है। यदि 4 नवंबर तक यह चारों प्रत्याशी मैदान में डटे रहते हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी शेखर शेंडे की जीत की राह कठिन हो सकती है।