इन बागी उम्मीदवारों ने कर दी भाजपा-शिवसेना की नींद हराम, दो विधायक भी शामिल
इन बागी उम्मीदवारों ने कर दी भाजपा-शिवसेना की नींद हराम, दो विधायक भी शामिल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। लोकसभा चुनावों के लिए महाराष्ट्र में महागठबंधन और युति गठबंधन के बीच चल रही कांटे की टक्कर में भाजपा-शिवसेना के बागी उम्मीदवार अपनी-अपनी पार्टीयों का खेल खराब करने में जुटे हैं। ‘जीतेंगे नहीं पर जीतने भी नहीं देंगे’ की रणनीति पर चल रहे बागी पार्टियों के लिए मुसीबत बन गए हैं। इनमें विधायक व पूर्व सांसद और पूर्व विधायक शामिल हैं। अपनी पार्टियों से बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवार जीतें भले ही नहीं लेकिन अपनी पुरानी पार्टियों को हराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। औरंगाबाद, धुले, अहमदनगर, नाशिक, नंदुरबार और शिर्डी ऐसी ही सीटें हैं जहां बागी पार्टियों का गणित बिगाड़ सकते हैं।
शिवसेना ने मौजूदा सांसद सदाशिव लोखंडे पर दोबारा भरोसा जताया है। जबकि कांग्रेस ने इस सीट से भाईसाहेब कांबले को मैदान में उतारा है। वाकचौरे अगर ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहे तो शिवसेना का गणित गड़बड़ हो सकता है। अहमदनगर सीट पर भाजपा ने विधानसभा में विपक्ष के नेता व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राधाकृष्ण विखेपाटील के बेटे डॉ सुजय पाटील को टिकट दिया है। सुजय का मुकाबला राकांपा के संग्राम जगताप से है। लेकिन मराठा क्रांति मोर्चा से जुड़े संजीव भोईर ने यहां बतौर निर्दलीय ताल ठोंक दी है। मूक मोर्चा के जरिए राज्य में हलचल मचा देने वाला मराठा क्रांति मोर्चा किसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है यह देखना दिलचस्प होगा।
वहीं नाशिक सीट पर साल 2014 में हार का सामना करने वाले राकांपा उम्मीदवार समीर भुजबल भाजपा के बागी पूर्व विधायक माणिकराव कोकाटे के सहारे जीत की उम्मीद लगाए बैठे हैं। यह सीट शिवसेना के खाते में है जिसने हेमंत गोडसे को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन सिन्नर के पूर्व विधायक कोकाटे ने बगावत का बिगुल बजा दिया। जातीय गणित और इलाके में भाजपा-शिवसेना की खींचतान का फायदा वरिष्ठ राकांपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल के भतीजे समीर को हो सकता है। पूर्व शिवसेना सांसद भाऊसाहेब वाकचौरे पार्टी से बगावत कर शिर्डी सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं।
यहां केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ सुभाष भामरे के खिलाफ भाजपा विधायक अनिल गोटे बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए हैं। अगर गोटे भाजपा के वोटों में सेंध लगाने में कामयाब होते हैं तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस उम्मीदवार कुणाल पाटील को हो सकता है।
इसी तरह औरंगाबाद सीट पर शिवसेना बगावत का सामना कर रही है। चंद्रकांत खैरे की उम्मीदवारी से नाराज शिवसेना विधायक हर्षवर्धन जाधव निर्दलीय के रुप में मैदान में उतरे हैं। जाधव की कोशिश है कि वे खैरे को लगातार पांचवीं जीत हासिल करने से रोक सकें। धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए जानी जाने वाली औरंगाबाद सीट पर हिंदू वोटों के विभाजन से बाजी एआईएमआईएम उम्मीदवार इम्तियाज जलील के हाथ लग सकती है। घुले सीट पर भाजपा इसी तरह की चुनौती का सामना कर रही है।
नंदुरबार से भाजपा के टिकट पर डॉ हिना गावित मैदान में हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे डॉ सुहास नटावदकर की बगावत गावित के लिए मुसीबत बन सकती है। बतौर भाजपा उम्मीदवार नटावदकर को साल 2004 और 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार माणिकराव गावित के सामने हार का सामना करना पड़ा था। 2014 में विजयकुमार गावित अपनी बेटी के साथ भाजपा में शामिल हो गए और हिना गावित साल 2014 में भाजपा की टिकट पर साल 2014 में जीत हासिल करने में कामयाब रहीं। उन्हें भाजपा ने एक बार फिर मैदान में उतारा है लेकिन पार्टी के पुराने निष्ठावंत नटावदकर का दावा है कि अब वे पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के गुस्से का इजहार करने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं।