Mumbai News: वकील के खिलाफ दर्ज दुराचार का मामला रद्द, कैदी को फरलो में देरी के लिए फटकार

  • याचिकाकर्ता और शिकायत के वयस्क होने के नाते सहमति से बनाए गए शारीरिक रिश्ते
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के येरवडा जेल प्रशासन को एक कैदी को फरलो (छुट्टी) देने में देरी के लिए लगाई फटकार
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंपनी के मशीन में आग लगने को लेकर मैनेजर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को किया रद्द

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-25 13:18 GMT

Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक वकील के खिलाफ दर्ज दुराचार के मामले को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता महिला वयस्क होने के कारण सहमति से रिश्ते बनाए। बाद में उनमें कुछ बातों को लेकर विवाद हुआ और उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक मामले दायर करा दी। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष आरोपी वकील की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने पाया कि शिकायतकर्ता (पीड़िता) ने अपने पति के साथ विवाह के दौरान याचिकाकर्ता (वकील) के साथ रहने भी गई थी। जब आरोपी और पीड़िता के बीच कुछ विवाद हुआ, तो उसने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। पीठ ने कहा कि आरोपी वकीलों की दलीलों पर विचार करने, एफआईआर और रिकॉर्ड में रखे गए दस्तावेजों को देखने के बाद हमें याचिका में उठाए गए आधारों में दम नजर आता है। एफआईआर और आरोप-पत्र को पढ़ने से यह पता नहीं चलता कि पीड़िता ने अपनी शिकायत में धारा 376(2)(एन) तथा धारा 504 और 506 के आरोप लगाए हैं। पीठ ने कहा कि यदि इस मामले में आपराधिक प्रक्रियाओं को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो इससे दोषसिद्धि होने की संभावना नहीं है। इसलिए यदि ऐसी कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए पुणे अलंकार पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 376(2)(एन), 504 और 506 के तहत दर्ज आपराधिक मामले को रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता के वकील सत्यव्रत जोशी ने दलील दी कि शिकातकर्ता अपने पति और एक बच्चे के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रही थी। वह अपने पति के साथ अनबन के कारण बेटे के साथ भारत लौट आयी। उसने अपने पति के साथ अपने संबंध तोड़ने और तलाक लेने का फैसला किया। इसी को लेकर याचिकाकर्ता वकील से कानूनी सलाह लेने के लिए उसने उससे संपर्क किया। उसने उसे बताया कि वह वैवाहिक मामलों से निपटता नहीं है, उसने उसे आश्वासन दिया कि वह उसे अदालतों में उसकी कार्यवाही का प्रतिनिधित्व करने के लिए उचित वकील देगा। उसने वकील की सेवाएं भी उपलब्ध कराई हैं। इस बीच लॉकडाउन के कारण याचिकाकर्ता पुणे में अपने मूल घर वापस गया। इस दौरान याचिकाकर्ता और पुणे में माता-पिता के साथ रह रही शिकायतकर्ता के बीच में घनिष्ठ संबंध बन गए। उसने शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाए। याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता से आर्थिक मदद मांगी और उसने उसे पैसे दिए। बाद में वह उसने उसके लिए पैसे लौटा दिए। वह पांच लाख रुपए कंसल्टिंग फीस के रूप में रख लिया। उसके बाद ही शिकायतकर्ता ने पुणे के अलंकार पुलिस स्टेशन में दुराचार की शिकायत दर्ज कराई।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के येरवडा जेल प्रशासन को एक कैदी को फरलो (छुट्टी) देने में देरी के लिए लगाई फटकार

दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के येरवडा जेल प्रशासन को एक कैदी को फरलो (छुट्टी) देने में देरी के लिए फटकार लगाई। अदालत ने जेल प्रशासन को 31 दिसंबर से पहले उसे फरलो देने पर निर्णय लेने और राज्य सरकार द्वारा कैदियों को फरलो और पैरोल देने के लिए दिए गाइडलाइन का पालन का आदेश दिया। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष कैदी स्टिव उर्फ लिस्बन जॉन मिरांडा की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मद्देनजर फरलो या पैरोल छुट्टी के लिए आवेदन पर निर्णय लेने वाले अधिकारियों के लिए 45 दिनों की अवधि के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य है। इसलिए हम जेल अधिकारियों से फरलो के अनुदान के लिए आवेदन पर निर्णय लेने के लिए सख्त हैं। पीठ ने कहा कि हमने देखा है कि वर्ष 2022 में कैदी के आवेदन पर लगभग तीन महीने बीत जाने के बाद निर्णय लिया गया और उसके बाद उसे कैलेंडर वर्ष के अंत में यानी 30 दिसंबर 2022 को रिहा किया गया और उसकी छुट्टी अनिवार्य रूप से कैलेंडर वर्ष 2023 में गई और जिसके लिए वह बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जून 2023 में आवेदन किया था, लेकिन उस पर चार महीने बाद यानी 27 अक्टूबर 2023 को निर्णय लिया गया। इसके लिए याचिकाकर्ता दोष नहीं है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के मामले में हम पाते हैं कि कैलेंडर वर्ष 2024 में उसकी छुट्टी को 11 दिनों तक सीमित करने का निर्णय इस आधार पर लिया गया है कि वर्ष 2023 के लिए उसकी छुट्टी कैलेंडर वर्ष 2024 में 17 दिनों तक समाप्त हो गई है। हम जेल अधिकारियों के इस कृत्य को पूरी तरह से अनुचित और कैदी को छुट्टी देने के लिए बनाए गए नियमों की भावना के भी विरुद्ध पाते हैं। पीठ ने जेल अधिकारियों को कैदी के फरलो के लिए आवेदन पर 45 दिनों की अवधि के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता कैलेंडर वर्ष 2024 में शेष 17 दिनों की फरलो छुट्टी का लाभ उठाने का हकदार है। जेल अधिकारी 31 दिसंबर से पहले कैदी के फरलो के आवेदन पर निर्णय लें

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंपनी के मशीन में आग लगने को लेकर मैनेजर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को किया रद्द

तीसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंपनी में आग लगने को लेकर मैनेजर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि वर्तमान कार्यवाही जारी रखने से याचिकाकर्ता पर फिर से एक अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा चलाया जाएगा, जिस पर पहले से ही फैक्ट्री अधिनियम के तहत अपराधों के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा चलाया जा चुका है। यह पूरी तरह से आपराधिक न्यायशास्त्र के सभी स्थापित मानदंडों के खिलाफ है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। न्यायमूर्ति एम. एस.कार्णिक और डॉ.नीला गोखले की पीठ के अजीत विक्रम बहादुर सिंह की ओर से वकील सुजीत शेलार की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर के तहत मुकदमा चलाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(2) और सीआरपीसी की धारा 300 के तहत उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए हमें एफआईआर को रद्द करने मे कोई हिचकिचाहट नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील सुजीत शेलार ने दलील दी कि याचिकाकर्ता सतारा के मेसर्स पिडिलाइट इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत था। कंपनी के बंद एसआरपी सिस्टम में उत्पादित गैस के ओवरहीटिंग हुई और आग लग गई। इसमें शिकायतकर्ता का चेहरा और हाथ जल गए। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। याचिकाकर्ता मैनेजर पर कंपनी में मशीनरी के रखरखाव में लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। उपऔद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य निदेशक और कारखाना निरीक्षक ने भी इसी घटना के संबंध में सतारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में कारखाना अधिनियम की धारा 92 के तहत 2019 के 244 और 2019 के 245 के तहत दो अलग-अलग आपराधिक शिकायत दर्ज की। सतारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 14 फरवरी 2019 के अपने आदेश द्वारा उसे कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 92 के तहत दोषी ठहराया और उसे 30 हजार रुपए का भुगतान करने की सजा सुनाई, जिसमें से 12 हजार 500 रुपए प्रत्येक घायल पीड़ित को भुगतान करने का निर्देश दिया गया। याचिकाकर्ता ने जुर्माना राशि जमा कर दी है। इसी मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ सतारा के तलबीद पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 285, 287, 337 और 338 के तहत एफआईआर दर्ज किया गया है। यह याचिकाकर्ता के साथ अन्याह है। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील को स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ एफआईआर को रद्द कर दिया।

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