राज्य सरकार करेगी बाघों की गणना, गतिविधियों पर भी रहेगी नजर

राज्य सरकार करेगी बाघों की गणना, गतिविधियों पर भी रहेगी नजर

Bhaskar Hindi
Update: 2020-01-01 08:41 GMT
राज्य सरकार करेगी बाघों की गणना, गतिविधियों पर भी रहेगी नजर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। अब राज्य में कितने बाघ हैं, यह जानने के लिए अब एनटीसीए (नेशनल टायगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, क्योंकि वर्ष-2020 के मार्च महीने से राज्य का वन विभाग बाघों की गणना करने वाला है, जिसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। यह गणना 2 साल में एक बार होगी। इससे यह आसानी से पता लगाया जा सकेगा कि,  राज्य में बाघों की संख्या में कितना उतार-चढ़ाव आ रहा है। साथ ही बाघों की गतिविधियों पर भी पैनी नजर रखी जा सकेगी। 

बाघ संवर्धन के लिए कदम
राज्य में कुल भौगोलिक क्षेत्र के मुकाबले वन परिक्षेत्र 16.4% है और कुल वन परिक्षेत्र का मात्र 17.23% ही घना जंगल है। शेष वनक्षेत्र या तो मध्यम है, या फिर खुला वन क्षेत्र है। आंकड़ों के अनुसार राज्य में घना जंगल 8736 वर्ग किमी है। मध्यम घना जंगल 20652 वर्ग किमी और खुला वन क्षेत्र  21294 वर्ग किमी है। वन क्षेत्र में अन्य वन्यजीवों के साथ बाघों की मौजूदगी है, लेकिन हर साल बाघ कितने बढ़ रहे हैं या घट रहे हैं, इस बात से हम पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। जिसका मुख्य कारण यह है कि, बाघों की गणना के लिए राज्य एनटीसीए पर निर्भर रहता है। नेशनल टायगर कंजर्वेशन अथॉरिटी 4 साल में एक बार बाघों की गणना करती है, जिससे राज्य के बाघों की क्या स्थिति है, यह समझ से परे रहती है। बाघों के संर्वधन के लिए अब राज्य सरकार ने अहम कदम उठाया है। इस साल राज्य के वनक्षेत्र से लेकर पार्क, जू, यहां तक कि, बाघ पाए जाने वाले इलाकों में बाघों की गणना की जाएगी। इससे आने वाले समय में बाघों की संख्या से लेकर बाघों की गतिविधियों को समझना आसान हो जाएगा।  

राज्य में 314 बाघ मौजूद 
हाल ही में एनटीसीए की रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें राज्य में 314 बाघों की मौजूदगी बताई गई है। हालांकि विदर्भ का स्वतंत्र आंकड़ा नहीं है, लेकिन आने वाले समय में विदर्भ का भी स्वतंत्र आंकड़ा मिलने की अपेक्षा की जा सकती है। 

तैयारी शुरू कर दी है
अब राज्यस्तर पर वन विभाग बाघों की गणना करने वाला है। इसके लिए हमने तैयारी शुरू कर दी है। कैमरा ट्रैप लगाकर बाघों की गणना की जाएगी। 2 साल में एक बार यह गणना होने से वन विभाग को बाघों की स्थिति जानने में काफी मदद मिलने वाली है। 
-डॉ. रविकिरण गोवेकर,   मुख्य वन संरक्षक तथा क्षेत्र संचालक पेंच व्याघ्र प्रकल्प
 

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