दहेज उत्पीड़न को लेकर कड़ा कानून, दोषी बच नहीं सकते - हाईकोर्ट
दहेज उत्पीड़न को लेकर कड़ा कानून, दोषी बच नहीं सकते - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महिला होना पीड़ादायी है पर इसमे गर्व भी है। बहू को इस गर्व की अनुभूति से वंचित करने वाली सास की सजा को बरकरार रखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह बात कही है। सास व अन्य रिश्तेदारों के तानों व दहेज की मांग के चलते बहू ने विवाह के 6 महीने बाद ही मिथेनॉल पी कर आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में निचली अदालत ने सास को तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की थी। जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और सास की सजा को बरकरार रखा। यहीं नहीं हाईकोर्ट ने साफ किया है कि निचली अदालत द्वारा इस मामले में पति को बरी किए जाने का आदेश खामीपूर्ण है। यह कहते हुए कोर्ट ने पति को नोटिस जारी किया है।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। खंडपीठ ने साफ किया है कि एक खास उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए दहेज उत्पीड़न को लेकर कड़ा कानून बनाया गया है। इसलिए दहेज के लिए नवविवाहिता को अपना जीवन को समाप्त करने के लिए उकसाने वाले व इसमें भूमिका निभानेवालों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए। ऐसे लोग कानून की पहुंच से दूर नहीं भाग सकते। खास तौर से तब जब उनके खिलाफ सबूत मौजूद हो। खंडपीठ ने पाया कि आत्महत्या करनेवाली वैशाली का 8 मई 1998 को दिनेश के साथ विवाह हुआ था। लेकिन सास, ननद व पति की क्रूरता से तंग आकर उसने 4 नवंबर 1998 को मिथेनॉल पी लिया जिससे 11 नवंबर 1998 को उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में मृतका के पति, सास, ननद व पति के चाचा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि पति के साथ खुशहाल जीवन जीने का सपना लेकर आयी पीड़िता के सपने उस वक्त बिखर गए जब ससूरालवालों ने उसके साथ क्रूरता बरतनी शुरु कर दी। जिसमें उसका पति भी शामिल था। पुलिस ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ 302, 306, 304 बी, 498ए के तहत आरोपपत्र दायर किया था। निचली अदालत ने इस मामले में सिर्फ सास को दोषी ठहराते हुए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई। जबकि अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। अपील में सरकार ने सास की सजा बढाने की मांग की थी। सुनवाई के बाद खंडपीठ ने सरकार की अपील खारिज कर दी पर सजा के आदेश को बरकरार रखा।